Wednesday, August 28, 2013

क्या बीत गए दिन बीटी के?

एक दशक पहले जिस बीटी कपास ने भारत में बड़ी चकाचौंध के साथ प्रवेश किया था अब उसकी चमक फीकी पडने लगी है। पिछले दिनों बीटी कपास को लेकर दो विरोधाभासी घटनाएं एक साथ देखने को मिलीं। एक ओर कृषिमंत्री शरद पवार ने लोकसभा में बीटी कपास पर गैर-सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी और संसद की स्थायी समिति की आपत्तियों को काल्पनिक व भ्रामक करार दिया तो दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से स्वीकार किया कि राज्य में बीटी कपास की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी है। हालांकि केंद्र को भेजी अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार ने किसानों को सीधे 6000 करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात कही है। लेकिन यदि बीज, उर्वरक, कीटनाशक, रसायन, मजदूरी आदि की लागत को देखें तो यह नुकसान 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि पहले जहां विदर्भ व मराठवाड़ा से ही कपास फसल के बर्बाद होने की खबरें आती थीं वहीं अब उत्तर महाराष्ट्र के खानदेश जैसे सिंचित क्षेत्र से भी आने लगी हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार इस साल महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं के 5000 का आंकड़ा छू लेने की उम्मीद है जबकि पिछले साल 3500 किसानों ने आत्महत्या की थी। यह लगातार तीसरा साल है जब महाराष्ट्र में कपास की फसल बर्बाद हुई है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में 42 लाख हेक्टेअर जमीन में कपास की खेती की जाती है जो देश में सर्वाधिक है। लेकिन प्रति हेक्टेअर पैदावार में आ रही गिरावट के कारण जहां एक ओर कुल उत्पादन कम होता जा रहा है वहीं दूसरी ओर लागत बढ़ती जा रही जिससे किसान तेजी से कर्ज के चंगुल में फंसते जा रहे हैं।
कपास किसानों की बढ़ती बदहाली और पैदावार में लगातार आ रही गिरावट के बावजूद कंपनियां बीटी कपास को चमत्कारी फसल बता रही हैं। उनके मुताबिक 2002 में 77 लाख हेक्टेअर कपास की खेती होती थी जो कि 2011-12 में 121 लाख हेक्टेअर हो गई। इस दौरान कपास का कुल उत्पादन 1.3 करोड़ गांठ से बढ़कर 3.45 करोड़ गांठ हो गया जिससे भारत कपास का निर्यातक बन गया। कंपनियां इसका श्रेय बीटी कपास को देती हैं। भारत में बीटी कपास लाने वाली महिको-मोंसेटो बायोटेक कंपनी दावा करती है कि बीटी कपास अपनाने के बाद भारतीय कपास किसानों को 31500 करोड़ रुपये का मुनाफा हो चुका है। लेकिन यदि कंपनी के दावों का विश्लेषण किया जाए तो कहानी कुछ और ही सामने आती है। यह सच है कि बीटी कपास अपनाने के बाद पैदावार तेजी से बढ़ी। उदाहरण के लिए 2004-05 में कपास की उत्पादकता 470 किग्रा प्रति हेक्टेअर थी जो 2007-08 में बढ़कर 554 किग्रा हो गई। लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट का दौर शुरू हुआ। आज यह 480 किग्रा रह गई है। स्पष्ट है कपास उत्पादन में जो बढ़ोतरी हुई उसमें एक बड़ा योगदान कपास के अधीन बढ़े हुए रकबे का है। सबसे बड़ी बात यह है कि मोनसेंटो के बीटी कपास के प्रवेश के बाद से कपास की स्थानीय किस्में लुप्त हो गईं। इससे किसान महंगे हाइब्रिड बीजों पर निर्भर हो गए जिन्हें खरीदने के लिए उन्हें हर साल मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। ज्ञात रहे बीटी के आने के बाद कपास बीज की कीमतें 800 गुना तक बढ़ चुकी हैं। दूसरी तरफ किसान भी कम नहीं है वह एक ही खेत में लगातार कपास की फसल लेता है और बीटी के चारों तरफ नॉन बीटी किस्मों की (रिफ्यूजिया)भी नहीं बीजता, जिससे न सिर्फ मिट्टी के पोषक तत्वों में कमी आ रही है बल्कि कीटों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ रही है। इसी का नतीजा है कि जैसे-जैसे फसल बर्बाद होने की घटनाएं बढ़ रही हैं वैसे-वैसे कीटनाशकों पर होने वाला खर्च भी बढ़ता जा रहा है जिससे कपास उत्पादन की लागत कई गुना बढ़ गई है।
बीटी कपास को समृद्धि का प्रतीक बताने वाले दावों की कलई महाराष्ट्र के उदाहरण से खुल जाती है। उदाहरण के लिए यहां 2010-11 में 36.2 लाख हेक्टेअर जमीन में 74.7 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था जबकि 2011-12 में 39.2 लाख हेक्टेअर में कपास की खेती के बावजूद कुल उत्पादन घटकर 69 लाख गांठ रह गया। कुछ यही कहानी आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश में भी दोहराई जा रही है। गुजरात इसका अपवाद रहा है लेकिन इसका श्रेय बीटी कपास को न होकर गुजरात की लघु सिंचाई परियोजनाओं और नई कृषि भूमि में कपास की खेती को दिया जा रहा है।
भारत के गैर-सरकारी संगठन 'नवधान्य' के मुताबिक बीटी कपास के इस्तेमाल से कीटनाशकों के प्रयोग में 13 गुना की बढ़ोतरी हो चुकी है। 2008 में इंटरनेशन जरनल ऑफ बायोटेक्नॉलाजी में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि बीटी कपास से पैदावार में जो बढ़ोतरी होती है उसे कीटनाशकों व खरपतवारनाशकों के इस्तेमाल से लागत में हुई बढ़ोतरी निगल जाती है। इस सच्चाई को कंपनियां खुद स्वीकार करती हैं कि उनके बीजों के विरुद्ध कीटों एवं खरपतवार ने प्रतिरोध विकसित कर लिया है। इन्हें सुपर खरपतवार की संज्ञा दी गई है। इनसे लडऩे के लिए कंपनियां नए बीजों के साथ-साथ महंगे व असरदार कीटनाशकों के इस्तेमाल को जरूरी बता रही हैं। जाहिर है हर हाल में किसान को लूटकर एग्रीबिजनेस कंपनियां अपनी तिजोरी भरेंगी।

1 comment:

  1. मै भी किसान हू और कपास की खेती करता हू BTकपास अभी तक हमारे यहा तो ठीक उत्पादन दे रही है पिछले साल मेने ऐक ऐकड़ मे 12कुन्टल तक उत्पादन लिया है

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