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Thursday, November 1, 2012

हिंदी भाषी राज्य और सहकारिता

देश में सहकारिता के कुछ जानकारों का मानना है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले से चल रहा सहकारिता आंदोलन बिखरने के कगार पर है। हालांकि यह आज विराट रूप धारण कर चुका है और एक अनुमान के अनुसार इस समय देशभर में करीब 5 लाख से अधिक सहकारी समितियां सक्रिय हैं। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि वर्तमान मेंइस क्षेत्र में करोड़ों लोगों को रोज़गार भी मिल हुआ है। सहकारी समितियां समाज के अनेक क्षेत्रों में काम कर रही हैं, और बैंकिग, कृषि, उर्वरक और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में इनकी भागीदारी सर्वाधिक है। वैसे तो आज देश का सहकारी आंदोलन राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बनकर अनेक विसंगतियों के जाल में फंसा दिया गया है। लेकिन हिंदी-भाषी राज्यों सहकारिता का प्रदर्शन अब तक बहुत खराब रहा है इन राज्यों में सहकारिता आंदोलन को असफल और लूट-खसोट का जरिया मान लिया गया है। 
निराशा के इस माहौल में हिंदी भाषी राज्यों के लिए एक अच्छी खबर भी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ व हरियाणा ने अच्छे परिणाम दिए हैं। देश के 60 सर्वोत्तम जिला सहकारी बैंकों में यूपी के 4, बिहार के 5, उत्तराखंड के 8, पंजाब के 6, छत्तीसगढ़ के 4 और हरियाणा के 3 बैंकों ने अपना स्थान दर्ज कराया है। सहकारिता आंदोलन को गुजरात में जहां सबसे ज्यादा सफल माना जाता है वहां से सिर्फ 1 और महाराष्ट्र में 12 जिला सहकारी बैंक सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वालों में शामिल हुए हैं। सहकारिता आंदोलन को जांचने के लिए देश की सबसे अच्छे 60 जिला सहकारी बैंक चयनित हुए जिनमें सबसे अच्छा महाराष्ट्र रहा जहां के 12 सहकारी बैंक तो प.बंगाल जिसकी केवल 1 जिला सहकारी समिति का चयन हो सका और राजस्थान सबसे फिसड्डी राज्य साबित हुआ जिसकी एक भी सहकारी संस्था इसमें शामिल नहीं है।
पहले स्थान पर ओडिशा की बालासोर, दूसरे स्थान पर तमिलनाडु की विलुपुरम्म और तीसरा स्थान महाराष्ट्र के मुम्बई को मिला। सर्वोच्च दस में उत्तरप्रदेश का भी नम्बर आया, यहां के इटावा जिला सहकारी बैंक की प्रति शाखा व्यवसाय 11.16 करोड़ रुपए रहा जबकि देश की सर्वोच्च शाखा ओडिशा की बालासोर रही जहां 29.98 करोड़ का व्यवसाय प्रति शाखा रहा। गुजरात की तरह प. बंगाल की एकमात्र शाखा इन परिणामों पर खरी उतरी है। बहरहाल, सहकारिता में उत्तर भारत भले ही पिछड़ा नजर आए फिर भी कर्ज बांटने के मामले में यहां 2006-07 में 23872 करोड़ रुपए कृषि क्षेत्र में दिए गए जो कि 51 प्रतिशत था जबकि 49 प्रतिशत यानी 47069 करोड़ रुपए का कर्ज गैर कृषि क्षेत्र को दिया गया। वर्ष 2008-09 में कृषि क्षेत्र में 53 प्रतिशत कर्ज बांटा गया तो 47 प्रतिशत धन गैर कृषि क्षेत्र को दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र में हुए ताजा अध्य्यन में कहा गया है कि किसान को साहूकार के कर्ज पर निर्भर रहना पड़ता है जो 36 प्रतिशत से लेकर 120 प्रतिशत तक ब्याज वसूलते हैं। आंकड़ों के अनुसार 79 फीसदी किसान लघु श्रेणी के हैं जिनके 367 जिला सहकारी समितियों में 4401 करोड़ रुपए फंसे हैं जो कि बड़े लोगों के पास हैं। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि सहकारिता के तहत चलने वाले मिनी बैंकों के पास आज भी बहुत मौके हैं, जरूरत है तो सिर्फ ईमानदारी से काम करने की।

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