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Saturday, March 17, 2012

हमें क्यों नहीं आता उचित जल-प्रबंधन?

हम भारतीयों की एक पुरानी आदत है कि, जब कोई बाहर वाला हमारी खूबी या कमी न बताए तब तक हमें विश्वास ही नहीं होता कि हम किन मामलों में कुशल हैं और किन में डफर। अगर हमारी कुछ समस्याएं हैं तो उन पर शोध या अध्ययन का काम भी हमारे यहां स्वत: नहीं होता, इसके लिए अमेरिका के नासा जैसे किसी संस्थान को ही अपने आप करना पड़ता है। नासा के जल विज्ञानी मेट रोडल ने पानी को लेकर देश भर में बरती जा रही लापरवाही के प्रति आंखे खोलने वाली एक रपट तैयार की है। इस रपट में भारत में सूखे की स्थिति पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक अहम कारण बताया है जमीन से अंधाधुंध जल का दोहन, नतीजा देश के 604 जिलों में से 246 मतलब यह कि आधा देश सूखे की चपेट में है।
2002 से 2008 के बीच संकलित आंकड़ों के विशषलेणानुसार नासा की इस रपट में बताया गया है कि भारत के कई राज्य क्षमता से अधिक जल दोहन कर रहे हैं। क्षमता से तात्पर्य यह है कि ये राज्य अपने यहां होने वाली वर्षा के अनुपात से कहीं ज्यादा जल दोहन कर रहे हैं। देश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में इस दौरान तकरीबन 109 क्यूबिक किलोलीटर पानी की कमी हुई है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान हर साल औसतन 17.7 अरब क्यूबिक लीटर पानी जमीन के अंदर से निकाल रहे हैं। जबकि केंद्र की तरफ से लगाए गए अनुमान के मुताबिक इन्हें हर साल 13.2 अरब क्यूबिक लीटर पानी ही जमीन के अंदर से निकालना था। इस तरह ये तीन राज्य मिलकर क्षमता से लगभग 30 फीसदी ज्यादा पानी का दोहन कर रहे हैं। इससे भूजल स्तर में हर साल 4 सेंटीमीटर यानी 1.6 इंच की कमी आ रही है जबकि सालाना वर्षा से यहां महज 58 फीसदी भूजल का ही रिचार्ज हो पाता है। पांच नदियों वाले पंजाब में इस समय करीब 14 लाख सब्मर्सिबल पम्प दिन-रात धरती की कोख से पानी उलीच रहे हैं।
जाहिर है इस अंधाधुंध जल दोहन और इससे होने वाली भूजल स्तर में गिरावट के परिणाम खतरनाक होंगे। अगर जल दोहन इसी तरह से जारी रहा तो आने वाले समय में भारत को अनाज और पानी के भारी संकट को झेलना होगा। आज भी देश के कई हिस्सों में लोगों को साफ पेयजल नहीं मिल पा रहा है। कई क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में हैंडपैंप से पानी आना बंद हो जाता है। वहां के लोगों को हर साल बोरिंग को कुछ फुट गहराना पड़ता है। पानी के घटते स्तर की भयानकता में पंजाब नंबर एक पर है उसके बाद हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु आते हैं। पंजाब की स्थिति भंयकरतम इसलिए मानी जानी चाहिए क्योंकि प्रदेश में कुल 118 ब्लाक मंडल जल संभर (डार्क जोन) हैं। उनमें से 62 की गिनती तो अति दोहित क्षेत्रों में आ चुकी है, इन क्षेत्रों में मानसून से पूर्व भूजल स्तर 4 मीटर तक नीचे चला जाता है। इन राज्यों में जमीनी पानी का यह हाल इसलिए है कि नहर और नदियों के जल वितरण पर सरकार का नियंत्रण है और जमीन से पानी निकालने पर कोई पाबंदी नहीं है।
दरअसल, इस पूरी समस्या की जड़ में जल का सही प्रबंधन नहीं होना है, और जब तक जल प्रबंधन की सही नीति नहीं बनाई जाएगी और उस पर उतनी ही तत्परता और कुशलता से अमल नहीं किया जाएगा तब तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। पानी के इस्तेमाल को लेकर उदासीनता का भाव सिर्फ आम लोगों और किसानों में ही नहीं बल्कि सरकारी स्तर पर भी गहरे तक व्याप्त है। यही वजह है कि साफ पानी की समस्या दिनोंदिन गहराती जा रही है। यह समस्या इसलिए भी और अहम हो जाती है कि दुनिया की कुल आबादी के तकरीबन सत्रह फीसदी लोग भारत में रहते हैं, जबकि दुनिया का महज साढ़े चार फीसदी पानी ही यहां उपलब्ध है। ऐसे में जल समस्या से दो-चार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं लगती। यह बात तो सब जानते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ाया तो नहीं जा सकता, लेकिन सावधानी बरत कर उन्हें बचाया जरूर जा सकता है और उनका उपयोग लम्बे समय तक किया जा सकता है। इसकी शुरूआत जल वितरण की व्यवस्था को सुधार कर की जा सकती है। जल संरक्षण के प्रति आम भारतीयों के मन में उपेक्षा का भाव तो है ही, कोढ़ में खाज यह है कि इस कार्य के लिए आवश्यक तकनीक की भी कमी है और जो तकनीक उपलब्ध हैं उससे आम लोग अनजान हैं। वर्षा जल-संग्रह और उसका किफायती इस्तेमाल एक अच्छा विकल्प है, पर इस तरह के प्रयास काफी सीमित मात्रा में बहुत छोटे स्तर पर हो रहे हैं। इस वजह से देश में होने वाली बारिश के पानी का अस्सी फीसदी हिस्सा समुद्र में पहुंच जाता है। भारत में वार्षिक बारिश औसतन 1,170 मिमी होती है, अगर जल की इस विशाल मात्रा का आधा भी बचा लिया जाए तो स्थिति में आश्चर्यजनक बदलाव आ सकता है।

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