राजस्थान कृषि विभाग ने 27 जुलाई 2010 में बीज अनुसंधान के क्षेत्र में अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो सहित सात कंपनियों के साथ एक सहमती-पत्र (एमओयू) हस्ताक्षरित किया था, जिसके अनुसार बीजों पर अनुसंधान करने के लिए प्रदेश के दोनों कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विभाग और राज्य बीज निगम के पास मौजूद सुविधाओं और स्टाफ का पूरा उपयोग करने की छूट इन कंपनियों को देने का प्रावधान था। कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक भी इन कंपनियों की देखरेख में अनुसंधान करते लेकिन सरकारी सुविधाओं और स्टाफ का पूरा उपयोग करने के बाद विकसित किए गए बीजों पर पेटेंट अधिकार इन बीज कंपनियों का होता। रिसर्च सीड को इन कंपनियां को अपनी ही दरों पर बेचने की इजाजत भी थी। अगर यह समझौता लागू हो जाता तो बीज के मामले में किसान पूरी तरह इन कंपनियों पर निर्भर हो जाता। सरकार के पूरे संसाधन लगने के बावजूद बीज विपणन और अनुसंधान में निजी कंपनियों का एकाधिकार हो जाता।
इस तरह के अलाभकारी समझौतों का किसान और सामाजिक संगठनों ने भारी विरोध किया। मामला यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसकी जांच करवाई। विवाद के बाद कृषि विभाग ने दिसंबर 2010 में इन विवादास्पद करारों के अमल पर रोक लगा दी और इनकी समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति भी बना दी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)द्वारा हाल ही में कृषि विभाग को लिखे एक पत्र में इन समझौतों पर सवाल उठाए। पत्र के अनुसार बीज अनुसंधान में निजी कंपनियों के साथ सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप- पीपीपी मॉडल) में भागीदारी के संबंध में आईसीएआर एक नीति बना रहा है जिसके घोषित होने तक कोई भी राज्य इस तरह के करार नहीं कर सकता। आईसीएआर के इस पत्र के बाद कृषि विभाग नें आनन-फानन इन विवादित करारों को रद्द करने का फैसला कर लिया है। आईसीएआर से मंजूरी के बिना किए इन समझौतों को कृषि विभाग के अफसरों ने रद्द करने के फैसले की पुष्टि हो चुकी है, केवल संबंधित कंपनियों को इसे रद्द करने की सूचना देना और आदेश जारी करने की औपचारिकता ही बाकी रह गई है।
इस तरह के अलाभकारी समझौतों का किसान और सामाजिक संगठनों ने भारी विरोध किया। मामला यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसकी जांच करवाई। विवाद के बाद कृषि विभाग ने दिसंबर 2010 में इन विवादास्पद करारों के अमल पर रोक लगा दी और इनकी समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति भी बना दी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)द्वारा हाल ही में कृषि विभाग को लिखे एक पत्र में इन समझौतों पर सवाल उठाए। पत्र के अनुसार बीज अनुसंधान में निजी कंपनियों के साथ सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप- पीपीपी मॉडल) में भागीदारी के संबंध में आईसीएआर एक नीति बना रहा है जिसके घोषित होने तक कोई भी राज्य इस तरह के करार नहीं कर सकता। आईसीएआर के इस पत्र के बाद कृषि विभाग नें आनन-फानन इन विवादित करारों को रद्द करने का फैसला कर लिया है। आईसीएआर से मंजूरी के बिना किए इन समझौतों को कृषि विभाग के अफसरों ने रद्द करने के फैसले की पुष्टि हो चुकी है, केवल संबंधित कंपनियों को इसे रद्द करने की सूचना देना और आदेश जारी करने की औपचारिकता ही बाकी रह गई है।
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