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Friday, January 4, 2013

यंत्रों की नकल में अक्ल का अभाव

इंसान ने कब, कहाँ और कैसे खेती करना आरंभ किया, इसका उत्तर देना आसान नहीं है। सभी देशों के इतिहास में खेती के विषय में कुछ न कुछ दावे जरूर किए गए हैं। माना जा सकता है कि आदिम समय में जब मनुष्य जंगली जानवरों का शिकार पर ही निर्भर था तथा बाद में जब उसने कंद-मूल, फल और अपने-आप उगे अन्न का उपयोग आरंभ कर दिया होगा। ऐसे ही शायद कभी किसी समय खेती द्वारा अन्न उत्पादन करने का आविष्कार किया गया होगा। वर्तमान में सारी पृथ्वी पर जहां भी संभव है खेती की जा रही है, यहां एक यह जानकारी भी रोचक हो सकती है कि दुनिया में आज भी ऐसे देश हैं जहां कुछ भूमि ऐसी है जहाँ पर खेती नहीं हो सकती जैसे अफ्रीका और अरब के रेगिस्तान, तिब्बत एवं मंगोलिया के ऊँचे पठार तथा मध्य आस्ट्रेलिया आदि और इंसानों में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो खेती नहीं करते जैसे कांगो के बौने और अंडमान के बनवासी।
फ्रांस में मिली आदिमकालीन गुफाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्वपाषाण युग में ही मनुष्य खेती से परिचित हो गया था। बैलों से हल जोतने का प्रमाण मिश्र की पुरातन सभ्यता से मिलता है। अमरीका में केवल खुरपी और मिट्टी खोदने वाली लकड़ी का पता चलता है। भारत में पाषाण युग में कृषि का विकास कितना और किस प्रकार हुआ था इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है, किंतु सिंधु नदी के पुरावशेषों के उत्खनन से इस बात के बहुत से प्रमाण मिले है कि आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में कृषि उन्नत अवस्था में थी और लोग राजस्व अनाज के रूप में चुकाते थे। ऐसा अनुमान पुरातत्वविद मुअन-जो-दड़ो में मिले बडे-बडे कोठरों के आधार पर करते हैं। हमारे देश में आधुनिक कृषि यंत्रों की अवधारणा बाकी सभी यंत्रों की तरह विदेश से ही आई है। आज देश में अस्सी प्रतिशत कार्य मशीनों की मदद से होने के बावजूद भी बहुत काम होना बाकी है। हमारे कृषि यंत्र निर्माता विदेशी यंत्रों की आंख बंद कर नकल कर रहे हैं, बिना यह सोचे-समझे कि देश की जमीनें, फसलें और उन्हें इस्तेमाल करने वाले लोग कैसे हैं?
नकल के सहारे हमारा काम अब तक जितना चल चुका वह बहुत है, आगे हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से न केवल यंत्र बनाने होंगे, बल्कि उन यंत्रों के लिहाज से बीज भी तैयार करने होंगे। उदाहरण लिए देश की एक प्रमुख फसल कपास को ही लें। अब तक कपास चुनने के लिए मजदूर बहुत ही सस्ती दरों पर उपलब्ध थे लेकिन मनरेगा के कारण आज कपास चुगाई के लिए किसी भी भाव पर मजदूर नहीं हैं। हालांकि कपास चुगाई कि एक देशी और एक विदेशी मशीन तैयार खड़ी है मगर उनके लिहाज से बीज तैयार नहीं हैं। मौजूदा कपास की किस्मों को इस मशीन से नहीं चुना जा सकता। अब इसके लिए या नई मशीन चाहिए या मशीन के अनुरूप बीज। ऐसे ही गेहूँ के लिए एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि यूरिया खाद उसके बीज के ठीक एक इंच नीचे होनी चाहिए लेकिन हम आज तक एक भी ऐसी मशीन तैयार नहीं कर सके। गेहूँ काटने के लिए हमने कम्बाइन की नकल तो करली पर यह बात भूल गए कि गेहूँ के दाने निकालने के बचा हुआ भाग पशु चारे के काम आता है। कम्बाइन से गेहूँ निकालने इस चारे की मात्रा आधी भी नहीं मिल पाती। क्या हम एक भी मशीन ऐसी तैयार नहीं कर सकते जो गेहूँ के बाद चारे को बचाले?

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