ज्यादातर भारतीय किसान उस कबूतर जैसी समझ रखते हैं जो बिल्ली को देखकर आखें बंद कर लेता है और सोचता है कि वह अब बिल्ली को मैं नज़र नहीं आ रहा। बैंक का क़र्ज़ नहीं चुका पाने की सूरत में वह बैंक के आगे से निकलना बंद कर देता है। घर आए बैंक के कर्मचारियों से मिलता नहीं है, उनके किसी पत्र का जवाब नहीं देता और अंतिम नोटिस तक छुपाकर बैठा रहता है। आखिरकार वह दिन भी आ जाता है जब सरकारी अधिकारी खड़ी फसल को जब्त कर लेते हैं और जमीन की कुर्की करने खेत पर आ खड़े होते हैं। जब कुर्की का नोटिस आ जाए तो क्या करना चाहिए, जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि लगभग हर राज्य में कृषि ऋण वसूलने के लिए कानून बने हुए हैं, जिनके तहत बैंक राज्य सरकार को ऋण वसूली का कार्य सौंप देते हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान में 1956 का कृषि ऋण अधिनियम जब कमजोर होता दिखा तो 21 सितंबर 1974 को राजस्थान कृषि ऋण संक्रिया (कठिनाइयाँ एवं निवारण) अधिनियम-1974 लागू किया गया और उसे भी 10 मार्च 1976 को सुधार करके और प्रभावी बनाया गया। इस कानून को हम अंग्रेजी के संक्षिप्त नाम राको-रोडा या रोडा एक्ट के नाम से ज्यादा जानते हैं।
क्या है वसूली कानून?
इस कानून के अंतर्गत बैंक ग्राहकों दो साधारण डाक और एक रजिस्टर्ड डाक द्वारा मांग-पत्र भेजता है। इस अंतिम नोटिस के एक माह बाद बैंक उस क्षेत्र के कलक्टर/ अतिरिक्त कलक्टर/उपखण्ड अधिकारी या तहसीलदार को ऋण करार की प्रमाणित प्रतिलिपि, खाते का प्रमाणित विवरण, मूल और ब्याज मिलाकर कुल रकम का विवरण, सम्बन्धित साक्ष्य के साथ बन्धक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि, बैंक में रहन रखी सम्पति के मूल्यांकन का ब्यौरा और वसूली हेतु बैंक द्वारा किए गए प्रयासों का विवरण प्रस्तुत कर निवेदन करता है कि चूककर्ता से राशि दिलवाई जाए। इसके बाद यह सक्षम अधिकारी चूककर्ता को किसी कर्मचारी के हाथ नोटिस भिजवा कर पैसे जमा करवाने या अपना पक्ष रखने के लिए कहता है। इसके बाद किसान थोड़ा सा हरकत में आता है और अब भी पैसे जमा करवाने की बजाए किसी वकील को ढूंढता है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि अगर आपके खाते में जोड़-बाकी का कोई अंतर है और उसे बैंक अधिकारी मान नहीं रहा हो तो यह सरकारी अधिकारी आपका पक्ष जरूर सुनेगा और बैंक को इस गलती को सुधारने के लिए बाध्य भी करेगा। ज्ञात रहे इसके लिए आपको किसी वकील की जरूरत नहीं है, खातेदार स्वयं अपना पक्ष अधिकारी के सामने रख सकता है।
क्या करना चाहिए?
किसान को बैंक से दो तरह का क़र्ज़ मिलता है। पहला किसान क्रेडिट कार्ड पर अधिकतम 3 लाख तक। इस ऋण का ब्याज फसल आने पर और मूल साल में एक बार एक या दो दिन के लिए जमा करवाना होता है। आजकल सरकार ने इस पर ब्याज दर मात्र 4 प्रतिशत ही लगाने के आदेश दे रखे हैं। चूक होने पर यह ब्याज दर 14 से 16 प्रतिशत हो जाती है। इस ऋण के बारे में सलाह यह दी जाती है कि बैंक का पैसा समय पर लौटाया जाए और अगर किसी वजह से पैसा नहीं है तो कहीं से भी दो-चार दिन के लिए ब्याज पर पकड़कर भी खाता खराब होने से बचा लें।
दूसरी तरह का ऋण किसी वस्तु विशेष के लिए तय किस्तों के साथ दिया जाता है। इस ऋण में सभी किस्तें समय पर भरवानी चाहिएं और अगर किसी वजह से किस्त की राशि पूरी नहीं बन रही है तो जितनी भी रकम हाथ में हो उतनी ही जमा करवा दें और जब स्थितियां अनुकूल हों तो बाकी रकम भी जमा करवा दें। अपने खाते की नकल समय-समय पर ले कर जांचते रहें कि कोई अंतर तो नहीं है।
खाता बिगडऩे पर
बैंक का पहला संदेश या नोटिस आते ही बैंक जाकर अधिकारी या प्रबंधक से मिलकर अपनी समस्या हो सके तो लिखित में बताएं। साथ ही उन्हें आश्वत करें कि बकाया राशि (ओवरड्यू) कब तक भरवा देंगे। इसके लिए कुछ राशि नकद या चेक देकर भी कानूनी कार्रवाही को टाला जा सकता है।
मंहगा है यह तरीका
अगर आपने सरकारी नोटिस के बाद पैसे जमा करवाए तो कुल राशि पर 2 प्रतिशत वसूली प्रभार और देना पड़ेगा तथा सरकार ने आपकी बैंक के पास रहन रखी भूमि कुर्क करके वसूली है तो 5 प्रतिशत वसूली के प्रभार देना होगा। मतलब यह कि अगर बैंक 5 लाख मांगता है तो इस नोटिस के बाद यह राशि 5 लाख 10 हजार और नीलामी के बाद 5 लाख 25 हजार हो जाती है। सार यह कि जब तक मामला बैंक के हाथ में है, तब तक ब्याज व जुर्माने आदि में छूट की गुंजाइश है, अगर सरकार द्वारा कुर्की नोटिस जारी हो गया तो 2 से 5 प्रतिशत का खर्चा पक्का है। इस बात को हमेशा याद रखें कि आपकी जमीन की कीमत आपके क़र्ज़ की राशि से कई गुणा ज्यादा होती है। अकसर यही होता है कि जमीन बेचकर बैंक की राशि बैंक को तथा अपना प्रभार काटकर शेष राशि खातेदार को दे दी जाती है। इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय भी आदेश दे चुका है कि सार्वजनिक वसूली के लिए किसी संपत्ति की नीलामी से बकाया रकम से ज्यादा पैसा मिलता है तो शेष धनराशि संपत्ति के मालिक को लौटा दी जानी चाहिए।
क्या है वसूली कानून?
इस कानून के अंतर्गत बैंक ग्राहकों दो साधारण डाक और एक रजिस्टर्ड डाक द्वारा मांग-पत्र भेजता है। इस अंतिम नोटिस के एक माह बाद बैंक उस क्षेत्र के कलक्टर/ अतिरिक्त कलक्टर/उपखण्ड अधिकारी या तहसीलदार को ऋण करार की प्रमाणित प्रतिलिपि, खाते का प्रमाणित विवरण, मूल और ब्याज मिलाकर कुल रकम का विवरण, सम्बन्धित साक्ष्य के साथ बन्धक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि, बैंक में रहन रखी सम्पति के मूल्यांकन का ब्यौरा और वसूली हेतु बैंक द्वारा किए गए प्रयासों का विवरण प्रस्तुत कर निवेदन करता है कि चूककर्ता से राशि दिलवाई जाए। इसके बाद यह सक्षम अधिकारी चूककर्ता को किसी कर्मचारी के हाथ नोटिस भिजवा कर पैसे जमा करवाने या अपना पक्ष रखने के लिए कहता है। इसके बाद किसान थोड़ा सा हरकत में आता है और अब भी पैसे जमा करवाने की बजाए किसी वकील को ढूंढता है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि अगर आपके खाते में जोड़-बाकी का कोई अंतर है और उसे बैंक अधिकारी मान नहीं रहा हो तो यह सरकारी अधिकारी आपका पक्ष जरूर सुनेगा और बैंक को इस गलती को सुधारने के लिए बाध्य भी करेगा। ज्ञात रहे इसके लिए आपको किसी वकील की जरूरत नहीं है, खातेदार स्वयं अपना पक्ष अधिकारी के सामने रख सकता है।
क्या करना चाहिए?
किसान को बैंक से दो तरह का क़र्ज़ मिलता है। पहला किसान क्रेडिट कार्ड पर अधिकतम 3 लाख तक। इस ऋण का ब्याज फसल आने पर और मूल साल में एक बार एक या दो दिन के लिए जमा करवाना होता है। आजकल सरकार ने इस पर ब्याज दर मात्र 4 प्रतिशत ही लगाने के आदेश दे रखे हैं। चूक होने पर यह ब्याज दर 14 से 16 प्रतिशत हो जाती है। इस ऋण के बारे में सलाह यह दी जाती है कि बैंक का पैसा समय पर लौटाया जाए और अगर किसी वजह से पैसा नहीं है तो कहीं से भी दो-चार दिन के लिए ब्याज पर पकड़कर भी खाता खराब होने से बचा लें।
दूसरी तरह का ऋण किसी वस्तु विशेष के लिए तय किस्तों के साथ दिया जाता है। इस ऋण में सभी किस्तें समय पर भरवानी चाहिएं और अगर किसी वजह से किस्त की राशि पूरी नहीं बन रही है तो जितनी भी रकम हाथ में हो उतनी ही जमा करवा दें और जब स्थितियां अनुकूल हों तो बाकी रकम भी जमा करवा दें। अपने खाते की नकल समय-समय पर ले कर जांचते रहें कि कोई अंतर तो नहीं है।
खाता बिगडऩे पर
बैंक का पहला संदेश या नोटिस आते ही बैंक जाकर अधिकारी या प्रबंधक से मिलकर अपनी समस्या हो सके तो लिखित में बताएं। साथ ही उन्हें आश्वत करें कि बकाया राशि (ओवरड्यू) कब तक भरवा देंगे। इसके लिए कुछ राशि नकद या चेक देकर भी कानूनी कार्रवाही को टाला जा सकता है।
मंहगा है यह तरीका
अगर आपने सरकारी नोटिस के बाद पैसे जमा करवाए तो कुल राशि पर 2 प्रतिशत वसूली प्रभार और देना पड़ेगा तथा सरकार ने आपकी बैंक के पास रहन रखी भूमि कुर्क करके वसूली है तो 5 प्रतिशत वसूली के प्रभार देना होगा। मतलब यह कि अगर बैंक 5 लाख मांगता है तो इस नोटिस के बाद यह राशि 5 लाख 10 हजार और नीलामी के बाद 5 लाख 25 हजार हो जाती है। सार यह कि जब तक मामला बैंक के हाथ में है, तब तक ब्याज व जुर्माने आदि में छूट की गुंजाइश है, अगर सरकार द्वारा कुर्की नोटिस जारी हो गया तो 2 से 5 प्रतिशत का खर्चा पक्का है। इस बात को हमेशा याद रखें कि आपकी जमीन की कीमत आपके क़र्ज़ की राशि से कई गुणा ज्यादा होती है। अकसर यही होता है कि जमीन बेचकर बैंक की राशि बैंक को तथा अपना प्रभार काटकर शेष राशि खातेदार को दे दी जाती है। इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय भी आदेश दे चुका है कि सार्वजनिक वसूली के लिए किसी संपत्ति की नीलामी से बकाया रकम से ज्यादा पैसा मिलता है तो शेष धनराशि संपत्ति के मालिक को लौटा दी जानी चाहिए।
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