हाल ही में कृषि अनुसंधान केन्द्र श्रीगंगानगर में कृषि अनुसंधान एवं प्रसार परामर्शदात्री समिति (जर्क)की खरीफ फसलों पर हुई बैठक में अन्य मुद्दों के साथ जो मुख्य बात उभर कर आई वह चौंकाने वाली थी। विगत दस वर्षों से हिन्दुस्तान में कपास उत्पादन का इतिहास बदलने वाली बीटी कपास को पैकेज ऑफ प्रेक्टिसेज में शामिल करने के लिए विभिन्न कम्पनियों के 17 बीजों को उगाकर देखा गया। मकसद था क्षेत्र में बेहतर उपज देने वाले बीज के बारे में किसानों को बताना। इस प्रयोग का परिणाम उन बीटी बीज बनाने वाली कम्पनियों के लिए झटका देने वाला था। इन 17 बीजों में से एक भी बीज लीफ कर्ल वायरस से 100 प्रतिशत प्रतिरोधी नहीं है। इनमें से मात्र दो ही बीज ऐसे थे जिनमे लीफ कर्ल वायरस से मामूली प्रतिरोधक क्षमता (मॉडरिट्लि रिजिस्टॅन्ट) मिली, शेष में 9 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल), 4 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल) और 2 आंशिक संवेदनशील (मॉडरिट्लि सॅसेप्टिबल) किस्में थी।
कहां से आया लीफ कर्ल वायरस?
लीफ कर्ल वायरस इस क्षेत्र में हमेशा से नहीं था। 1990 में गंगानगर की साथ लगते पाकिस्तान के जिला बहावलनगर में नवाब-72 और नवाब-78 दो ऐसी किस्मों बिजाई होती थी जो शानदार उपज देती थी। इन किस्मों की सबसे बड़ी समस्या थी लीफ कर्ल वायरस। ज्यादा से ज्यादा उपज के लालच ने इन किस्मों के बीज नाजायज तरीके से चोरी-छिपे इस जिले में लाए गए। समय गवाह है कि वर्तमान में पंजाब के फाजिल्का से लेकर बार्डर के साथ-साथ लगते बीकानेर जिले तक इस बीमारी से अपना स्थाई घर बना लिया है। सेवा-निवृत वरिष्ट कपास प्रजनक वैज्ञानिक डॉ. आरपी भारद्वाज तो यहां तक कहते हैं कि-यह तो संयोग है कि नागौर, जैसलमेर और बाड़मेर में कपास नहीं उगाया जाता वर्ना ये बीमारी कन्याकुमारी तक पहुंच जाती। हालांकि पाकिस्तान ने लीफकर्ल वायरस से ग्रसित उपज बेचने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी जिस वजह से आज वहां यह बीमारी न के बाराबर है, जबकि हमारे यहां इस रोग के संक्रमित बीजों को बेचने तक पर पाबंदी नहीं है।
क्या है लीफ कर्ल वायरस?
इसे हिन्दी में पर्ण संकुचन और आम बोलचाल में पत्ता- मरोड़ या मरोडिय़ा भी कहते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लीफकर्ल (पत्ता मरोड़ रोग) सफेद मक्खी से फैलता है। इसके वायरस से पत्ते मुड़ जाते हैं ओर पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। इससे पौधे की बढ़वार रूक जाती है और टिंडो का विकास नहीं हो पाता। इसके बचाव के लिए सफेद मक्खी पर नियंत्रण करना जरूरी है। बारिश होने पर यह रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है इससे पूरी फसल ही खराब हो जाती है। केंद्र के वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लाख प्रयासों के बावजूद अभी तक कपास में मरोडिया रोग पर काबू नहीं हो सका।
कैसे बिकता है लीफ कर्ल वायरस संवेदी बीज?
लीफ कर्ल की समस्या इस क्षेत्र में विगत 20 साल से है, इसका पता कृषि अधिकारियों के साथ-साथ बीज बनाने वाली कम्पनियों को भी है। बीज बेचने वाली कम्पनियां जब इस क्षेत्र में बीज बेचने की अनुमति लेती हैं तो गंगानगर जिले को छोड़कर कहीं भी बीज का ट्रयाल की हुई रिर्पोट दिखा कर ले लेती हैं। इस बारे में जब संयुक्त निदेशक कृषि वीएस नैण से पूछा गया तो उनका कहना था कि राज्य में बीज बेचने की अनुमति राज्य सरकार ही देती है इसमें स्थानीय अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। किसान शिकायत करता है तो हम आवश्यक कार्रवाही जरूर करते हैं। गंगानगर जिले में नहर बंदी की वजह से गत वर्ष कॉटन की बुवाई एक लाख 10 हजार 406 हेक्टेअर क्षेत्र में ही हुई थी। लीफकर्ल का प्रकोप गंगनहर व भाखड़ा नहर परियोजना क्षेत्र में ही ज्यादा है। इंदिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में लीफकर्ल का प्रकोप हनुमानगढ़ क्षेत्र में लालगढ़ से आगे कम ही है। हनुमानगढ़ में इस वर्ष एक लाख 73 हजार 450 हेक्टेअर क्षेत्र में कपास बुवाई हुई है।
कहां से आया लीफ कर्ल वायरस?
लीफ कर्ल वायरस इस क्षेत्र में हमेशा से नहीं था। 1990 में गंगानगर की साथ लगते पाकिस्तान के जिला बहावलनगर में नवाब-72 और नवाब-78 दो ऐसी किस्मों बिजाई होती थी जो शानदार उपज देती थी। इन किस्मों की सबसे बड़ी समस्या थी लीफ कर्ल वायरस। ज्यादा से ज्यादा उपज के लालच ने इन किस्मों के बीज नाजायज तरीके से चोरी-छिपे इस जिले में लाए गए। समय गवाह है कि वर्तमान में पंजाब के फाजिल्का से लेकर बार्डर के साथ-साथ लगते बीकानेर जिले तक इस बीमारी से अपना स्थाई घर बना लिया है। सेवा-निवृत वरिष्ट कपास प्रजनक वैज्ञानिक डॉ. आरपी भारद्वाज तो यहां तक कहते हैं कि-यह तो संयोग है कि नागौर, जैसलमेर और बाड़मेर में कपास नहीं उगाया जाता वर्ना ये बीमारी कन्याकुमारी तक पहुंच जाती। हालांकि पाकिस्तान ने लीफकर्ल वायरस से ग्रसित उपज बेचने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी जिस वजह से आज वहां यह बीमारी न के बाराबर है, जबकि हमारे यहां इस रोग के संक्रमित बीजों को बेचने तक पर पाबंदी नहीं है।
क्या है लीफ कर्ल वायरस?
इसे हिन्दी में पर्ण संकुचन और आम बोलचाल में पत्ता- मरोड़ या मरोडिय़ा भी कहते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लीफकर्ल (पत्ता मरोड़ रोग) सफेद मक्खी से फैलता है। इसके वायरस से पत्ते मुड़ जाते हैं ओर पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। इससे पौधे की बढ़वार रूक जाती है और टिंडो का विकास नहीं हो पाता। इसके बचाव के लिए सफेद मक्खी पर नियंत्रण करना जरूरी है। बारिश होने पर यह रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है इससे पूरी फसल ही खराब हो जाती है। केंद्र के वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लाख प्रयासों के बावजूद अभी तक कपास में मरोडिया रोग पर काबू नहीं हो सका।
कैसे बिकता है लीफ कर्ल वायरस संवेदी बीज?
लीफ कर्ल की समस्या इस क्षेत्र में विगत 20 साल से है, इसका पता कृषि अधिकारियों के साथ-साथ बीज बनाने वाली कम्पनियों को भी है। बीज बेचने वाली कम्पनियां जब इस क्षेत्र में बीज बेचने की अनुमति लेती हैं तो गंगानगर जिले को छोड़कर कहीं भी बीज का ट्रयाल की हुई रिर्पोट दिखा कर ले लेती हैं। इस बारे में जब संयुक्त निदेशक कृषि वीएस नैण से पूछा गया तो उनका कहना था कि राज्य में बीज बेचने की अनुमति राज्य सरकार ही देती है इसमें स्थानीय अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। किसान शिकायत करता है तो हम आवश्यक कार्रवाही जरूर करते हैं। गंगानगर जिले में नहर बंदी की वजह से गत वर्ष कॉटन की बुवाई एक लाख 10 हजार 406 हेक्टेअर क्षेत्र में ही हुई थी। लीफकर्ल का प्रकोप गंगनहर व भाखड़ा नहर परियोजना क्षेत्र में ही ज्यादा है। इंदिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में लीफकर्ल का प्रकोप हनुमानगढ़ क्षेत्र में लालगढ़ से आगे कम ही है। हनुमानगढ़ में इस वर्ष एक लाख 73 हजार 450 हेक्टेअर क्षेत्र में कपास बुवाई हुई है।
बीज निर्माता बीज किस्म प्रतिरोधी क्षमता
01. डीएसएल श्रीराम सीड्ज बायो-6588 मध्यम प्रतिरोधी (मॉडरिट्लि रिजिस्टॅन्ट)
01. डीएसएल श्रीराम सीड्ज बायो-6588 मध्यम प्रतिरोधी (मॉडरिट्लि रिजिस्टॅन्ट)
02. डीएसएल श्रीराम सीड्ज बंटी मध्यम प्रतिरोधी (मॉडरिट्लि रिजिस्टॅन्ट)
03. राशि सीड्ज आर सी एच 650 आंशिक संवेदनशील (मॉडरिट्लि सॅसेप्टिबल)
04. राशि सीड्ज आर सी एच 653 आंशिक संवेदनशील (मॉडरिट्लि सॅसेप्टिबल)
05. डीएसएल श्रीराम सीड्ज बायो- 6488 बीटी संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
06. नूजिवीडू सीड्ज राघव एन सी एस 855 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
07. जेके एग्री जेनेटिक्स लि. जेके सी एच 0109 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
08. प्रभात एग्री बायोटैक पी सी एच 877 बीटी-2 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
09. जेके एग्री जेनेटिक्स लि. जेके सी एच 1050 बीटी अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
10. विभा सीड्ज ग्रेस बीजी अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
11. नूसुन मिस्ट बीजी-2 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
12. मॉनसेंटों मैक्सकॉट एसओ 7 एच 878 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
13. बायर बायोसांइस एसपी 7007 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
14. कृषिधन पंचम केडीसीएचएच 541 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
15. अंकुर सीड्ज प्रा.लि. अंकुर 3028 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
16. महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्ज एमआरसी 7361 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
17. महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्ज निक्की एमआरसी 7017 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
03. राशि सीड्ज आर सी एच 650 आंशिक संवेदनशील (मॉडरिट्लि सॅसेप्टिबल)
04. राशि सीड्ज आर सी एच 653 आंशिक संवेदनशील (मॉडरिट्लि सॅसेप्टिबल)
05. डीएसएल श्रीराम सीड्ज बायो- 6488 बीटी संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
06. नूजिवीडू सीड्ज राघव एन सी एस 855 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
07. जेके एग्री जेनेटिक्स लि. जेके सी एच 0109 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
08. प्रभात एग्री बायोटैक पी सी एच 877 बीटी-2 संवेदनशील (सॅसेप्टिबल)
09. जेके एग्री जेनेटिक्स लि. जेके सी एच 1050 बीटी अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
10. विभा सीड्ज ग्रेस बीजी अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
11. नूसुन मिस्ट बीजी-2 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
12. मॉनसेंटों मैक्सकॉट एसओ 7 एच 878 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
13. बायर बायोसांइस एसपी 7007 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
14. कृषिधन पंचम केडीसीएचएच 541 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
15. अंकुर सीड्ज प्रा.लि. अंकुर 3028 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
16. महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्ज एमआरसी 7361 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)
17. महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्ज निक्की एमआरसी 7017 अति संवेदनशील (हाइली सॅसेप्टिबल)