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Friday, July 27, 2012

भंडारण में सरकार को सुझाव

हरित क्रांति और कृषि क्षेत्र में लगातार अनुसंधान से हमने पैदावार तो बढ़ाली लेकिन अनाज भंडारण की समस्या आज भी बनी हुई है। हर नयी फसल आते ही इस समस्या की गंभीरता की ओर ध्यान भी जाता है। किन्तु ढाक के तीन पात की तरह स्थिति जस की तस बनी रहती है। देश में अनाज भंडारण की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण प्रतिवर्ष 58000 करोड़ रुपए मूल्य से अधिक का अनाज नष्ट हो जाता है। गत वर्ष इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए ऐसे अनाज को गरीबों में मुफ्त बाँट देने का निर्देश दिया था। हालांकि केन्द्र सरकार द्वारा पिछले दो वर्षों से भंडारण क्षमता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें निजी क्षेत्र में गोदाम निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कुछ योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। लेकिन इसके बावजूद अभी तक कोई उल्लेखनीय प्रगति हो नहीं पायी है।
 देश में केंद्र स्तर पर केन्द्रीय भंडारण निगम और भारतीय खाद्य निगम अनाज भंडारण की दो सरकारी एजेन्सियाँ हैं और इनकी (अपनी तथा किराये पर ली गई) कुल भंडारण क्षमता क्रमश: 10.09 तथा 33.60 मिलियन टन है लेकिन व्यवहार में इनकी इस पूरी क्षमता का उपयोग हो नहीं पाता और समझा जाता है कि 80 प्रतिशत के करीब ही वास्तविक भंडारण क्षमता मिल पाती है। इससे भी बुरा हाल शीत भंडारण गृहों का है जिनकी अत्यन्त अपर्याप्त संख्या एवं क्षमता के कारण सब्जी और फल पैदा करने वाले किसान कभी भी अपनी उपज का पूरा मूल्य नहीं ले पाते।
इस पसमंजर में संसद की खाद्य एवं आपदा प्रबंधन सम्बन्धी स्थायी समिति ने भंडारण की समस्या को हल करने के लिए सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं। पहला यह है कि भंडारण का निजीकरण व विकेन्द्रीकरण कर दिया जाए। दूसरा सुझाव था कि अनाज वितरण व्यवस्था में सुधार किया जाए।  समिति का मानना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (साविप्र)की प्रक्रिया में थोड़ा सा बदलाव लाकर इस दिक्कत से निजात पायी जा सकती है। समिति के अनुसार साविप्र के तहत अभी कार्डधारकों को जहाँ हर माह खाद्यान्न दिया जाता है उसकी जगह अगर छ: माह का राशन इकट्ठा दे दिया जाए तो इससे न सिर्फ गोदामों में एकमुश्त जगह खाली हो जाएगी बल्कि उसके रख-रखाव पर आने वाले खर्च में भी कमी आएगी। समिति का अनुमान है कि सरकारी गोदामों में एक किलो अनाज साल भर रखने पर 4 रु. 40 पैसे का खर्च आता है। इस अनाज को अगर छ: माह पहले ही वितरित कर दिया जाए तो 2 रु. 20 पैसे प्रति किलो की बचत होगी, जिसे कार्डधारकों को अनाज सस्ती दर पर दिया जा सकता है। देश के सभी कार्डधारकों को दिए जाने वाला छ: माह का राशन अनुमानत: 216 लाख टन बनाता है। यह जगह गोदामों में नया अनाज रखने हेतु खाली हो जाएगी और इस मद में सरकार द्वारा निजी गोदामों को दिया जा रहा किराया भी बचेगा।
एक अन्य सुझाव यह है कि सरकार जो अनाज किसानों से खरीदती है, आपसी अनुबंध के जरिए उसकी आधी कीमत पेशगी के तौर पर किसान को देदी जाए और अनाज किसान के ही पास रहने दिया जाए। निश्चित समय सीमा के बाद सरकार अनाज रखने वाले किसान को प्रति किलो 4रु.40 पैसे का सालाना के अनुसार भुगतान भी कर सकती है। यह एक उपयोगी सुझाव है जिससे दोहरा मंतव्य पूरा हो सकता है लेकिन इसे व्यवहार में लाने में कई कठिनाइयाँ आ सकती हैं। जैसे, किसान अनाज की कितनी हिफाजत रख सकेगा, पेशगी लेकर अगर वह बाद में अनाज सरकार न दे तो?
इस कार्य में सरकारी स्टॉफ व परिवहन बहुत जरूरत पड़ेगी आदि-आदि। लेकिन यदि ऐसा हो जाए तो बिना किसी अतिरिक्त खर्च के सरकार किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दे सकती है और भण्डारण के झमेले से भी बच सकती है। इसका एक दूसरा पेच यह भी है कि अनाज की खरीद से लेकर परिवहन व भंडारण तक के कार्य में निजी क्षेत्र का भारी दखल है और यह लॉबी बहुत प्रभावशाली भी है। इसलिए ऐसे किसी भी परिवर्तन का वह हर हाल में विरोध ही करेगी।
केन्द्र सरकार ने भंडारण क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से ग्रामीण भंडारण योजना चलाई हुई है जिसके तहत निजी क्षेत्र गोदाम बनाकर सरकार को किराये पर देता है और सरकार उसे अनुदान के साथ-साथ एक निश्चित समयावधि (पहले सात साल थी जिसे अब दस साल कर दिया गया है) के लिए किराये का अनुबंध भी करती है। गत वर्ष अप्रेल में केन्द्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के.वी. थॉमस ने ऐसे पंजीकृत गोदामों में रखे गए किसानों की उपज की रसीद को हुंडी की मान्यता प्रदान करते हुए घोषणा भी की थी कि किसान इन रसीदों के आधार पर न सिर्फ बैंकों से कर्ज प्राप्त कर सकेंगे बल्कि जरुरत पडऩे पर रसीद को उसके अंकित मूल्य पर बेच भी सकेंगे। किसानों के हित में यह एक क्रांतिकारी कदम था लेकिन यह योजना मार्च 2012 में समाप्त भी हो गई और निजी क्षेत्र में वांछित गोदाम निर्माण भी नहीं हुए। गोदाम बनवाना तो वैसे भी सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक अगर कानून की शक्ल लेता है तो अनाज भंडारण सरकार की बड़ी मजबूरी बन जाएगी। ऐसे में भंडारण को केंद्रीयकृत करने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना ही पड़ेगा।

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