मौसम की अद्यतन जानकारी और अपेक्षाकृत सटीक पूर्वानुमान के लिए मौसम विभाग अब देश भर के मौसम केन्द्रों पर ऐसे डॉपलर वैदर रेडार लगाने जा रहा है जो 400 किलोमीटर के दायरे में हुए किसी भी बदलाव को दर्ज कर लेंगे तथा बारिश, ओलावृष्टि, आंधी-तूफान का छ: घंटे पहले अनुमान लगा लेंगे ताकि समय रहते बचाव के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें। यह प्रक्रिया कई राज्यों में तो आरम्भ हो चुकी है पर राजस्थान में इसकी शुरुआत नवंबर में जयपुर से होगी,जिसके बाद कोटा, जोधपुर, जैसलमेर व श्रीगंगानगर में नए वैदर रेडार लगाए जाएंगे।
135 साल पुराने यंत्रों के भरोसे चलने वाले मौसम विभाग और मौसम के भरोसे रहने वालों के लिए यह घोषणा किसी लॉटरी से कम नहीं है। हालांकि दो वैदर रेडार सेना के उपयोग के लिए देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास जैसलमेर व गंगानगर में लगे हुए हैं, यह अलग बात है कि गंगानगर का रेडार खराब हुए एक साल से ऊपर हो गया है। इस घोषणा से गत वर्ष अक्टूबर में इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन द्वारा जयपुर में की गई वह घोषणा याद आ गई जिसके अनुसार अगले दो माह में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से तहसील स्तर पर किसानों की सुविधा के लिए करीब 300 स्वचालित मौसम तंत्र लगाए जाएंगे जो इसरो के सैटेलाइट सूचना से सीधे जुड़े होंगे। राजस्थान क्षेत्रीय कार्यालय के महाप्रबंधक डॉ. जे.आर. शर्मा से जब इसकी प्रगति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अब तक मात्र 51 ही मशीनें ही लग पाई हैं। क्योंकि तहसील स्तर पर इतने मंहगे यंत्र किस विभाग की सुपुदर्गी में रहेंगे, इस पर फैसला करने में राज्य सरकार समय ले रही है।
मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ.अजित त्यागी के अनुसार एक जगह डॉप्लर वैदर रेडार लगाने पर लगभग 20-25 करोड़ का खर्च होगा। इसके लिए कम से कम 3 - 4 मंजिला कम से कम 16 मीटर ऊंची इमारत भी बनानी होगी। जयपुर में इमारत बन चुकी है, वहां इसे नवंबर में चालू कर दिया जाएगा। अन्य क्षेत्रों के लिए जगह का चयन किया जा रहा है। आप सोच रहे होंगे कि अरबों रूपए की इस महती योजना में क्या गोरखध्धे वाली बात क्या है? पहेली में गांठ यह है कि एक आयातित रेडार 10 से 12 करोड़ का आएगा और उसे लगाने का खर्च आएगा 15 से 20 करोड़। राजस्थान में ऐसी स्थिति पर तीन कहावतें है- कपड़े से मंहगी सिलाई, दाढ़ी से बड़ी मूछें और टके की डोकरी और एक आना सिर मुंडाई।
इस बात को समझने के लिए गंगानगर का अकेला उदाहरण ही काफी है। भारत-पाक सीमा पर बसे सामरिक महत्त्व का यह जिला देश में कृषि के लिए भी अपनी अलग पहचान रखता है। तभी तो मौसम विभाग ने बहुत पहले ही यहां एक मंहगा रेडार लगा दिया था। इस क्षेत्र के मौसम विभाग का कार्यालय आज से 25-30 वर्ष पहले कृषि विज्ञान केन्द्र और कृषि अनुसंधान केन्द्र के कार्यालय के पास ही खुले वातावरण में स्थित था। उस समय शहर के विस्तार के लिए सैंकडों हेक्टेअर में कुछ नई आवासिय कॉलोनियों की योजना बनाई गई, बिना यह सोचे कि इन कॉलोनियों में बसने के लिए इतने लोग कहां से आएंगे? राजनैतिक रास्ता यह निकाला गया कि यहां-वहां बिखरे कुछ सरकारी कार्यालयों को यहां लाकर बसा दिया जाए। इसी 'बुद्धिमत्ता पूर्णनिर्णय के परिणामस्वरूप मौसम विभाग का कार्यालय हरे-भरे खुले वातावरण से उठाकर आबादी क्षेत्र में लाया गया। उस दूरदर्शी निर्णय का परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है कि करोडों रुपए का नया डॉपलर रेडार लगाने के लिए इस कार्यालय में उचित जगह ही नहीं है,और आसपास की घनी आबादी की वजह से वायु और तापमान संबंधी आंकड़े हमेशा गलत होते हैं। नया डॉपलर रेडार लगाने के लिए में आसपास में अव्वल तो जमीन है ही नहीं अगर आबादी को हटाकर जमीन खरीदनी पड़े तो वह इतनी मंहगी साबित होगी कि उस कीमत में 10-15 डॉपलर रेडार आ जाएं। उस समय के नगर विकास न्यास के अध्यक्ष और आज के विधायक श्री राधेश्याम से उनके 30 वर्ष पहले किए गए इस निर्णय के बारे में जब पूछा तो उनका जवाब था- मैं संबंधित विभाग के अधिकारियों से इस बारे में पूछ कर बताऊंगा। जब उनसे यह पूछा गया कि जिस मौसम विभाग को आप शहर के बाहर से अंदर लाए थे आज वहां आबादी ज्यादा हो गई है, आसपास में पेड़ बहुत हैं, तथा ऊंची-ऊंची इमारतें के कारण सही आंकड़े नही मिल पाते इस का क्या उपाय है?तब उनका जवाब था पेड़ कटे भी सकते हैं। पर इमारतों का क्या करेंगे? तब उनका जवाब था इस विभाग को एकबार फिर कहीं और स्थानांतरित कर देंगे।
पहेली की अगली गुत्थी सुलझाने के लिए राजस्थान मौसम विभाग के निदेशक श्री एस.एस. सिंह से बात की तो उनका कहना था कि पुरानी इमारत इस लायक है कि नई मशीन का चार-पांच टन वजन झेल सकती है, हमने इस विषय मे पीडब्ल्यूडी के तकनीकी अधिकारियों से सलाह लेली है। परन्तु पीडब्ल्यूडी के अधीशाषी अभियंता सुशील विश्रोई से जब पूछा गया कि क्या मौसम विभाग ने उनसे इमारत की क्षमता का निरीक्षण करवाया है? क्या यह इमारत चार-पांच टन वजन उठाने के लायक है? तो उनका कहना था कि उनके विभाग से इस तरह की कोई जानकारी विगत एक वर्ष में नहीं ली गई। उलझन यहीं समाप्त नहीं हो जाती मौसम विभाग के स्थानीय कार्यालय से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था- इस इमारत में नहीं हमारी दूसरी इमारत में लगेगा डॉपलर रेडार। हकीकत क्या है यह तो ईश्वर जाने। अब डॉपलर रेडार लगने के बाद पता लगेगा कि गोरखबाबा के इस पहेली का सही जवाब क्या है?
मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ.अजित त्यागी के अनुसार एक जगह डॉप्लर वैदर रेडार लगाने पर लगभग 20-25 करोड़ का खर्च होगा। इसके लिए कम से कम 3 - 4 मंजिला कम से कम 16 मीटर ऊंची इमारत भी बनानी होगी। जयपुर में इमारत बन चुकी है, वहां इसे नवंबर में चालू कर दिया जाएगा। अन्य क्षेत्रों के लिए जगह का चयन किया जा रहा है। आप सोच रहे होंगे कि अरबों रूपए की इस महती योजना में क्या गोरखध्धे वाली बात क्या है? पहेली में गांठ यह है कि एक आयातित रेडार 10 से 12 करोड़ का आएगा और उसे लगाने का खर्च आएगा 15 से 20 करोड़। राजस्थान में ऐसी स्थिति पर तीन कहावतें है- कपड़े से मंहगी सिलाई, दाढ़ी से बड़ी मूछें और टके की डोकरी और एक आना सिर मुंडाई।
इस बात को समझने के लिए गंगानगर का अकेला उदाहरण ही काफी है। भारत-पाक सीमा पर बसे सामरिक महत्त्व का यह जिला देश में कृषि के लिए भी अपनी अलग पहचान रखता है। तभी तो मौसम विभाग ने बहुत पहले ही यहां एक मंहगा रेडार लगा दिया था। इस क्षेत्र के मौसम विभाग का कार्यालय आज से 25-30 वर्ष पहले कृषि विज्ञान केन्द्र और कृषि अनुसंधान केन्द्र के कार्यालय के पास ही खुले वातावरण में स्थित था। उस समय शहर के विस्तार के लिए सैंकडों हेक्टेअर में कुछ नई आवासिय कॉलोनियों की योजना बनाई गई, बिना यह सोचे कि इन कॉलोनियों में बसने के लिए इतने लोग कहां से आएंगे? राजनैतिक रास्ता यह निकाला गया कि यहां-वहां बिखरे कुछ सरकारी कार्यालयों को यहां लाकर बसा दिया जाए। इसी 'बुद्धिमत्ता पूर्णनिर्णय के परिणामस्वरूप मौसम विभाग का कार्यालय हरे-भरे खुले वातावरण से उठाकर आबादी क्षेत्र में लाया गया। उस दूरदर्शी निर्णय का परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है कि करोडों रुपए का नया डॉपलर रेडार लगाने के लिए इस कार्यालय में उचित जगह ही नहीं है,और आसपास की घनी आबादी की वजह से वायु और तापमान संबंधी आंकड़े हमेशा गलत होते हैं। नया डॉपलर रेडार लगाने के लिए में आसपास में अव्वल तो जमीन है ही नहीं अगर आबादी को हटाकर जमीन खरीदनी पड़े तो वह इतनी मंहगी साबित होगी कि उस कीमत में 10-15 डॉपलर रेडार आ जाएं। उस समय के नगर विकास न्यास के अध्यक्ष और आज के विधायक श्री राधेश्याम से उनके 30 वर्ष पहले किए गए इस निर्णय के बारे में जब पूछा तो उनका जवाब था- मैं संबंधित विभाग के अधिकारियों से इस बारे में पूछ कर बताऊंगा। जब उनसे यह पूछा गया कि जिस मौसम विभाग को आप शहर के बाहर से अंदर लाए थे आज वहां आबादी ज्यादा हो गई है, आसपास में पेड़ बहुत हैं, तथा ऊंची-ऊंची इमारतें के कारण सही आंकड़े नही मिल पाते इस का क्या उपाय है?तब उनका जवाब था पेड़ कटे भी सकते हैं। पर इमारतों का क्या करेंगे? तब उनका जवाब था इस विभाग को एकबार फिर कहीं और स्थानांतरित कर देंगे।
पहेली की अगली गुत्थी सुलझाने के लिए राजस्थान मौसम विभाग के निदेशक श्री एस.एस. सिंह से बात की तो उनका कहना था कि पुरानी इमारत इस लायक है कि नई मशीन का चार-पांच टन वजन झेल सकती है, हमने इस विषय मे पीडब्ल्यूडी के तकनीकी अधिकारियों से सलाह लेली है। परन्तु पीडब्ल्यूडी के अधीशाषी अभियंता सुशील विश्रोई से जब पूछा गया कि क्या मौसम विभाग ने उनसे इमारत की क्षमता का निरीक्षण करवाया है? क्या यह इमारत चार-पांच टन वजन उठाने के लायक है? तो उनका कहना था कि उनके विभाग से इस तरह की कोई जानकारी विगत एक वर्ष में नहीं ली गई। उलझन यहीं समाप्त नहीं हो जाती मौसम विभाग के स्थानीय कार्यालय से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था- इस इमारत में नहीं हमारी दूसरी इमारत में लगेगा डॉपलर रेडार। हकीकत क्या है यह तो ईश्वर जाने। अब डॉपलर रेडार लगने के बाद पता लगेगा कि गोरखबाबा के इस पहेली का सही जवाब क्या है?