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Saturday, February 5, 2011

अनुदान अनुकम्पा का ’बीज’ गणित

केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें समय-समय पर किसान को किसी न किसी तरह की सहायता या अनुदान योजनाएं घोषित एवं लागू करती रहती हैं। पहली नजर में ये योजनाएं कल्याणकारी और किसान हित की लगती हैं, और किसी हद तक हैं भी। लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू की तरह इन योजनाओं का भी दूसरा पहलू है। आइए समझने की कोशिश करते हैं, प्रमाणित बीज उगाने वाले किसानों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा घोषित करोड़ों रूपए के अनुदान अनुकम्पा का बीज गण्ति क्या है? इस वर्ष राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत किसानों को गेहूं के प्रमाणित बीज उत्पादन पर 500 रूपए प्रति क्विंटल की दर अनुदान दिया जाना है
कैसे दिया जाता है अनुदान ?
इस तरह का अनुदान अक्सर दो स्तरों पर दिया जाता है। पहला किसान को प्रमाणित बीज पैदा करने के आधार बीज बाजार भाव से सस्ता अनुदानित दर पर दिया जाता है। दूसरे स्तर पर सहकारी समितियों, बीज निगमों और निगम द्वारा बनाए गए अधिकृत विक्रता के माध्यम से या अनाज मण्डियों में कैम्प लगा कर किसानों को प्रमाणीत बीज खरीद पर दिया जा है ताकि समग्र पैदावार अच्छी हो।
अनुदान का लाभ
इस अनुदान का पहला उद्देश्य फसल के प्रमाणित बीज के उत्पादन को बढ़ावा देना है। दूसरा उद्देश्य बीज पैदा करने वाले किसान को प्रोत्साहन देना है। तीसरा उद्देश्य हालांकि जग-जाहिर नहीं है पर इस सच्चाई को नकारा भी नहीं जा सकता कि बाजार की गलाकाट स्पर्धा से भारी-भरकम खर्चे वाले सरकारी बीज निगमों को बचाना और किसानों में इन निगमों के प्रति विश्वास भी बनाए रखना है। कूटनीति की भाषा में इस नीति को शक्ति संतुलन कहते हैं, न बाजार के हाथ में सारी शक्ति न सरकार के हाथ में।
कब होती है गड़बड़ ?
यह सब ठीक है लेकिन इसमें पेच यह है कि सरकारी अनुदान के बाद  अक्सर बीज का मूल्य फसल के बाजार मूल्य से भी कम हो जाता है। कई बार फसल का मूल्य बाजार में किसी भी कारण से ऊंचा हो जाता है और सरकारी ऐजेन्सियां तुरंत निर्णय नहीं ले पाती तो भी बीज का मूल्य फसल से कम हो जाता है। ऐसे में साफ और श्रेणीकृत (ग्रेड किया हुआ) बीज बाजार के कई बार फसल का मूल्य भाव से सस्ता मिल रहा हो तो कौन नहीं खरीदना चाहेगा? हालांकि सरकार इस बात का प्रावधान करती है कि किसान को जमीन के अनुरूप ही एक बीधा के लिए बीज की निर्धारित मात्रा में बीज दिया जाए। गड़बड़ तब होती है जब किसानों की फर्जी सूचियां बनाई जाती हैं, और फर्जी किसानों को बेचा गया बीज पहुंच जाता है किसी कारखाने या बाजार में। और प्रमाणित बीज विशेष का ठप्पा लगी हजारों जूट और कपड़े की खाली थैलियां पहुंच जाती हैं हार्डवेयर की दुकानों में कीलें भरकर बेचे जाने के लिए। ऐसा नहीं है कि यह गड़बड़ महज सरकारी ऐजेन्सी के माध्यम से ही होती है, यह तब भी होती है जब अनुदान निजी बीज उत्पादकों के माध्यम से किसानों को दिया जाता है। तब यह कृषि विभाग के किसी अधिकारी की देखरेख में सम्पन्न होती है।
अनुदान से क्या बीज ही प्रभावित है ?
सवाल यह है कि क्या सिर्फ  बीज ही में होती है गड़बड़? या खाद, दवा, सिंचाई उपकरण और हर उस वस्तु में भी होती है गड़बड़ जो अनुदान सूची में शामिल हैं। 100 रूपए मूल्य के सामान पर 250 रूपए विक्रय मूल्य अंकित किया जाता है, 50 प्रतिशत अनुदान दिए जाने पर भी 100 का सामान 125 में बिक जाता हैए इस प्रकार विक्रेता 25 प्रतिशत अधिक मुनाफा कमा लेता है। तो क्या अनुदान देना ही बंद कर दिया जाए? या एक और सरकारी विभाग अनुदान वितरण पर निगरानी रखने के लिए बना देना चाहिए?
होना क्या चाहिए ?
कम से कम बीज में तो यह कालाबाजारी रोकी ही जा सकती है। फसल और बीज के भाव में अनुदान के बाद भी कुछ फर्क तो रहना चाहिए। कितना अजीब लगता है जब अनाज 12 रूपए किलो प्रमाणित बीज 10 रूपए किलो बिकता हो। होना यह चाहिए कि अनुदान के बाद फसल से बीज हर हाल में मंहगा हो, यह अन्तर चाहे दो रूपए किलो का ही क्यों न हो। एक और तरीका यह भी है कि पटवारी फसल बीजाई का रिकार्ड रखता ही है, वह किसानों से बीज के पक्के बिल की प्रतिलिपि लेकर तस्दीक करे। इस तरह किसान बीज का पक्का बिल लेना भी सीख जाएगा, जो बीज खराब होने की सूरत में कार्यवाही के काम भी आएगा।
-जनवरी-फरवरी अंक से

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