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Thursday, July 14, 2011

कहीं रद्द न हो जाए बीमा पॉलिसी

रोज़मर्रा की व्यस्तताओं के चलते अक्सर लोग समय पर बीमे की किस्त देना भूल जाते हैं, या फिर उस समय पास में इतना पैसा नहीं होता कि किस्त भरी जा सके। कभी-कभार जान-बूझकर भी किस्त चुकाने के समय को अनदेखा कर देते हैं और बीमा पॉलिसी में चूक (लैप्स) हो जाती है। पॉलिसी चूकने के बाद न केवल बीमा सुरक्षा राशि प्राप्त करने का अधिकार निरस्त हो जाता है बल्कि आर्थिक क्षति भी होती है। बीमा कंपनी द्वारा तय समय सीमा या रिआयत अवधि के अंदर किस्त का भुगतान नहीं करने पर पॉलिसी रद्द हो जाती है, जिसका सीधा अर्थ है बीमाकर्ता व बीमित व्यक्ति के बीच बीमा अनुबंध का समाप्त होना। तीन साल पुरानी या कम अवधि की यूलिप (युनिट लिक्ड प्लान या शेअर बाजार पर आधारित बीमा योजना) अथवा नियमित योजनाओं में किस्त का सालाना भुगतान करने पर ज्यादातर मामलों में एक माह का अतिरिक्त समय मिलता है, इस दौरान सुरक्षा जारी रहती है तथा किसी भी अनहोनी की दशा में दावे का फायदा भी उत्तराधिकारी को मिलता है। रिआयत अवधि में भी किस्त न भरने पर पॉलिसी समाप्त हो जाती है। सावधि (टर्म), धन-वापसी (मनीबैक) व बन्दोबस्ती (एंडॉवमेंट) सरीखी पारम्परिक योजनाओं में भी एक माह की रिआयत अवधि है।
इरडा द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार पॉलिसी संख्या के लिहाज 18 प्रतिशत व किस्त के लिहाज से 10 प्रतिशत बीमे प्रतिवर्ष समाप्त हो जाते हैं, दूसरी ओर पारम्परिक (ट्रेडिशनल) योजनाओं में यह दर थोड़ी कम किन्तु सावधि (टर्म) योजनाओं में अपेक्षाकृत ज्यादा रही है। किस्त अवधि के लिहाज से 19 प्रतिशत और  पॉलिसी संख्या के लिहाज से 28 प्रतिशत बीमा-पत्र आलोच्य अवधि में निरस्त हुए हैं। चूक दर पेंशन योजनाओं में सबसे कम रही वहीं नॉन-मेडिकल पॉलिसी में मेडिकल सुरक्षा पॉलिसी से ज्यादा चूक हुई है।
गलत विक्रय है मुख्य कारण
जानकारों के अनुसार एजेंट द्वारा गलत विक्रय (मिस-सेलिंग) की वजह से ज्यादातर बीमों में चूक होती है। दरअसल एजेंट व मार्केटिंग टीम ग्राहक को ऐसा उत्पाद बेचने का प्रयास करते हैं जो खरीदार की कमाई से मेल नहीं खाता। परिणामस्वरूप, कुछ समय के बाद उस पॅालिसी के रद्द  होने की स्थिति पैदा हो जाती है। बीमा कंपनियां एजेंट्स को नई पॉलिसियों पर हर साल 20,000 करोड़ रुपये कमीशन के रूप में देती हैं। पॉलिसी के पहले साल के कमीशन पर ज्यादा रकम खर्च करने के पीछे निश्चित रूप से ज्यादा से ज्यादा नया व्यवसाय लाने का गणित होता है।
जरूरत के अनुरूप करवांए बीमा
इसलिए बीमा करवाते समय भविष्य की जरूरतों का आकलन करें । भविष्य की संभावित आवश्यकताओं और खर्चों को ध्यान में रखकर ही पॉलिसी खरीदें। किस्त राशि उतनी ही रखें जिसे आसानी से भरवाई जा सके, साथ ही यह भी ध्यान रखें कि भविष्य में आपकी आर्थिक स्थिति में क्या-क्या बदलाव हो सकते हैं।
एजेंट पर निर्भर न रहें
किस्त भरने के मामले में केवल बीमा एजेंट के ऊपर निर्भर न रहें, यह जिम्मेदारी खुद उठाएं। पते में बदलाव, उत्तराधिकारी का चयन या बदलाव, फंड का चयन या बदलाव, टॉप-अप, ऋण, बीच में राशि लेना, बीमा समाप्त करना आदि कार्य निर्णय जहां तक संभव हो खुद ही लें।
नियमित करें किस्त का भुगतान
बीमा पॉलिसी से लगातार प्यार करते रहिए यानी किस्त का भुगतान नियमित और समय पर करते रहें। किसी वजह से यदि चूक हो भी जाए तो रिआयत अवधि का लाभ उठाते हुए किस्त जरूर भरें। वेतन, बचत योजना, मासिक, तिमाही, छमाही या सालाना किस्त अवधि जो भी हो, उसका ध्यान रखें। किस्त भरने की तारीख को डायरी या कैलेंडर पर लिख कर रखें ताकि भूल न हो।
जाने भुगतान के तरीके
नई तकनीक के सौजन्य से अर्थात क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सिस्टम, प्रीमियम पॉइंट, मोबाइल एसएमएस, नेट बैंकिंग, एटीएम, आटो डेबिट व चेक पिकअप सेवा जैसे ढ़ेर सारे विकल्पों के होते अब किस्त भरना और भी आसान हो गया है।
बीमा कंपनियां भी कर सकती हैं पहल
बीमे की किस्तों में चूक होने पर बीमाधारक की रकम व सुरक्षा चली जाती है, एजेंट का कमीशन समाप्त हो जाता है और इसका सबसे रोज्यादा असर तो बीमा व्यवसाय की वृद्धि पर पड़ता है जिससे बीमा कंपनी का लाभ भी प्रभावित होता है। इसलिए मुख्य कदम तो बीमा कंपनियों को ही उठाना है। पहले साल का कमीशन अधिक होने की वजह से एजेंट नई पॉलिसियां ही बेचने के इच्छुक रहते हैं, उनकी दिलचस्पी पुरानी पॉलिसियों के चलते रहने में कम हो जाती है। इस वजह से नया व्यवसाय तो बढ़ता जाता है पर पुरानी पालिसियां रद्द होती जाती हैं। अगर बीमा कंपनियां पहले साल का कमीशन घटा दें और पुराने बीमों के जारी रखने पर विशेष प्रोत्साहन राशि दे तो यह समस्या कम हो सकती है। ऐसे ही किस्त जमा होने को सुनिश्चित बनाने व ग्राहक को इसकी याद दिलाने पर भी प्रोत्साहन राशि रखी जा सकती है।

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