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Thursday, September 6, 2012

आई बरसात तो...

हालांकि भारतीय मौसम विभाग ने सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की है और उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सच ही होगी और लगातार तीसरे साल भी देश में जबरदस्त पैदावार होगी। लेकिन मानसून के सामान्य रहने के बावजूद देश के कौन से हिस्से में कितनी बरसात होगी, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। इस बार अप्रैल माह अपेक्षाकृत ठंडा रहा और मई में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी इसकी वजह बीच-बीच में पश्चिमी विक्षोभ का सक्रिय होना रहा। मैदानी क्षेत्रों में बारिश नहीं हुई, जबकि अप्रैल में पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हुई थी जिससे हवाओं का दिशा क्रम बदला और उत्तर-पश्चिमी सर्द हवाएं मैदानी इलाकों में सक्रिय रहीं। मई में बारिश अनुमान से कम हुई, इसलिए गर्मी बढ़ी। 
शुरूआती धीमी गति के बाद दक्षिण पश्चिम मॉनसून विगत कुछ ही दिनों में अपने मामूल पर आता लग रहा है। हालांकि 1 जून से 12 जून के बीच बारिश सामान्य से करीब 42 फीसदी कम हुई है। इस कमी को देखते हुए कई तरह के अनुमान लगाए जा रहा है, साथ ही अलनीनो उभरने का भी खतरा सामने है जो बरसात का सारा गणित बिगाड़ सकता है। भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक एल एस राठौर मॉनसून के प्रदर्शन को लेकर फिलहाल आश्वत हैं। वे कहते हैं कि चार महीने लंबे मॉनसून को पहले दो हफ्ते में हुई कम बारिश के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। तटीय इलाकों में अच्छी बरसात हुई है, मूंगफली उत्पादक इलाके रॉयलसीमा में 15 जुलाई से बुआई शुरू होती है और कर्नाटक के भीतरी क्षेत्र जहां मक्का और ज्वार की बुआई जून के आखिर में शुरू होती है वहां कम बरसात से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए काफी वक्त है। राठौर के अनुसार बरसात के कम या ज्यादा होने वाले कई कारणों में अलनीनो एक कारणतो है लेकिन इकलौता नहीं। भारतीय बरसात और अलनीनो के बीच कोई सीधा संबंध भी नहीं है। प्रशांत महासागर के तापमान में अगस्त तक .5 से .7 डिग्री की बढ़ोतरी की संभावना है, लेकिन सिर्फ इतने से अलनीनो नहीं बन जाते। यदि यह एक डिग्री से ज्यादा बढ़ता है तो अलनीनो बनेंगे। लेकिन यह अगस्त के बाद होगा तब तक मानसून के तीन महीने बीत चुके होंगे। अगस्त में बनने वाले अलनीनो का मॉनसून पर प्रभाव पडऩे में भी 15 से 30 दिन लगते हैं तब तक मॉनसून देश से विदा हो चुका होगा। इन सबके बावजूद भारतीय कृषि विभाग ने प्रतिकूल मौसम से निपटने के लिए अपनी क्षमताएं विकसित कर ली हैं। 
वर्ष 2009 में बरसात में 23 प्रतिशत कमी के बावजूद खाद्यान्न का उत्पादन करीब 21.8 करोड़ टन रहा था, जो 2008 के मुकाबले मात्र 7 प्रतिशत कम था। ज्ञात रहे वर्ष 2009 में जून माह में सामान्य से 47.2 प्रतिशत, जुलाई में 4.3 अगस्त में 26.5 और सितंबर में सामान्य से करीब 20.2 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। इसके विपरीत अगर बरसात उम्मीद से ज्यादा हो गई तो खेती का क्या होगा? के जवाब में वरिष्ठ कपास विशेषज्ञ डॉ. आर पी भारद्वाज कहते हैं कि- इस तरह की परिस्थितियों में इस क्षेत्र के हालात बिगड़ जाएंगे क्योंकि यहां इस वर्ष मुख्यत: दो ही फसलें है बीटी कॉटन और ग्वार। बीटी के जमीन से छूते हुए टिण्डों को फफूंद लगने से 20 से 25 प्रतिशत तक नुकसान होगा और ग्वार का पौधा बढ़ जाएगा 5 फुट तक ऊँचा, पर फली एक भी नहीं लगेगी। कृषि अनुसंधान केंद्र, गंगागनर के निदेशक और जल प्रबंधन विज्ञानी डॉ. बी एस यादव कहते हैं कि नुकसान और फायदा बरसात के समय पर निर्भर करता है, अगर बरसात ज्यादा और सितम्बर के अंत तक होती है तो कपास और ग्वार के लिए नुकसानदायक रहेगी। विशेषकर फसल कटाई के समय तक अगर बरसात रही तो बीटी कपास, ग्वार और मूंग तीनों को ही नुकसान हो सकता है, लेकिन गन्ने, धान तथा अगामी रबी फसलों के लिए यह फायदेमंद रहेगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन उप महानिदेशक डॉ. ऐके सिंह के अनुसार बरसात ज्यादा आने की संभावना नहीं है लेकिन दो बरसातों के बीच का अंतरात बढ़ जाएगा, तथा बरसात के दिन कम हो जाएंगे। बरसात के दिन कम होने से वर्षा का वेग अपेक्षाकृत तेज रहेगा और दो बरसातों के बीच अंतराल बढऩे से सूखा पडऩे की संभावना बढ़ जाएंगी। ऐसे मौसम के लिए हम नए बीज तैयार कर रहे हैं जो नई तकनीक से मात्र तीन से चार साल में तैयार हो जाएंगे।

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