Thursday, December 22, 2011

राजस्थान हॉर्टीकल्चर एंड नर्सरी सोसायटी 'राजहंस'


राजस्थान में उद्यानिकी विकास को गति प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 1989-90 में उद्यानिकी विभाग की स्थापना की गयी। किन्तु सीमित बजट आंवटन एंव सरकारी नियमों की सीमाओं के कारण राज्य में उद्यानिकी का समूचित विकास नहीं हो सका। उद्यानिकी महत्वपूर्ण आदान अच्छी पौध का है। राज्य में 27 राजकीय नर्सरियां है, जिनका कुल क्षेत्रफल 325.44 हेक्टेअर है। राजस्थान में परम्परागत खेती अब व्यवसायिक खेती के रूप में परिवर्तित हो रही है। इसी के परिणाम स्वरूप राज्य में बेर, संतरा, किन्नू, आंवला, आदि फलों तथा जीरा, मेथी, धनियाँ, आदि मसालों के अतिरिक्त फूलों, सब्जियों तथा औषधिय फसलों ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। राज्य में अब कृषकों का ध्यान कम पानी तथा कम लागत से अधिक मुनाफा देने वाली फसलें लेने में लगा है।
राजकीय नर्सरियों पर पर्याप्त बजट के अभाव में पौध तैयार करने में कठिनाई आ रही थी। तथा राजकीय नर्सरियों पर पौधे तैयार करनें में अधिक व्यय हो रहा था। ग्यारवी पंचवर्षीय योजना में फलों के अन्तर्गत 10 हजार हेक्टेअर क्षेत्र में प्रतिवर्ष नये बगीचों के रोपण की योजना रखी गयी थी, जिसके लिये प्रति वर्ष राज्य में औसतन 30 लाख पौधों की व्यवस्था करनी होती है, जबकि राजकीय नर्सरियों पर उपरोक्त कमियों से केवल मात्र 10 से 12 लाख पौधे ही तैयार हो रहे थे। राज्य के कृषकों की मांग की पुर्ती करने के लिये राज्य के बाहर से भी पौधे खरीदने करने पडते हैं। जिनमें 50 प्रतिशत से भी अधिक मृत्यु दर रहती है। तथा राज्य में इनकी अनुकुलनता कम होने से क्षेत्र विकास में आशातीत सफलता नहीं मिल पा रही थी। बाहर से क्रय किये गये पौधे अपेक्षाकृत महंगे भी होते थे।
राज्य में फल, मसालों, फूल, सब्जियाँ तथा औषधिय फसलों का क्षेत्रफल 168000 हेक्टेअर क्षेत्रफल है। जो कि कुल कृषि योग्य क्षेत्रफल 206.61 लाख हेक्टेअर का मात्र 4.00 प्रतिशत है जो कि कम से कम 10 प्रतिशत होना चाहिए। उक्त फसलों के लिये भी उन्नत बीजों व पौध रोपण सामग्री का अभाव रहता है। सब्जी, मसाले आदि फसलों हेतु औसतन एक लाख कंवटल बीजों की आवश्यकता होती है। जबकि राज्य में 5000 किवटल बीज ही उपलब्ध हो पाता हैं। राजकीय नर्सरियों पर खाली जगह रहने के बावजूद भी इन बीज का उत्पादन बजट अभाव व वर्तमान सामान्य वित्तीय एंव लेखा नियमों के अन्तर्गत नहीं लिया जा सकता है। यह कार्य नर्सरियों को स्वायत्तता प्रदान करने के बगैर नहीं किये जा सकते थे। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि राजकीय नर्सरियों के व्यवसायिक रूप से पौधे उत्पादन हेतु स्वायत्तता प्रदान की जाए इसके लिये इन नर्सरियों को राजस्थान हॉर्टीकल्चर एण्ड नर्सरी सोसायटी (राजहंस) के रूप से कार्य करने हेतु स्वायत्तता प्रदान की गई है।
उद्देश्य
1. राज्य में उद्यानिकी विकास से संबंधित समस्त विषयों पर कार्य करना।
2. राज्य में उन्नत किस्मों के गुणवत्ता युक्त स्वस्थ बीजू, ग्राफ्टेड, बडेड एंव अन्य प्रकार से तैयार किये जाने वाले पौधे को कृषकों की मांग आपूर्ति हेतु उद्यानिकी किस्मों के अनुरूप तैयार करवाना।
3. राज्य में उद्यान विभाग के अधीन समस्त पौधशालाओं को सुदृढ करना, पौध उत्पादन एंव अन्य उद्यानिकी आदानों के कार्य में आत्मनिर्भर बनाकर उनकी भौतिक व वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यवस्था एंव संचालन।
4. जैव तकनीकि आधार पर पौधे उत्पादन हेतु नवीन पौधशालाओं की स्थापना एंव विकास तथा जैविक खेती को बढावा देने का कार्य करना।
5. मान्ट उद्यानों का विकास, रखरखाव तथा प्राचीन मान्ट उद्यानों में प्रतातियों का पुनरुद्धार एंव नवीन प्रजातियों के रोपण हेतु प्रोत्साहन।
6. अनुबन्ध पद्धति पर निजी क्षेत्र के कृषकों के यहां पर विभिन्न प्रकार के पौधे उत्पादन कर राज्य की मांग राज्य से पूर्ति करना।
7. राज्य में विभिन्न स्तर की आधुनिक एंव उच्च तकनीकि पर आधारित व्यापारिक स्तर पर पौधे तैयार करने वाली पौधशालाओं की स्थापना करवाना तथा उन्हें पंजिकृत करना।
8. कृषकों, अन्य विभागों, स्वयंसेवी संस्थाओं, बोर्ड निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम आदि को सलाह- मशविरा देना एंव अन्य प्रचार-प्रसार माध्यम से व्यापारिक उद्यानिकी तकनीकी को कृषकों, अधिकारियों व जन सामान्य को प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, प्रदर्शन, दक्ष विशेषज्ञों एंव श्रमिकों की सेवायें आदि देकर रोजगार के अवसर बढाना।
9. उद्यान उद्योग विकास हेतु फसलोत्तर प्रबंधन, परिरक्षण प्रयोगशालाओं, पैकिंग, ग्रेडिंग, वैल्यू एडिशन यूनिट स्थापना आदि कार्यक्रम आयोजित करना।
10. राज्य में एंव राज्य के बाहर से गुणवत्ता के पौधे व अन्य आवश्यक सामग्री क्रय कर कृषकों, जन सामान्य, विभिन्न संस्थाओं/विभागों आदि को आपूर्ति करना तथा राज्य में उपलब्ध उत्पाद एंव सेवाओं को अधिक मूल्य दिलाने हेतु कार्य करना।
11. राज्य में समस्त उद्यानिकी फसलों जैसे फल, सब्जी, मसाला, औषधीय एंव सुगंधित फसलों फूल सजावटी आदि का पौध उत्पादन सामग्री उत्पादन एंव अन्य प्रचार प्रसार के कार्यक्रम लेकर विभिन्न विभागों व कृषकों/ संस्थाओं आदि को उपलब्ध कराना।
12. विभिन्न संस्थाओं/निजी क्षेत्र से पौधे, मशीनरी, परिरक्षण पदार्थ, समस्त आदान (बीज, खाद, रसायन आदि), प्लास्टिकल्चर आदि को क्रय करना एंव इनको अन्य को उपलब्ध कराने हेतु एकीकृत संस्था के रूप में कार्य व आपूर्ति करना।

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