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Wednesday, October 19, 2011

जानें सीधी खरीद के बारे में

सरकार का हमेशा से प्रयास रहा है कि किसानों को उनकी उपज का पूरा व सही भाव मिले। इसी नीति के क्रियान्वयन में धान मण्डियों का विकास हुआ। देश भर की छोटी-बड़ी मिलाकर लाखों मण्डियों को बसाने और वहां किसानों के लिए उचित सुविधाएं जुटाने के लिए खरबों रूपए विगत साठ वर्षों में खर्च किए गए और यह प्रक्रिया आज भी जारी हैं। इन दिनों व्यापार के वैश्विक दबाव में सरकार यह मानने लगी है कि इसके सामान्तर कोई दूसरा विकल्प भी होना चाहिए। तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे   किसानों को उचित भाव मिलेगा और बड़ी कम्पनियों को सस्ता कच्चा माल मिलेगा।
कैसे होती है सीधी खरीद?
पांच सात किलोमीटर के दायरे में कम्पनी उपज खरीद के लिए एक प्रतिनिधि नियुक्त करती है, जिसके पास एक इंटरनेट युक्त कम्प्युटर होता है। इस कम्प्युटर की मदद से उस संचालक को अगले दिन उपज खरीदने का एक भाव मिलता है जिसे वह किसानों तक पहुंचाता है। जो किसान उस भाव पर उपज बेचने का इच्छुक होता है, वह अपनी उपज का अनुमानित वजन लिखवा कर एक पर्ची बनवा लेता है। इस तरह के सारे किसान कम्पनी द्वारा स्थापित नजदीक के केन्द्र पर अपनी उपज लेकर पहुंच जाते हैं, जहां झार लगा कर साफ उपज का वजन किया जाता है। इस खरीद के कुछ मानदंड हैं जैसे- हेक्टोलीटर जांच। इसमें एक लीटर के बर्तन में गेहूं भरकर तौला जाता है, अगर उसका वजन 790 ग्राम से ज्यादा हो तो कोई कटौती नहीं होती। दूसरी जांच में उपज की नमी देखी जाती 10 प्रतिशत से कम नमी पर भी कटौती नहीं होती। तीसरी जांच में दानें अगर 3 प्रतिशत से कम टूटे हो तो भी कोई काट नहीं लगती। चौथी और पांचवी जांच में अनाज सफेद, फफूंद लगा और भीगा हुआ न हो तो तय कीमत ही अदा की जाती है। अगर इनमें से किसी भी जांच में उपज मानक स्तर पर खरी न हो तो भी सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव नहीं दिए जाते।
क्या है सीधी खरीद का नफा-नुकसान?
इस तरह की खरीद में किसान को कई लाभ हैं, जैसे- किसान को पहले ही पता होता है कि उसकी उपज किस भाव पर बिकेगी। उपज बेचने के लिए नीलामी का लम्बा इंतजार नहीं करना पड़ता और तुरंत भुगतान मिल जाता है। पर इस व्यवस्था में कुछ नुकसान भी हैं जैसे-एकबार कीमत तय हो गई वही मिलती है, चाहे उस दिन बाजार में कोई भी भाव हो। मण्डी में दस-बीस व्यापारी बोली लगाकर उपज खरीदते हैं, उसमें सम्भावना रहती है कि भाव ज्यादा भी मिल सकता है, साथ ही तसल्ली भी होती है कि भाव सही मिला है। जबकि सीधी खरीद में एक ही आदमी भाव लगाता है। सीधी खरीद में तय भाव में नमी, दाना छोटा या टुकड़ों में होने पर भाव में कुछ प्रतिशत की कमी हो जाती है। अब किसान के पास दो ही विकल्प हैं या तो कम्पनी के प्रस्तावित मूल्य पर उपज बेचे या किए गए खर्च को भूल कर घर लौट आए। सीधी खरीद एक सीमित समय के लिए होती है अब अगर फसल पहले तैयार हो जाए तो इंतजार करें और अगर फसल निकालने में देरी हो जाए  
तो किसान क्या करे?
आढ़तिये और किसान में बरसों साथ काम करने से एक संबंध बन जाता है जो किसान को मण्डी के बाहर भी कई तरह की सुविधाएं दिलवाता है, पर कम्पनी के अधिकारी अपनी नौकरी की वजह से बदलते रहते हैं तथा वे इस तरह के व्यक्तिगत संबंधों में विश्वास भी नहीं रखते। किसान किसी भी वजह से खरीद केन्द्र पर शाम के बाद पहुंचे तो उसे वहां कोई नहीं मिलता, जबकि आढ़तिये को आधी रात में भी किसान के लिए खाने और सोने का इंतजाम करना पड़ता है। सबसे बड़ी असुविधा यह है कि बिना फसल लाए या उपज का भुगतान लेने के बाद भी केवल आढ़तिया ही जरूरत पर रूपए-पैसे से इमदाद करता है, कम्पनियों में यह सुविधा नहीं है।

1 comment:

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