Advertisement

Thursday, March 24, 2011

क्यों चाहिए श्वेत क्रान्ति?

10.2 करोड़ टन वार्षिक दूध उत्पादन के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। फसल की तुलना में यह उत्पादन बहुत अधिक है और किसानों के लिए कमाई का एक अहम साधन भी है। मौसम की मार एवं फसलों की बर्बादी के बाद किसान को सुरक्षा देने में दुग्ध उत्पादन ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। देश के कुछ क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्या पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एम.एस.एस.ओ.) की रिपोर्ट के अनुसार उन क्षेत्रों में आत्महत्या की घटनाएं कम रही हैं, जहां दूध उत्पादन नियमित आय का साधन है। दूध उत्पादन का कार्य ज्यादातर छोटे किसानों और भूमिहीनों द्वारा किया जाता है तथा इसमें महिलाओं की भूमिका प्रमुख है।
उचित मूल्य
दुग्ध उत्पादन व्यवसाय में कुछ खामिंया भी हैं जो इसकी उपलब्धियों पर पानी फेर देती हैं। पहली कमी तो दूध की कीमत है जिसका वास्तविक लाभ उसके हकदारों तक नहीं पहुंचता। जिस दूध की कीमत शहरों और महानगरों में 28 से 38 रूपए प्रति लीटर है, उसके लिए उत्पादकों को मात्र 15 से 20 रूपए प्रति लीटर ही मिलते हैं। दूध की कीमतों में अभी कुछ समय पहले ही वृद्धि हुई है, 16 फरवरी से दिल्ली में गाय का दूध 29 रू. तथा भैंस का 36 रूपए लीटर बिकेगा। डेअरी अधिकारियों के अनुसार संग्रहण, भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन, प्रबंधन और परिवहन की लागत बढ़ गई है जिसकी वजह से दूध के दाम बढाना जरूरी हो गया था। दूध उत्पादकों को मिलने वाली 15-20 रूपए लीटर कीमत का एक बड़ा हिस्सा चारे व पशु आहार, बीमारी एवं पशुओं के रखरखाव आदि में खर्च हो जाता है। इस तरह दोनों ही पक्षों को मिलने वाला लाभ लगातार घटता जा रहा है, जिससे  सकल प्रभाव प्रतिकूल हो जाता है।
दूध की उपलब्धता
यद्यपि भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता आज भी   252 मि.ली. प्रतिदिन है जो कि विश्व औसत 265 मि.ली. प्रतिदिन से कम है। दूसरी ओर ग्रामीणों द्वारा दूध बेचने की प्रवृति लगातार बढऩे के कारण उनका पारिवारिक कुपोषण भी बढ़ा है। हमारे दुधारू पशुओं की औसत क्षमता 1200 ली. प्रति वर्ष है जबकि विश्व औसत 2200 ली. का है। इजराइल में तो दुधारू पशुओं की उत्पादकता 12,000 ली. वार्षिक तक है। हमारे यहां दूध उत्पादन में उन्नत प्रजातियों का अभी भी अभाव है। संकर प्रजाति के विकास के लिए किए जा रहे प्रयास सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित हैं। पशुधन स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में दुधारू पशु संक्रामक रोगों के कारण मर जाते हैं।
लागत विसंगतियां
दूध संग्रह, परिरक्षण, पैकिंग, परिवहन, विपणन, प्रबंधन कार्य में वृद्धि होने से दूध की लागत क्यों बढती है, इसे कोलकाता की दूध आपूर्ति से समझा जा सकता है। आनंद (गुजरात) से कोलकाता तक प्रतिदिन रेफेरिजिरेटिड टैंकरों वाली रेलगाड़ी में दूध भेजा जाता है। दो हजार किलोमीटर तक ताजे दूध की नियमित आपूर्ति करना टेक्नालॉजी का कमाल है लेकिन यह बिजली, डीज़ल व रेलवे साधनों की बरबादी भी है। जब गुजरात, राजस्थान जैसे सूखे प्रदेशों में दूध पैदा किया जा सकता है तो हरे-भरे बंगाल में क्यों नहीं? असली श्वेत क्रांति तो तब मानी जाती जब दूध उत्पादन की विकेंद्रित, स्थानीय व मितव्ययी तकनीक प्रयोग में लाई जाती।
मांग-आपूर्ति अनुपात
शहरीकरण, औद्योगिकरण, प्रति व्यक्ति आय में बढोतरी, खान-पान की आदतों में बदलाव जैसे कारणों से दूध व दूध से बने पदार्थों की मांग तेजी से बढ रही है। वर्तमान में दूध का तरल रूप में उपयोग मात्र 46 प्रतिशत ही होता है शेष दूध का उपयोग दूध उत्पादों के रूप में होता है। आइसक्रीम, चॉकलेट और मिठाइयों का बढ़ता प्रचलन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, और आने वाले समय में दूध उत्पादों के उपयोग का अनुपात बढना तय है। ऐसी स्थिति में उत्पादन में तीव्र वृद्धि अति आवश्यक है।
चारा व पशु आहार
एक अनुमान के अनुसार देश में इस समय 65 करोड़ टन सूखा चारा, 76 करोड़ टन हरा चारा और 7.94 करोड़ टन पशु आहार उपलब्ध है। यह मात्रा पशुओं की मौजूदा संख्या की केवल 40 प्रतिशत जरूरत को पूरा करने में सक्षम है। दुधारू पशुओं के लिए मोटे अनाज, खली और अन्य पौष्टिक तत्वों की भारी कमी है। स्पष्ट है भूखे पशुओं से न दूध उत्पादन की अपेक्षा की जा सकती है और न ही अन्य अत्पादों की। अत: पशुचारा विकास की ओर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। चारे के उत्पादन पर एक मार नए किस्म के बीजों से पड़ी है। आजकल के बीज कम समय में पकते हैं और फसल भी अधिक देते हैं पर उनसे उपलब्ध चारा दिनो-दिन कम होता जा रहा है। पहले गेहूं के पौधे की सामान्य उँचाई चार फुट होती थी और पकने में समय लगता था पांच से छ: माह। जबकि आज के नए बीज से फसल तैयार हो जाती है 90 से 120 दिनों में और पौधे का कद घट कर रह गया है दो से अढ़ाई फुट। जाहिर है मार चारे पर ही पड़ी है न कि मुख्य फसल पर। पंजाब क्षेत्र में गेहूँ के तुरंत बाद मूंग की एक फसल ली जा रही है। यह फसल मात्र साठ ही दिन में पक तैयार हो जाती है इसलिए ही इसे 'साठी’  कहते हैं। कोढ़ मे खाज का काम यह है कि चारा उगाने के लिए रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है जिसका दुष्प्रभाव पशु और मनुष्य दोंनों के स्वास्थ्य पर देखा जा सकता है।
जानकारी का अभाव  
हमारे देश में दूध उत्पादन का जिम्मा जिन सवा करोड़ लघु व सीमांत किसानों पर है उनमें पशुपालन की वैज्ञानिक जानकारी का अभाव है। हमारी शिक्षा-प्रणाली में कहीं भी पशु-पालन के लिए औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा का कोई स्थान नहीं है। जरूरी है कि प्रौढ़ शिक्षा की तर्ज पर पशु-पालन की शिक्षा भी शुरू की जानी चाहिए, जिसके पाठ्यक्रम में दूध उत्पादन, वितरण एवं पशु रोगों जैसे आधारभूत विषय शामिल हों।
नस्ल सुधार कार्यक्रम
श्वेत क्रांति के नाम पर गाय-भैसों की देसी नस्लों की भी घोर उपेक्षा हुई और विदेशी नस्लों का प्रचलन बढ़ा। यह स्थिति और भी भयानक हो गई जब कृत्रिम गर्भाधान के अधकचरे ज्ञान के कारण हमने अजीब सी संकर नस्लें पैदा करलीं। ये संकर प्रजातियां न तो दूध देती हैं और न ही खेती के अन्य कामों के लिए उपयोगी हैं। चारे का अभाव और इस तरह की नाकारा नस्लें हमारे भविष्य पर एक बडा प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं।
लालच की हद
दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए नुकसानदेह हारमोन युक्त इंजेक्शनों का प्रचलन बढ़ा, जिससे दूध में हानिकारक रसायनों की मात्रा ख्रतरनाक हद तक बढ़ी हैं। ऑक्सीटोसिन के प्रयोग से निकाला गया दूध महिलाओं में बांझपन और पुरूषों में नपुंसकता बढ़ा रहा है। हमारा लालच यहीं नहीं रुका, हम इससे भी एक कदम आगे जाकर अब यूरिया और डिटरजेंट तक का प्रयोग करते हुए सिंथेटिक दूध भी बनाने लगे हैं।
क्या इतने कारण कम हैं किसी भी क्रान्ति के लिए? श्वेत क्रान्ति का अर्थ यही है कि स्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन और दूध उत्पादन के हर क्षेत्र में हम आत्म-निर्भर होते हुए दुग्ध उत्पाद निर्यातक देशों की श्रेणी में आएं।
- भू-मीत के फरवरी-मार्च अंक से

5 comments:

  1. अच्छी जानकारी ! अच्छा अध्ययन !
    बहुत खूब !बधाई ! जय हो !

    ReplyDelete
  2. अपनी तरह का शानदार और सार्थक प्रयास आपने किया है. आपकी टीम को बधाई व शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  3. जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट हेतु आभार |

    ReplyDelete
  4. Krishan ji congratulation, Looks like a beautifull magazine with a knowledgeable content. So is web site. Keep it up.
    Jagroop Canada

    ReplyDelete