पिछले दो-तीन वर्षो में लघु बीमा के क्षेत्र में तेज विस्तार की आवश्यकता को देखकर लगता है कि आगामी एक वर्ष के भीतर देश में लघु बीमा क्षेत्र के लिए एक स्वतंत्र नियामक एजेंसी का गठन हो जाएगा। सरकार मानती है कि देश के गरीब तबके तक बीमे का फायदा पहुंचाने के लिए लघु बीमा ही फिलहाल एकमात्र रास्ता है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आइआरडीए या इरडा) भी इस प्रस्ताव के पक्ष में है। इरडा के सदस्य आर. कानन के अनुसार माइक्रो इंश्योरेंस क्षेत्र की जरूरतें बिल्कुल अलग किस्म की हैं। माइक्रो इंश्योरेंस के तहत जिस तरह की योजनाएं ग्राहकों को दी जाती हैं उनकी निगरानी इरडा के मौजूदा प्रावधानों के तहत करना आसान नहीं है, इसीलिए एक अलग नियामक एजेंसी होनी चाहिए। वैकल्पिक व्यवस्था होने तक इरडा ही इस क्षेत्र के मामलों को देखता रहेगा। सूत्रों का कहना है कि बीमा क्षेत्र में निजी और विदेशी कंपनियों के आने के बावजूद देश में माइक्रो इंश्योरेंस के क्षेत्र में उतना तेजी से विस्तार नहीं हुआ है जितना कि अन्य बीमा योजनाओं में। खास तौर पर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले और गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने वाली जनता को इन योजनाओं का सीधा लाभ उतना ही मिला है जितना सरकार ने अनुदान आदि के जरिए पहुंचाया है। हालांकि केंद्र व राज्य सरकारों ने भी माइक्रो इंश्योरेंस देने वाली कंपनियों को कई तरह से प्रोत्साहित किया है लेकिन कम लाभ और अधिक खर्च के चलते ये कम्पनियां इस क्षेत्र में ज्यादा रूचि नहीं ले रही हैं।
भू-मीत द्वारा चार राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश) में किए गए एक सर्वेक्षण में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस सर्वेक्षण में निजी कम्पनियों के जिला स्तरीय कार्यालयों के अधिकारियों से जब उनकी कम्पनी द्वारा बनाई गई माइक्रो इंश्योरेंस योजनाओं के बारे में पूछा गया तो उनके सभी जवाब एक जैसे थे- ये योजनाएं राज्य मुख्यालय से नियंत्रित होती हैं, मैंने यह कम्पनी अभी जॉइन की है, दरअसल मैं मीडिआ बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं, इसके बारे में आपको पूरी जानकरी का मेल कर देंगे, अभी क्लोजिंग चल रही है, उससे फुर्सत मिलते ही आपको आंकड़े मिल जाएंगे आदि आदि। आश्चर्य की बात तो यह है कि एक भी अधिकारी अपनी ही कम्पनी द्वारा चलाई जा रही माइक्रो इंश्योरेंस की किसी भी एक योजना का नाम तक नहीं बता सका। नाम नहीं छापने की शर्त के साथ एक प्रतिष्ठित कम्पनी के राज्य स्तरीय अधिकारी ने बताया कि-इन योजनाओं में लाभ बहुत थोड़ा है इसलिए इनमें ऐजेन्ट्स का रूझान नहीं है, नब्बे प्रतिशत एनजीओ चोर हैं वे केवल दिखावे में विश्वास करते हैं और उत्तर भारत में स्वय सहायता समूह किन्हीं अज्ञात वजहों से नाकाम हैं। इसलिए माइक्रो इंश्योरेंस की योजनाएं बन तो सकती हैं पर कामयाब नहीं हो सकती। ऐसा नहीं है कि माइक्रो इंश्योरेंस की राह में अकेली निजी कम्पनियां ही बाधा हैं, इरडा भी इसमें बराबर का भागीदार है। बीमा क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि इरडा लघु बीमा की जरूरत व महत्त्व को ठीक तरीके से समझ नहीं पा रहा है। उदाहरण के लिए, भारतीय जीवन बीमा निगम ने एक वर्ष पहले एक लघु बीमा योजना का प्रारूप तैयार किया था। जिसके तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को उनकी झोपडिय़ों, मवेशियों से लेकर अन्य सभी संपत्तियों का बहुत ही कम किस्त पर बीमा किया जाना था। एलआइसी ने सरकारी क्षेत्र की चारों साधारण बीमा कंपनियों के साथ मिलकर इस योजना को शुरू करने की योजना बनाई थी। मगर इरडा से इसकी मंजूरी नहीं मिली। इरडा के नियमानुसार जीवन बीमा कंपनी केवल एक ही साधारण बीमा कंपनी के साथ समझौता कर सकती है। जाहिर है कि एलआइसी की उस महती योजना का लाभ ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंचा। ऐसे ही कुछ कारणों से लघु बीमा के लिए अलग नियामक एजेंसी लाने की योजना बनाई जा रही है।
भू-मीत द्वारा चार राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश) में किए गए एक सर्वेक्षण में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस सर्वेक्षण में निजी कम्पनियों के जिला स्तरीय कार्यालयों के अधिकारियों से जब उनकी कम्पनी द्वारा बनाई गई माइक्रो इंश्योरेंस योजनाओं के बारे में पूछा गया तो उनके सभी जवाब एक जैसे थे- ये योजनाएं राज्य मुख्यालय से नियंत्रित होती हैं, मैंने यह कम्पनी अभी जॉइन की है, दरअसल मैं मीडिआ बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं, इसके बारे में आपको पूरी जानकरी का मेल कर देंगे, अभी क्लोजिंग चल रही है, उससे फुर्सत मिलते ही आपको आंकड़े मिल जाएंगे आदि आदि। आश्चर्य की बात तो यह है कि एक भी अधिकारी अपनी ही कम्पनी द्वारा चलाई जा रही माइक्रो इंश्योरेंस की किसी भी एक योजना का नाम तक नहीं बता सका। नाम नहीं छापने की शर्त के साथ एक प्रतिष्ठित कम्पनी के राज्य स्तरीय अधिकारी ने बताया कि-इन योजनाओं में लाभ बहुत थोड़ा है इसलिए इनमें ऐजेन्ट्स का रूझान नहीं है, नब्बे प्रतिशत एनजीओ चोर हैं वे केवल दिखावे में विश्वास करते हैं और उत्तर भारत में स्वय सहायता समूह किन्हीं अज्ञात वजहों से नाकाम हैं। इसलिए माइक्रो इंश्योरेंस की योजनाएं बन तो सकती हैं पर कामयाब नहीं हो सकती। ऐसा नहीं है कि माइक्रो इंश्योरेंस की राह में अकेली निजी कम्पनियां ही बाधा हैं, इरडा भी इसमें बराबर का भागीदार है। बीमा क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि इरडा लघु बीमा की जरूरत व महत्त्व को ठीक तरीके से समझ नहीं पा रहा है। उदाहरण के लिए, भारतीय जीवन बीमा निगम ने एक वर्ष पहले एक लघु बीमा योजना का प्रारूप तैयार किया था। जिसके तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को उनकी झोपडिय़ों, मवेशियों से लेकर अन्य सभी संपत्तियों का बहुत ही कम किस्त पर बीमा किया जाना था। एलआइसी ने सरकारी क्षेत्र की चारों साधारण बीमा कंपनियों के साथ मिलकर इस योजना को शुरू करने की योजना बनाई थी। मगर इरडा से इसकी मंजूरी नहीं मिली। इरडा के नियमानुसार जीवन बीमा कंपनी केवल एक ही साधारण बीमा कंपनी के साथ समझौता कर सकती है। जाहिर है कि एलआइसी की उस महती योजना का लाभ ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंचा। ऐसे ही कुछ कारणों से लघु बीमा के लिए अलग नियामक एजेंसी लाने की योजना बनाई जा रही है।