हर उत्पाद की मार्केटिंग के दौर में अब समय आ गया है सब्जियों की मार्केटिंग का। यह ऐसा उत्पाद है जिसकी जरूरत हर वर्ग के लोगों को होती है। सस्ती हों या फिर महंगी खाने के लिए लोगों को सब्जी की जरूरत तो होती ही है। बाजार तक सब्जियों के पहुंचने से पहले उसमें बहुत से घाल-मेल होते हैं, जिसकी वजह से सब्जी की कीमत आसमान छूने लगती है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि कीमतों में इजाफे के बावजूद भी किसानों को कोई खासा फायदा नहीं होता है। अधिक से अधिक मुनाफा तो बिचौलियों और रिटेलर ले जाते हैं, आखिरकार घाटे में तो सब्जी उपजाने वाले किसान ही रहते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब किसानों ने सब्जी बेचने का एक अलग तरीका निकाला है। सब्जी को बेचने के लिए किसान अब सूचना तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। वे अब सब्जियों की आनलाइन डिलीवरी कर रहे हैं। इसमें उपभोक्ता सब्जियों की खरीदारी के लिए किसानों से सीधे संपर्क स्थापित करते हैं और उन्हें आसानी से घर बैठे ही सब्जियां मिल जाती है। वो भी ऐसी सब्जियां जो बाजार की सब्जियों से ज्यादा ताजी हों। ऐसा ही चलन पुणे के किसानों के बीच जोर पकड़ रहा है। पुणे महाराष्ट्र के सब्जी उत्पादक क्षेत्र का केंद्र है। यहां किसानों ने रिटेलर और बिचौलियों से दूरी बना ली है और उन्होंने डायरेक्ट टू होम मॉडल अपना लिया है। इसमें उपभोक्ता आनलाइन खरीदारी करते हैं वो भी किफायती दरों पर, क्योंकि इसमें किसान सब्जी बेचने में सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके लिए किसानों ने साथ मिलकर समूह तैयार किया है और अपने नेटवर्क के जरिए करीब 200 परिवारों को हर हफ्ते सब्जियों की होम डिलिवरी कर रहे हैं। इसमें शर्त बस एक है कि एक आर्डर कम से कम 150 रुपए का होना चाहिए। इसमें कामकाजी परिवारों को काफी सहुलियत होती है क्योंकि उन्हें इससे सब्जियों के लिए बाहर दुकानों पर नहीं जाना होता। इस ग्रूप में करीब 40 किसान हैं, जिन्होंने आनलाइन आर्डर के लिए चार लोगों को नौकरी पर लगा रखा है जिन्हें हर महीने बतौर वेतन 4 से 6 हजार रुपए तक दिए जाते हैं। चूंकि किसानों का ग्राहकों से सीधे संपर्क है इसलिए हर हाल में उन्हें मुनाफा ही होता है। इस तरीके को अपनाने के किसानों को लगभग 25 से 30 प्रतिशत का मुनाफा हो रहा है। डायरेक्ट मार्केटिंग की सबसे अहम खासियत इसका वित्तीय तौर पर व्यावहारिक होना है। कृषि आधारित कुछ सेवाओं में उत्पादों की डिलीवरी और उनका वितरण बेहद अहम है ताकि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत पसंद की वजह से ही महानगरों में अभी भी दूधवालों का मॉडल काम कर रहा है।
पुणे की तरह ही देश में ऐसी अनेक जगह हैं जहां सब्जियों की पैदावार अच्छी होती है, लेकिन किसानों को इसका फायदा नहीं होता। उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य जहां सब्जियों की पैदावार काफी है लेकिन प्रबंधन सही नहीं होने की वजह से किसानों के मुनाफे में कमी होती है। इसके साथ-साथ ग्राहकों को भी ऊंची कीमतों पर सब्जियों की खरीदारी करनी पड़ती है। पुणे माडल के तर्ज पर ही अगर इन प्रदेशों के किसान भी चाहें तो काफी मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं।
इसकी शुरुआत के बाद इन राज्यों के किसानों के लिए अलग से एक नया बाजार उभर सकता है, जो किसान परम्परागत सब्जीमंडी में अपनी उपज बेच रहे हैं वे अगर सब्जी की सफाई और छंटनी करके मंडी लाएं तो अच्छी कीमत पा सकते हैं। बची हुई सब्जियां भी वहीं थोड़ी कम कीमत पर बिक ही जाती हैं। किसान के मुनाफे में एक सेंधमारी वजन से भी होती है। अगर किसान अपने उत्पाद की तुलाई और व्यापारी के कांटे पर नजर रखें तो इस नुकसान से बचा जा सकता है।
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