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Tuesday, July 31, 2012

भण्डारण में बंटाधार

हरित क्रान्ति के बाद भले ही हमें भुखमरी से निजात मिल गई है, पर उस क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पादित अन्न को आज तक सहेजना नहीं सीखा। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र की तीन बड़ी एजेंसियां भारतीय खाद्य निगम (एफ सी आई), केंद्रीय भण्डारण निगम (सी.डब्ल्यू.सी.) और राज्यों के भण्डारण निगम (एस डब्ल्यू सी एस)देश में व्यापक पैमाने पर भण्डार एवं भण्डारण क्षमताओं को निर्मित करने में व्यस्त हैं। इसके अलावा सरकार ने निजी क्षेत्र को भी गोदाम बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, फिर भी नतीजे हमारे सामने हैं और हर साल लाखों टन अनाज खुले में पड़ा खराब हो जाता है।
भारतीय खाद्य निगम के पास सबसे बड़ी कृषि गोदाम प्रणाली है जिसकी सम्पूर्ण भारत में स्थित लगभग 1450 से अधिक गोदामों में 2.5 करोड़ टन से अधिक भण्डारण क्षमता है, जिसमें निजी एवं किराए के गोदाम शामिल हैं। सी.डब्ल्यू.सी. इस समय यह पूरे देश में 514 गोदाम चलाता है जिनकी भण्डारण क्षमता सवा करोड़ टन है। भारतीय खाद्य निगम अपने भण्डारों का इस्तेमाल मुख्य रूप से खाद्यान्नों के लिए ही करता है, लेकिन सी.डब्ल्यू.सी. और एस.डब्ल्यू.सी. की भण्डारण क्षमताओं का इस्तेमाल खाद्यान्नों के अलावा खाद और अन्य वस्तुओं के लिए भी किया जाता है। इसके अलावा भारत सरकार ने एक अप्रेल 2001 से 'ग्रामीण भंडारण योजनाÓ की शुरुआत की थी जो 31 मार्च 2012 तक जारी रही। इस योजना में  नगर निगम, फेडरेशन, कृषि उत्पाद मार्केटिंग समिति, मार्केटिंग बोर्ड तथा ऐग्रो प्रॉसेसिंग कॉरपोरेशन के अलावा कोई भी व्यक्ति, किसान, उत्पादकों के समूह, पार्टनरशिप व एकल स्वामित्व वाले संगठन, एनजीओ, स्वयं सहायता समूह, कंपनियां, कॉरपोरेशन, सहकारी निकाय, स्थानीय निकाय कोई भी गोदाम बना सकता था। इस योजना के तहत देश भर में सैंकड़ों गोदम बने और बन भी रहे हैं।
इन प्रयासों को देखते हुए नहीं लगता कि भण्डारण जैसे जरूरी और संवेदनशील मुद्दे पर सरकार कोई कोताही बरत रही है। इतना होने के बावजूद भी अगर हर साल खाद्यान्न खुले में पड़ा खराब हो रहा है तो वजह क्या है? एक कारण तो यह समझ आता है कि हर साल अनाज की पैदावार इतनी बढ़ रही है जिसके अनुपात में गोदाम कम पड़ जाते हैं। अगर गत पांच वर्षों के मात्र गेहूँ उत्पान के आंकड़े पर नजर डालें तो पता लगता है कि 2007 में 9.32 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि हुई थी उसके चार साल बाद 2011 में 7.5 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली। हालांकि शेष वर्षों में केवल 2010 को छोड़ कर गेहूँ उत्पान वृद्धि प्रतिशत हमारी आबादी बढऩे के 1.41 प्रतिशत से हमेशा दोगुना ही रहा है।
अच्छे उत्पादन और सरकारी एजेंसियों की तरफ से भारी खरीद के चलते भारतीय खाद्य निगम के प्रशासनिक नियंत्रण में खाद्यान्न का भंडार 25.64 प्रतिशत बढ़कर अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है। एफसीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जून 2012 को केंद्रीय भंडार में अनाज की मात्रा बढ़कर 824.1 लाख टन पर पहुंच गई जबकि एक साल पहले इसी अवधि में कुल 656 लाख टन अनाज का भंडार था। कुल अनाज में मात्र 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज को छोड़ भी दें तो अनाज भंडारण जबरदस्त बढ़ा है। हालांकि मोटे अनाज का भंडार 23 प्रतिशत घटकर 0.9 लाख टन पर आ गया है जबकि गत वर्ष 1 जून 2011 को यह 1.2 लाख टन था।
एफसीआई हर दिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करीब 34 लाख टन गेहूं की खरीद कर रहा है और 1 जून तक 342.7 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 80 लाख टन ज्यादा है। नियमों के मुताबिक 1 जुलाई 2012 तक एफसीआई को बफर स्टॉक के तौर पर 98 लाख टन और रणनीतिक रिजर्व के लिए 20 लाख टन चावल होने चाहिएं, तथा इसी आधार पर 171 लाख टन व 30 लाख टन गेहूं भी होना चाहिए, मगर इन दोनों वस्तुओं का उपलब्ध स्टाक करीब 250 प्रतिशत ज्यादा है। हालांकि सरकार ने दो साल की गारंटी योजना के तहत निजी गोदामों के किराए पर लेने में उदारता बरती है क्योंकि सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन बहुत ज्यादा जगह उपलब्ध नहीं करवा रहे है। सीडब्ल्यूसी के पास जहां 1 करोड़ टन से कम अनाज के भंडारण के लिए जगह है, वहीं राज्यों में एसडब्ल्यूसी के पास इतनी जगह नहीं है कि खरीदे गए और खरीदे जाने वाले अनाज का भंडारण कर सकंे। गोदामों की किल्लत से जूझ रहे एफसीआई ने अपने क्षेत्रीय प्रबंधकों को दो साल के लिए निजी गोदाम अधिकतम 4.16 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह के हिसाब या मजबूरी में 5.21 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह तक किराए पर लेने के लिए अधिकृत किया है।

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