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Thursday, March 15, 2012

बूझो तो, पानी कहां गया?

इस देश में पानी के लिए काम करने वाले दो तरह के लोग हैं। पहले वे जिन्होंने पानी सहेजन, बचाने और सूखे गलों तक पानी पहुंचाने के लिए अपनी सारी जिन्दगी लगा दी और दूसरे हैं पानी के जादूगर। ये लोग चलती नहर से हजारों क्यूसेक पानी गायब कर देते हैं और बढ़ा भी देते हैं। एक उदाहरण देखें- गंगनहर जब पंजाब से राजस्थान में प्रवेश करती है तो शिवपुर हेड पर पानी होता है 1950 से 2000 क्यूसेक जबकि पंजाब का सिंचाई विभाग इसमें 2400 क्यूसेक बताता है। इसी तरह हरिके बैराज से बीकानेर कैनाल के लिए 2400 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है, लेकिन राजस्थान आते-आते यह रह जाता है 2000 क्यूसेक से भी कम। चार सौ क्यूसेक पानी न तो हवा में उड सकता है और न ही लोटे-बाल्टी से चुराया जा सकता है। गोरखबाबा की पहेली यह है कि फिर यह पानी जाता कहां है? वह भी उस स्थिति में जब पंजाब में राजस्थान से जुड़ी नहरों से पानी की छीजत रोकने के लिए मरम्मत पर लगभग 200 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हों।
इतने बड़े पैमाने पर पानी के गायब होने के चार कारण हो सकते हैं पहला: यह कि पंजाब में बड़े पैमाने पर पानी की चोरी हो रही है। दूसरा: यह कि पानी नापने वाले गेज में गड़बड़ी है। तीसरा: यह कि पंजाब में चोरी भी हो रही हो और गेज में भी खराबी हो। चौथा: और अंतिम कारण है कि ये सब बातें सिरे से झूठी हों। इतनी दूरी तय करने और नहर के रख-रखाव के कारण अधिकतम 100 क्यूसेक पानी कम हो सकता है। ज्यादा मात्रा में पानी कम होने और गेज में अन्तर की शिकायतें मिलने पर कुछ माह पूर्व राजस्थान के सिंचाई राज्यमंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर ने एक दल के साथ पंजाब में इन नहरों का दौरा किया तो पंजाब के अधिकारी इस बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। इस पर मंत्रीजी ने दोनों राज्यों के अधिकारियों की संयुक्त टीम बनाकर इसकी जांच करवाने को कहा लेकिन नतीजा फिर भी वही है जो पहले था। पानी गायब होने की इस पहेली पर किसान संघर्ष समिति के प्रवक्ता एडवोकेट सुभाष सहगल कहते हैं कि 400 क्यूसेक पानी की गड़बड़ी बहुत गम्भीर है, लेकिन राजस्थान सरकार, और विभाग के अधिकारी तथा हमारे जनप्रतिनिधि इसकी ओर से आंखें मूंदे हुए हैं। वे कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक-एक बूंद पानी को कीमती बताकर उसे बचाने का नारा तो देते हैं, लेकिन हमारे हिस्से के इस पानी की चोरी को रोकने के लिए कोई कार्यवाही नहीं करते।
गंग नहर प्रोजक्ट चेअरमेन शमीरसिंह का कहना है कि- चोरी और गेज में अंतर की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता, पर इसके अतिरिक्त दो कारण और भी हैं। जिनमें पहला कारण है दो राज्यों के बीच की राजनीति और दूसरा है राजस्थान सरकार ने पंजाब सरकार को नहर मरम्मत के पैसे नहीं दिए, इसलिए वो पानी कम दे रहे हैं। जबकि इस्टर्न कैनाल डिविजन, फिरोजपुर के अधीशाषी अभियंता सुखबीरसिंह इससे इंकार करते हुए कहते हैं कि- पैसे का लेन-देन दो सरकारों का मसला है, यह भी सही है कि पिछले साल करवाए गए मरम्मत कार्य के पैसे हमें नहीं मिले हैं, जिसकी वजह से ठेकेदारों ने हमारे विभाग पर मुकद्दमे भी किए हैं, लेकिन इसके लिए खेती का पानी रोकना कोई हल नहीं है। एकबार डैम से पानी मिलने के बाद उसे हम कहां स्टोर करेगें? हमने कभी राजस्थान के हिस्से का पानी नहीं रोका, अलबत्ता वक्त-जरूरत पर ज्यादा जरूर दिया है। सुखबीरसिंह की इस बात का समर्थन पूर्व सिंचाई राज्य मंत्री गुरजंटसिह बराड़ और गंग नहर के पूर्व मुख्य अभियंता दर्शनसिंह भी करते हैं। इनका कहना है कि पानी कम-ज्यादा होता ही रहता है, हमें जब भी ज्यादा पानी की जरूरत हुई है तब पंजाब से मिला है। पंजाब से तय पानी से ज्यादा मिलने की बात को कमोबेश किसान, नेता, अधिकारी और विपक्ष सभी स्वीकार करते हैं। पानी की इस असली-नकली कमी ने क्षेत्र में कुछ ऐसे गिरोह पैदा कर दिए हैं, जो किसानों से पैसा इक्टठा करते हैं और अपना हिस्सा रखकर पंजाब से ज्यादा पानी रातों-रात ले आते हैं। आजकल इस काम के लिए पंजाब जाना तक नहीं पड़ता, वहां के बेलदार के खाते में पैसा जमा करवा कर मोबाइल पर सूचना देकर पानी जब चाहे बढ़वाया जा सकता है। अब यही तो गोरख बाबा की अबूझ पहेली है कि पानी जरूरत से ज्यादा मिलता है पर रोना हमेशा कम का क्यों रोया जाता है? आखिर ये पानी की कहानी क्या है?

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