दुनिया के किसी भी देश में एक भी ऐसा स्कूल नहीं बना जो छात्रों को मात्र किताबी पढ़ाई से खेती-बाड़ी के विषय में पारंगत बना दे। यह ज्ञान किताबों में जितना है उससे कहीं ज्यादा खेत और बाजार में है। वर्तमान में हमारे किसान के साथ एक बड़ी दिक्कत यह है कि वह अपने बच्चों को स्कूलों से किताबी ज्ञान तो दिलवा देता है लेकिन उसे खेत की 'ज़मीनी हकीकत से दूर रखता है। इसका एक दुष्परिणाम यह है कि आज खेत में 50 साल से कम उम्र के किसान गिने-चुने ही नजर आते हैं। इसका दूसरा नुकसान यह हुआ कि बच्चे पढ़-लिख कर अपना खेत होते हुए भी बेरोज़गारों की कतार में खड़े हैं। इस बात का यह अर्थ कतई न निकाला जाए कि किसान अपने बच्चों को पढ़ाए-लिखाए नहीं, बल्कि उसे अपने बच्चों को जरूर पढ़ाना चाहिए ताकि कृषि कार्यों में दुनिया भर में जो बदलाव आ रहे हैं वह उन्हें समझ सके। आइए जानते हैं कि इसकी शुरूआत घर से कैसे की जाए-
घर से करें आरम्भ
एक मान्यता के अनुसार, बिल्ली अपने बच्चों साथ ले जाकर 9 अलग-अलग घर दिखाती है और उनके बारे में जानकारी देती है। बिल्ली ऐसा करके अपने मातृत्व धर्म का निर्वाह तो करती ही है साथ ही अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार भी करती है। किसान को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को न सिर्फ खेती-किसानी की बारीकियां खेत में लेजाकर सिखाए बल्कि, उन्हें अपने साथ ले जा कर बाज़ार, मंडी और बैंक की कार्य पद्धतियों से भी परिचित करवाए।
बच्चे बनेंगे समझदार
सभी जानते हैं कि हम उन बातों को ज्यादा बेहतर ढ़ंग से और आसानी से सीखते हैं जिन्हें हम अपनी आखों से देख लेते हैं। जाहिर सी बात है आपके बच्चे भी आपको काम करता हुआ देखकर बेहतर ही सीखेंगे। आज के पढ़े-लिखे बच्चे जिन्हें अंग्रेजी भी आती है और कंप्यूटर भी जानते हैं। किताबी ज्ञान के साथ अगर व्यवहारिक ज्ञान भी मिल जाए तो वे बेहतर किसान के साथ-साथ अच्छे व्यवसायी भी बनेंगे।
शहर को बनाये पाठशाला
किसान शहर को अपने बच्चे के लिए पाठशाला समझें। जहां मंडियां तथा बैंक ऐसी पाठशालाएं है जो व्यवहारिक ज्ञान, धन और धन प्रबंधन के गुर एक साथ देती है। शहर में ही कृषि विभाग के कार्यालय हैं जहां सरकारी योजनाओं और अनुदान के बारे में नित-नई जानकारियां उपलब्ध रहती हैं। बीज, खाद और कीटनाशक बनाने वाली कम्पनियों के अधिकारी/कर्मचारी हैं जो इस क्षेत्र में दुनिया भर में होने वाले बदलाओं के बारे में आपका ज्ञान बढ़ाते रहते हैं।
नए रिश्ते भी बनेंगे
पहले तो किसान और आढ़तिये के बीच व्यवसाय के अतिरिक्त एक और पारिवारिक रिश्ता होता था। ये दोनों एक-दूसरे के सुख-दु:ख काम आते थे, पर समय के साथ यह रिश्ता अब कुछ अपवादों को छोड़कर बहुत औपचारिक रह गया है। किसान और बाज़ार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और किसी एक का गुजारा दूसरे के बिना नहीं चल सकता। अत: जिस आढ़तिये या दुकान पर खरीद-फरोख्त करते हैं वहां अपने बच्चों को भी लाएं, ताकि यह संबंध प्रगाढ़ हो और आगामी पीढ़ी के लिए परस्पर लाभदायक हो सके।
घर से करें आरम्भ
एक मान्यता के अनुसार, बिल्ली अपने बच्चों साथ ले जाकर 9 अलग-अलग घर दिखाती है और उनके बारे में जानकारी देती है। बिल्ली ऐसा करके अपने मातृत्व धर्म का निर्वाह तो करती ही है साथ ही अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार भी करती है। किसान को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों को न सिर्फ खेती-किसानी की बारीकियां खेत में लेजाकर सिखाए बल्कि, उन्हें अपने साथ ले जा कर बाज़ार, मंडी और बैंक की कार्य पद्धतियों से भी परिचित करवाए।
बच्चे बनेंगे समझदार
सभी जानते हैं कि हम उन बातों को ज्यादा बेहतर ढ़ंग से और आसानी से सीखते हैं जिन्हें हम अपनी आखों से देख लेते हैं। जाहिर सी बात है आपके बच्चे भी आपको काम करता हुआ देखकर बेहतर ही सीखेंगे। आज के पढ़े-लिखे बच्चे जिन्हें अंग्रेजी भी आती है और कंप्यूटर भी जानते हैं। किताबी ज्ञान के साथ अगर व्यवहारिक ज्ञान भी मिल जाए तो वे बेहतर किसान के साथ-साथ अच्छे व्यवसायी भी बनेंगे।
शहर को बनाये पाठशाला
किसान शहर को अपने बच्चे के लिए पाठशाला समझें। जहां मंडियां तथा बैंक ऐसी पाठशालाएं है जो व्यवहारिक ज्ञान, धन और धन प्रबंधन के गुर एक साथ देती है। शहर में ही कृषि विभाग के कार्यालय हैं जहां सरकारी योजनाओं और अनुदान के बारे में नित-नई जानकारियां उपलब्ध रहती हैं। बीज, खाद और कीटनाशक बनाने वाली कम्पनियों के अधिकारी/कर्मचारी हैं जो इस क्षेत्र में दुनिया भर में होने वाले बदलाओं के बारे में आपका ज्ञान बढ़ाते रहते हैं।
नए रिश्ते भी बनेंगे
पहले तो किसान और आढ़तिये के बीच व्यवसाय के अतिरिक्त एक और पारिवारिक रिश्ता होता था। ये दोनों एक-दूसरे के सुख-दु:ख काम आते थे, पर समय के साथ यह रिश्ता अब कुछ अपवादों को छोड़कर बहुत औपचारिक रह गया है। किसान और बाज़ार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और किसी एक का गुजारा दूसरे के बिना नहीं चल सकता। अत: जिस आढ़तिये या दुकान पर खरीद-फरोख्त करते हैं वहां अपने बच्चों को भी लाएं, ताकि यह संबंध प्रगाढ़ हो और आगामी पीढ़ी के लिए परस्पर लाभदायक हो सके।
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