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Saturday, March 9, 2013

इस तरह बेचें सब्जियां


हर उत्पाद की मार्केटिंग के दौर में अब समय आ गया है सब्जियों की मार्केटिंग का। यह ऐसा उत्पाद है जिसकी जरूरत हर वर्ग के लोगों को होती है। सस्ती हों या फिर महंगी खाने के लिए लोगों को सब्जी की जरूरत तो होती ही है। बाजार तक सब्जियों के पहुंचने से पहले उसमें बहुत से घाल-मेल होते हैं, जिसकी वजह से सब्जी की कीमत आसमान छूने लगती है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि कीमतों में इजाफे के बावजूद भी किसानों को कोई खासा फायदा नहीं होता है। अधिक से अधिक मुनाफा तो बिचौलियों और रिटेलर ले जाते हैं, आखिरकार घाटे में तो सब्जी उपजाने वाले किसान ही रहते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब किसानों ने सब्जी बेचने का एक अलग तरीका निकाला है। सब्जी को बेचने के लिए किसान अब सूचना तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। वे अब सब्जियों की आनलाइन डिलीवरी कर रहे हैं। इसमें उपभोक्ता सब्जियों की खरीदारी के लिए किसानों से सीधे संपर्क स्थापित करते हैं और उन्हें आसानी से घर बैठे ही सब्जियां मिल जाती है। वो भी ऐसी सब्जियां जो बाजार की सब्जियों से ज्यादा ताजी हों। ऐसा ही चलन पुणे के किसानों के बीच जोर पकड़ रहा है। पुणे महाराष्ट्र के सब्जी उत्पादक क्षेत्र का केंद्र है। यहां किसानों ने रिटेलर और बिचौलियों से दूरी बना ली है और उन्होंने डायरेक्ट टू होम मॉडल अपना लिया है। इसमें उपभोक्ता आनलाइन खरीदारी करते हैं वो भी किफायती दरों पर, क्योंकि इसमें किसान सब्जी बेचने में सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके लिए किसानों ने साथ मिलकर समूह तैयार किया है और अपने नेटवर्क के जरिए करीब 200 परिवारों को हर हफ्ते सब्जियों की होम डिलिवरी कर रहे हैं। इसमें शर्त बस एक है कि एक आर्डर कम से कम 150 रुपए का होना चाहिए। इसमें कामकाजी परिवारों को काफी सहुलियत होती है क्योंकि उन्हें इससे सब्जियों के लिए बाहर दुकानों पर नहीं जाना होता। इस ग्रूप में करीब 40 किसान हैं, जिन्होंने आनलाइन आर्डर के लिए चार लोगों को नौकरी पर लगा रखा है जिन्हें हर महीने बतौर वेतन 4 से 6 हजार रुपए तक दिए जाते हैं। चूंकि किसानों का ग्राहकों से सीधे संपर्क है इसलिए हर हाल में उन्हें मुनाफा ही होता है। इस तरीके को अपनाने के किसानों को लगभग 25 से 30 प्रतिशत का मुनाफा हो रहा है। डायरेक्ट मार्केटिंग की सबसे अहम खासियत इसका वित्तीय तौर पर व्यावहारिक होना है। कृषि आधारित कुछ सेवाओं में उत्पादों की डिलीवरी और उनका वितरण बेहद अहम है ताकि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत पसंद की वजह से ही महानगरों में अभी भी दूधवालों का मॉडल काम कर रहा है। 
पुणे की तरह ही देश में ऐसी अनेक जगह हैं जहां सब्जियों की पैदावार अच्छी होती है, लेकिन किसानों को इसका फायदा नहीं होता। उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य जहां सब्जियों की पैदावार काफी है लेकिन प्रबंधन सही नहीं होने की वजह से किसानों के मुनाफे में कमी होती है। इसके साथ-साथ ग्राहकों को भी ऊंची कीमतों पर सब्जियों की खरीदारी करनी पड़ती है। पुणे माडल के तर्ज पर ही अगर इन प्रदेशों के किसान भी चाहें तो काफी मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं। 
इसकी शुरुआत के बाद इन राज्यों के किसानों के लिए अलग से एक नया बाजार उभर सकता है, जो किसान परम्परागत सब्जीमंडी में अपनी उपज बेच रहे हैं वे अगर सब्जी की सफाई और छंटनी करके मंडी लाएं तो अच्छी कीमत पा सकते हैं। बची हुई सब्जियां भी वहीं थोड़ी कम कीमत पर बिक ही जाती हैं। किसान के मुनाफे में एक सेंधमारी वजन से भी होती है। अगर किसान अपने उत्पाद की तुलाई और व्यापारी के कांटे पर नजर रखें तो इस नुकसान से बचा जा सकता है।

सब्जी उत्पादन का शैश्वकाल


विश्व में फल-सब्जियों के उत्पादन में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इस सूची में अमेरिका का स्थान भारत के बाद आता है। यह जानकारी कुछ समय पहले कृषि तथा उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री प्रो. केवी थॉमस ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में दी थी। थॉमस ने भारतीय बागवानी आंकड़ों के हवाले से बताया कि वर्ष 2008-09 के दौरान चीन में जहाँ 107.83 मीट्रिक टन फल और 457.73 मीट्रिक टन सब्जी का उत्पादन हुआ वहीं भारत में 68.46 मीट्रिक टन फल और 129.07 मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन हुआ।  ज्ञात रहे फूलगोभी के उत्पादन में हमारा पहला प्याज में दूसरा और बंदगोभी में तीसरा स्थान है। 
सरकारी शोध इकाई भारतीय बागवानी शोध संस्थान   (आइआइएचआर) के निदेशक अमरीकसिंह सिद्धू का दावा है कि उन्नत बीज किस्मों के कारण सब्जियों और फलों के उत्पादन के मामले में भारत जल्द ही दुनिया के अग्रणी देश चीन को पीछे छोड देगा। उनका कहना है कि बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाने की अच्छी संभावना है, अभी हम चीन के बाद दूसरे स्थान पर हैं लेकिन इस उत्पादन के मामले में जल्द विश्व के अग्रणी देश बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि फसल तुड़ाई के बाद केवल इन सामग्रियों की बर्बादी को रोककर उत्पादन को आसानी से बढाया जा सकता है यह बर्बादी कुल उत्पादन का करीब 35 प्रतिशत है। इन सबके अलावा सिद्धू ने कहा कि सरकारी शोध संस्थानों द्वारा विकसित 500 के लगभग उन्नत बीज किस्मों के साथ उत्पादता को सुधारने की भारी संभावना है। 
बीजों के अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012 से 2017) में विपणन, कृषि क्षेत्र के मशीनीकरण और फसल तुड़ाई बाद के प्रबंधन पर नये सिरे से ध्यान देकर आने वाले वर्षों में बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाये जाने की उम्मीद है। इन सबके साथ एक क्रान्तिकारी पहल यह भी की जा रही है कि फल-सब्जियों के ट्रकों को अब एक ही परमिट पर देश में कहीं भी जाने की इजाजत है, उसे बार-बार नहीं रोका जाएगा।
आइआइएचआर, जिसने पहले ही फलों और सब्जियों के 125 किस्मों को जारी कर रखा है, ऐसी बीज किस्मों को विकसित करने के लिए शोध कर रहा है जिसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है और मांग-आपूर्ति की स्थिति को दुरुस्त रखने में मदद कर सकता है। आइआइएचआर के अनुसार मौजूदा समय में भारत में सब्जियों का उत्पादन स्तर काफी कम है जो कई अन्य देशों की तुलना में मात्र 16.13 टन प्रति हेक्टेअर ही है।
इन सभी समाचारों का एकमात्र उजला पक्ष है कि भारत सब्जी उत्पादन में दूसरे नम्बर पर है और पहले नम्बर वाले चीन को पीछे छोडऩे का इरादा रखता है। इन समाचारों को पढऩे के बाद एक शेर याद आ रहा है- ख्वाब तो कुछ बहुत अच्छे देखे हैं मगर, अहले तदबीरो अमल कुछ इनकी ताबीरें भी हैं? मतबल यह कि चीन और हमारे बीच फासला बहुत बड़ा है। जहां चीन में 457.73 मीट्रिक टन सब्जियां होती है वहीं भारत में इनका उत्पादन 129.07 मीट्रिक टन होता है जो चीन के उत्पादन का एक तिहाई भी नहीं है। 
दूसरा बड़ा कारण है रख-रखाव के अभाव में 35 प्रतिशत तक सब्जियां खराब हो जाती हैं। इसके बावजूद भी कोल्ड़-चेन के मामले में हमारी नजर आज भी विदेशों पर है। अगर हम किसी तरह उत्पादन बढ़ा भी लेगें तो उसे सम्भालेंगे कैसे? हमें दूसरे से तीसरे नंबर पर आते कोई ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि अमेरिका में और हमारे उत्पादन में कोई लम्बा-चौड़ा फासला नहीं है। कहा जा सकता है कि देश में अभी सब्जी उत्पादन का शैश्वकाल है, फिलहाल इस क्षेत्र में बहुत काम होना बाकी है, उम्मीद है कि नया साल कुछ नए और अच्छे समाचार लाएगा। 

- कृष्ण वृहस्पति