Monday, June 11, 2012

कृषि आदानों पर गुण-नियत्रंण का गोरखधंधा

कृषि उत्पादन में आदानों की गुणवत्ता का महत्त्व किसी से छुपा नहीं है। कृषि विभाग भी मानता है कि कृषि आदानों की कीमतों में वृद्धि के कारण विक्रेताओं द्वारा अमानक और नकली कृषि आदान बेचने की सोच पैदा हो जाती है। बीज, उर्वरक एंव कीटनाशी रसायनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार द्वारा समय-समय पर अधिनियम/नियम/ आदेश पारित किए जाते हैं। गुणवत्ता युक्त बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीज अधिनियम 1966, बीज नियम 1968, बीज नियंत्रण आदेश 1983, उर्वरकों के लिए उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 तथा कीटनाशी रसायनों के लिए कीटनाशी अधिनियम 1968, कीटनाशी नियम 1971 बने हुए हैं।
इन कानूनों के तहत सभी राज्यों में कृषि आदानों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कृषि अधिकारियों को निरीक्षक की शक्तियां मिली हुई हैं। समस्त निरीक्षक राज्य के विभिन्न उपजिलों/जिलों में पदस्थापित है एवं इनके द्वारा अपने क्षेत्र में बिक रहे कृषि आदानों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने की पूर्ण जिम्मेदारी होती है। ये निरीक्षक अपने अधिकारिता क्षेत्र में कार्यरत समस्त विक्रय प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर कृषि आदान के नमूने ले सकते हैं। सम्बन्धित विक्रेताओं को बिलबुक रखना, स्टाक रजिस्टर भरना, बोर्ड पर मूल्य सूची और स्टॉक प्रदर्शित करना, उनके द्वारा क्रय किए गए आदान के स्रोत भण्डारण आदि कार्य इस व्यवसाय में सुनिश्चित करने होते हैं। इनमें अनियमितता पाए जाने पर कानून के तहत सम्बन्धित निर्माताओं और विक्रेताओं के विरूद्ध न्यायिक कार्यवाही की जाती है। निरीक्षण के दौरान सम्बन्धित निर्माता और विक्रेताओं के प्रतिष्ठान पर उपलब्ध कृषि आदानों के नमूने लेकर राजकीय परीक्षण प्रयोगशालाओं को भिजवाए जाते हैं। बीज, खाद और कीटनाशकों के नमूने अमानक पाए जाने पर सम्बधित कानूनों के तहत व्यवसाय करने वालों के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही भी की जाती है। यहां तक की स्थिति बहुत ही आदर्शवादी नजर आती है। घटिया खाद, बीज और कीटनाशी बेचने और बनाने पर सजा। यानी किसान के हितों का पूरा ख्याल। इसे समझने के लिए एक उदाहरण की जरूरत होगी, उसके लिए देश भर के सभी जिलों के कृषि आदानों के आंकड़े नहीं चाहिए। इसके लिए हम देश का एक जिले गंगानगर को लेगें और विशेषतय: बीज की बात करेंगे, क्योंकि सारे राजस्थान में जितने बीज उत्पादक हैं उससे दोगुने अकेले इस क्षेत्र में हैं। सारे देश की तरह यहां भी कृषि अधिकारी बीजों का नमूना दुकान-दुकान जाकर भरते हैं। बीज का एक नमूना तीन किलो का भरा जाता है, जिसे एक-एक किलो के तीन हिस्सों में बांट कर एक बीज विक्रेता के यहां, दूसरा जांच के लिए सरकारी प्रयोगशाला में और तीसरा विवाद की सूरत में दूबारा जांच के लिए संयुक्त निदेशक कृषि के कार्यालय में जमा करवाया जाता है। प्रयोगशाला 60 दिन में बता देती है कि यह नमूना मानक है या अमानक।
किसान हितों का ध्यान रखने के लिए बनाया गया कानून यहां आकर दम तोड़ देता है। इन 60 दिनों में बीज विक्रेता अपना सारा बीज बेच लेता है। अब अगर जांच रिर्पोट अमानक आ भी जाए तो फूटे किसान के। व्यापारी कानून से मिले हुए अपने हक के तहत दूबारा जांच के लिए दूसरी प्रयोगशाला में चला जाता जहां से रिर्पोट आती है 90 दिन में। जांच के इन पांच महिनों में किसान इस बीज से उपजी फसल बाजार में बेचकर फारिग भी हो चुका होता है। अब अगर दूसरी रिर्पोट भी अमानक आ जाए तो कृषि विभाग कानून के अनुसार मामले को अदालत के हवाले कर देता है, जहां वर्षों बाद व्यापारी को पहली गलती पर 500 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। दूसरी बार यह गुनाह साबित होने पर 1 हजार तक का जुर्माना और 6 माह तक की कैद या दोनों भी हो सकते हैं। बीज नियंत्रण आदेश 1983 में सजा कम से कम 1 वर्ष है। (यह दीगर बात है कि आज तक किसी भी बीज बनाने और बेचने वाले को एक दिन की भी सजा नहीं हुई है।)
कानून किसके हक में? जब इस पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बता कर राजस्थान सरकार के कृषि विभाग में संयुक्त निदेशक गुणवत्ता नियंत्रण, जगपाल सिंह से जब पूछा गया कि इस सारी कवायद का मतलब ही क्या है जब किसान को कोई फायदा ही नहीं है? तो उन्होंने जवाब के बदले सवाल किया कि जो अधिकार हमें कानून से मिले हैं, उससे ज्यादा हम कर भी क्या सकते हैं? नाम नहीं छापने की शर्त पर कृषि आदान के कुछ विक्रेता कहते हैं कि यह कानून कृषि विभाग की कमाई का बड़ा साधन है। इस बात की पुष्टि कृषि विभाग से मिले ये आंकड़े भी करते हैं। गंगानगर जिले में करीब 650 से ज्यादा बीज विक्रेता हैं और एक बीज विक्रेता की दूकान पर 50 किस्मों और उत्पादकों के बीज होते हैं। अगर उनके यहां से साल में एक वस्तु का एक नमूना भी भरा जाए तो पांच साल में 3250 नमूने भरे जाने चाहिए थे लेकिन विभाग द्वारा विगत पांच वर्षों में बीज के मात्र 680 नमूने ही भरे गए। जिनमें सिर्फ 48 अमानक पाए गए और 37 नमूनों की आज तक प्रयोगशाला से रिर्पोट ही नहीं आई।
विभाग इसके पीछे स्टाफ की कमी को कारण बताता है और व्यापारी कहते हैं कि इसके लिए विभाग के अधिकारियों की बाकायदा सेवा की जाती है। इसके बाद खानापूर्ति के लिए कुछ नमूने लिए जाते हैं, वह भी व्यापारी की इच्छा और पसंद के अनुसार। यहां ध्यान रखा जाता है कि घटिया कृषि आदान बनाने वाले संस्थानों के उत्पादों के नमूने नहीं भरे जाते, और जो नमूने लिए भी जाते हैं उन्हें एक साधारण कपड़े की थैली में डालकर संयुक्त निदेशक के कार्यालय में ऐसे ही पटक दिया जाते हैं, जो कुछ समय में ही फंगस लगकर खराब हो जाते हैं। नमूने किस प्रयोगशाला में भेजे जाएगें और उस नमूने का गुप्त नम्बर क्या है? यह भी आसानी से जाना जा सकता है और परिणाम को इच्छानुसार बदलवाया भी जा सकता है। भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत कहते हैं कि इस कानून से विभाग और व्यापारी दोनों राजी हैं, बात तो किसान के हितों की है, उसके नाम पर होने वाली इस लूट में हमेशा किसान ही खरबूजा साबित हुआ है। बीज अमानक निकल जाए तो किसान उपभोक्ता अदालत में जाकर भले ही कुछ राहत पा सकता है बीज कानून तो केवल भ्रष्ट अधिकारियों की जेब भरने का साधन मात्र है।

2 comments:

  1. सरकार ने अफसरों से चंदा भी तो लेना होता है, और ट्रान्सफर के समय सुविधा शुल्क ये सारे रस्ते उसी के लिए हैं सर... बहुत अच्छी रिपोर्ट है बधाई हो.

    ReplyDelete
  2. Kisano ke naam par sarkari karmachariyon dwara loot-khasoot koi nai baat nahi hai. Lekh achha hai.

    ReplyDelete