आम आदमी दूध की उपयोगिता को लेकर भले ही आश्वस्त हो पर आजकल चिकित्सा विशेषज्ञों में इस बारे में आम सहमति नहीं है। अब तक सिर्फ दूध की शुद्धता को लेकर ही सवाल उठते रहे हैं, पर अब तो दूध से होने वाले नुकसान भी चर्चा का विषय हैं। बेशक यह कहना मुश्किल है कि दूध हर उम्र, हर आदमी के लिए फायदेमंद ही होगा। दूध कितना पीया जाए, कौन सा पीया जाए, या पीया ही नहीं जाए इस बारे में मतभेद हैं। एक बहस इस बात पर भी है कि दूध शाकाहरी (वैज)खाद्यों में आता है या मासाहार (नॉनवैज)में। एक पश्चिमी अवधारणा के अनुसार लोग चार प्रकार के शाकाहारी होते हैं। पहले वे जो अण्डे और दूग्ध-उत्पाद खाते हैं लेकिन मास-मच्छी आदि नहीं खाते। (Lacto-ovo vegetarians) दूसरे वे हैं जो दूध-उत्पाद खाते हैं जिन्हें सनातन धर्मी शाकाहारी मानते हैं, यह लोग मास-मच्छी तथा अण्डे नहीं खाते। (Lacto vegetarians) तीसरे वे हैं जो वह लोग जो अण्डे तो खाते हैं मगर मास-मच्छी और दूध व उससे बने उत्पाद नहीं खाते। ( Ovo vegetarians) तथा चौथी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो शुद्ध शाकाहारी होते हैं, यह लोग दूध तो क्या शहद भी नहीं खाते। (Vegetanism) इस अवधारणा के अनुसार हिन्दू जिस शाकाहार में विश्वास रखते हैं लेक्टो-वेज़ेटेरियनिज़्म (Lacto vegetarians) के अंतरगत आता है। हिन्दू शहद, दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करते हैं इसलिए इन्हें शुद्ध शाकाहारी नहीं माना जाता। क्या दूध मांसाहार है? यह अलग बहस का विषय है कुछ लोग इसे धर्म नहीं बल्कि भाषा की समस्या मानते हैं। जैसे कि वेजेटेरियन को हिन्दी में शाकाहारी कहते हैं यह सही है, लेकिन नॉनवेज को हिन्दी में मांसाहार कहते हैं यह गलत है। नॉनवेज का अर्थ मांसाहार नहीं बल्कि अशाकाहार है, इस हिसाब से दूध शुद्ध शाकाहार नहीं है। अँग्रेजी के हिसाब से तो हर वह वस्तु जो वनस्पति/शाक नहीं है नॉनवेज है, मांसाहार है, क्योंकि वह मां के खून और मांस से निर्मित होता है।
अब इससे एक कदम आगे की बात करें, ओशो कहते हैं- दूध असल में अत्यंत कामोत्तेजक आहार है और मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी पर कोई पशु कामवासना से इतना भरा हुआ नहीं है। क्योंकि मनुष्य के अलावा अन्य कोई भी प्राणी या पशु बचपन के कु छ समय के बाद दूध नहीं पीता। किसी पशु को जरूरत भी नहीं है क्योंकि शरीर में दूध का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु अपनी मां का दूध पीते है, लेकिन दूसरों की माओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं जानवरों की माओं का। बच्चा एक उम्र तक दूध पीये, यह नैसर्गिक है। इसके बाद प्राकृतिक रूप से मां के दूध आना बंद हो जाता है। जब तक मां के स्तन से बच्चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है, उसके बाद दूध की आवश्यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्चे का शरीर बन गया, निर्माण हो गया—दूध की जरूरत थी, हड्डी, खून और मांस बनाने के लिए—ढ़ांचा पूरा हो गया, अब सामान्य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह सार दूध कामवासना का निर्माण करता है। मनुष्य फिर भी सारी उम्र दूध पीता है वह भी पशुओं का, जो निश्चित ही पशुओं के लिए ही उपयुक्त था।
आदमी का आहार क्या है? यह अभी तक ठीक से तय नहीं हो पाया है, लेकिन वैज्ञानिक जांच के हिसाब से आदमी का आहार शाकाहार ही हो सकता है। क्योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में जितना बड़ी आंत की जरूरत होती है, उतनी बड़ी आंत आदमी के भीतर है। मांसाहारी जानवरों की आंत छोटी और मोटी होती है, जैसे शेर की। चूंकि मांस पचा हुआ आहार है, उसे बड़ी आंत की जरूरत नहीं है। शेर चौबीस घंटे में एक बार भोजन करता है जबकि शाकाहारी बंदर दिन भर चबाता रहता है। उसकी आंत बहुत लंबी है और उसे दिनभर भोजन चाहिए। इसलिए तो कहा जाता है कि आदमी को एक बार ही ज्यादा मात्रा में खाने की बजाएं, दिन में कई बार थोड़ा-थोडा करके खाना चाहिए। दूध तो दरअसल पशु आहार है, और इसका सेवन अप्राकृतिक है। सादा दूध ही पचाना भारी था तिस पर मनुष्य ने दूध को मलाई, खोये और घी में बदल कर अपने लिए और भी मुश्किलें खड़ी करली हैं। अब भी आप वयस्क मानव के रूप में दूध पीना जारी रखते हैं तो फैसला आपका।
अब इससे एक कदम आगे की बात करें, ओशो कहते हैं- दूध असल में अत्यंत कामोत्तेजक आहार है और मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी पर कोई पशु कामवासना से इतना भरा हुआ नहीं है। क्योंकि मनुष्य के अलावा अन्य कोई भी प्राणी या पशु बचपन के कु छ समय के बाद दूध नहीं पीता। किसी पशु को जरूरत भी नहीं है क्योंकि शरीर में दूध का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु अपनी मां का दूध पीते है, लेकिन दूसरों की माओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं जानवरों की माओं का। बच्चा एक उम्र तक दूध पीये, यह नैसर्गिक है। इसके बाद प्राकृतिक रूप से मां के दूध आना बंद हो जाता है। जब तक मां के स्तन से बच्चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है, उसके बाद दूध की आवश्यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्चे का शरीर बन गया, निर्माण हो गया—दूध की जरूरत थी, हड्डी, खून और मांस बनाने के लिए—ढ़ांचा पूरा हो गया, अब सामान्य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह सार दूध कामवासना का निर्माण करता है। मनुष्य फिर भी सारी उम्र दूध पीता है वह भी पशुओं का, जो निश्चित ही पशुओं के लिए ही उपयुक्त था।
आदमी का आहार क्या है? यह अभी तक ठीक से तय नहीं हो पाया है, लेकिन वैज्ञानिक जांच के हिसाब से आदमी का आहार शाकाहार ही हो सकता है। क्योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में जितना बड़ी आंत की जरूरत होती है, उतनी बड़ी आंत आदमी के भीतर है। मांसाहारी जानवरों की आंत छोटी और मोटी होती है, जैसे शेर की। चूंकि मांस पचा हुआ आहार है, उसे बड़ी आंत की जरूरत नहीं है। शेर चौबीस घंटे में एक बार भोजन करता है जबकि शाकाहारी बंदर दिन भर चबाता रहता है। उसकी आंत बहुत लंबी है और उसे दिनभर भोजन चाहिए। इसलिए तो कहा जाता है कि आदमी को एक बार ही ज्यादा मात्रा में खाने की बजाएं, दिन में कई बार थोड़ा-थोडा करके खाना चाहिए। दूध तो दरअसल पशु आहार है, और इसका सेवन अप्राकृतिक है। सादा दूध ही पचाना भारी था तिस पर मनुष्य ने दूध को मलाई, खोये और घी में बदल कर अपने लिए और भी मुश्किलें खड़ी करली हैं। अब भी आप वयस्क मानव के रूप में दूध पीना जारी रखते हैं तो फैसला आपका।
आप के तर्क बहुत वाजिब हैं।
ReplyDeleteआपकी बात में वज़न है जी !
ReplyDeleteबधाई हो !
www.omkagad.blogspot.com
You are very correct....
ReplyDeletewell said.
sahi hai .
ReplyDeleteThank you Sir
Deletewah kya bat kahi
ReplyDeleteआपका कहना 100 फीसदी सही है क्योकिं हम जो दूध पीते है वो दरअसल किसी और का भोजन है यदि आदमी के साथ ऐसा कोई करे तो कैसा होगा कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी मां का दूध बच्चे के अलवा और प्राणी भी पिये और बच्चे को दिन में दो बार दिया जाये वो भी बहुत थोड़ा .....
ReplyDeleteलॉजिक सही है लेकिन बात मूर्खो वाली है ...ये इन्सान केवल ओशो और आज के वैज्ञानिकों कि बात करता है और हमारे ऋषि मुनियों,वेदों आदि का ज़िक्र नही करता ...क्या ये सब झूठे हैं...इनमे गाय के दूध को अमृत और घी को सबसे शक्तिदायक बताया गया है ,आज कि लंगड़ी सोच सही और आयुर्वेद का ज्ञान व्यर्थ !!
ReplyDeleteआप ओछी भाषा का इस्तेमाल न करके प्रमाण देंगे तो बहुतों का भला होगा और मुझ जैसे अल्पबुद्धि को भी कुछ सीखने के लिए मिलेगा...
Deleteवैसे भी बहुत सारे सच ऐसे हैं जो समय के साथ झूठे हो जाते हैं, जैसे शास्त्रों में पृथ्वी को अचला कहा गया है और सूर्य तथा अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं, और सच क्या है आपको भी पता है...
आपकी सलाह आयुर्वेद सम्मत है,स्वास्थ्य हेतु लाभकारी है।
ReplyDeleteआपकी सलाह आयुर्वेद सम्मत है,स्वास्थ्य हेतु लाभकारी है।
ReplyDeleteयह क्या बात हुई भाई
ReplyDeleteयह क्या बात हुई भाई
ReplyDeleteयह क्या बात हुई भाई
ReplyDeleteदूध को लेकर आप की बातें सही हैं। कई वर्ग के रोगियों और अधिक वय के व्यक्तियों के लिए दूध की लाभप्रदता पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। लेकिन आप के आख़िरी पैरा से मैं सहमत नहीं हूँ। इसेंशियल एमिनो एसिड और कई विटामिन ख़ास कर विटामिन बी-12 सिर्फ़ अशाकाहार से मिलता है। बी-12 दिमाग़ के विकास और विशेषकर बुढ़ापे के लिए बहुत ही आवश्यक है। अत: जो अशाकाहारी हैं उन्हें विटामिन बी-12 का टेबलेट या कैप्सूल लेना आवश्यक है।
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