भू-मीत के ग्रामीण शिक्षा पर आधारित एक विगत अंक की तैयारी के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। देश के लगभग सभी सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा के तीस से पैंतीस प्रतिशत विद्यार्थी मुख्य परीक्षा के दिनों में, स्कूल में तो सशरीर उपस्थित होते हैं पर उपस्थिति पंजिका में वे अनुपस्थित दर्शाए जाते हैं। पहली नजर में यह गोरखधंधा ही लगता है कि बच्चे क आए हैं, उनमें से कुछ ने परीक्षा भी दी है पर परिणाम सारणी में ये सारे बच्चे गैऱ-हाजिर कैसे हैं? इन बच्चों के मां-बाप के लिए भी यह एक अबूझ पहेली है कि आखिर हुआ क्या? चलिए सुलझा लेते हैं गोरख बाबा की इस पहेली को। एक सरकारी निर्देश के अन्तर्गत कक्षा आठ तक किसी विद्यार्थी को फेल नहीं किया जाएगा। दूसरे, कि कक्षा आठ तक के सभी छात्रों को दोपहर का भोजन स्कूल में ही दिया जाएगा। इन दोनों आदेशों का पहली कक्षा के छात्रों की मुख्य परीक्षा से क्या संबंध है? इस विचित्र पहेली को सुलझाने के लिए आपको याद दिलाना पड़ेगा भू-मीत के शिक्षा विषय पर आधारित अंक का पोषाहार वाला वह लेख, जिसमें बताया जा चुका है कि पहली कक्षा के एक छात्र के लिए सरकार महीने भर में औसत 25 किलो गेहूं या चावल और उसे पकाने के लिए औसतन 117 रूपए नकद देती है। यह तो आप भी जानते हैं कि 100 ग्राम कच्चे चावल पकने के बाद चार व्यस्क लोगों के लिए पर्याप्त होते हैं, और सामूहिक रूप से भोजन पकाने पर 117 रूपए भी ज्यादा ही रहते हैं। सारे बच्चे स्कूल में भोजन करते भी नहीं है तो उस मद में बचत अलग से होती है। इस अनाज और पैसे की बचत के लालच में प्रधानाचार्य परीक्षा के दिन तक नए छात्रों के लिए प्रवेश खुला रखते हैं। अब जिन छात्रों को स्कूल आते हुए महज महीना-बीस दिन ही हुए हों और जो ढ़ंग से कलम पकडऩा भी नहीं सीख पाते, उन्हें दूसरी कक्षा के लिए उतीर्ण कैसे किया जा सकता है? नियमानुसार फेल उन्हें किया नहीं जा सकता, पास होने के लायक वे हैं नहीं। कुछ ऐसे जैसे फिल्म मुगले आज़म का यह मशहूर डायलॉग- अनारकली! सलीम तुम्हें मरने नहीं देगा और हम तुम्हें जीने नहीं देंगे। इस धर्मसंकट में बलिहारी गुरू आपने रस्ता दिया दिखाय। यानी बीच का रास्ता यह निकाला जाता है कि ये सारे छात्र परीक्षा के दौरान ग़ैर हाजिर रहें। जब परीक्षा दी ही नहीं तो दूसरी कक्षा में वे जा नहीं सकते, फेल वे हुए नहीं, इससे आदेशों की अवाज्ञ भी नहीं हुई। इसे कहते हैं नियम रूपी सांप को बिना लाठी तोड़े मारना। इस मौके पर गालिब का फारसी में लिखा एक शेर याद आ रहा है- मगज़ को न जाने दे बाग में, नाहक खून हो जाएगा परवाने का। अर्थ यह कि मगज़ यानी शहद की मक्खी बाग में जाएगी तो फूलों से शहद और मोम इक्कठा करेगी। मोम से मोमबत्तियां बनेंगी। मोमबत्ती जलेगी तो परवाने (कीट-पतंगे) आएंगे और जल कर मरेंगे। इसलिए शहद मक्खी को बाग में जाने ही न दो, न मोम बनेगा न परवाने का नाहक खून होगा।
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