विगत दिनों गंगानगर के व्यापारी और उद्योगपति एकजुट हो कर क्षेत्र के लिए टैक्सटाइल पार्क की मांग कर रहे थे। राज्य और केंद्र सरकार को बहुत सारी संस्थाओं ने पत्र भी लिखे। उसी समय एक सरकारी योजना के बारे में जानकारी मिली- कपास प्रौद्योगिकी मिशन। इस मिशन का टैक्सटाइल पार्क से क्या संबंध है, जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि क्या थी कपास प्रौद्योगिकी मिशन योजना?
फरवरी, 2000 में कपास प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना कपास में गुणवत्ता में सुधार के साथ उत्पादकता में वृद्धि लाने के साथ-साथ कपास उत्पादकों की आय में वृद्धि, वस्त्रोद्योग और जिनिंग प्रेसिंग मिलों का कायाकल्प तथा मंडियों में भी आधारभूत परिर्वतन करना था। भारत सरकार ने अरबों रूपए वाली इस योजना की जि़म्मेदारी के लिए कपास प्रौद्योगिकी मिशन का अलग विभाग बनाया और सहयोग के लिए कॉटन कारपोरेशन को साथ जोड़ा। इस कार्यक्रम की अधिकांश गतिविधियाँ मिनी मिशन-1 से 4 के अधीन संचालित की गयी।
यहां के व्यापारियों द्वारा टैक्सटाइल पार्क की मांग करते समय बार-बार यह दावा किया कि इस गया कि इस परियोजना के लिए गंगानगर से बेहतर दुनिया में और कोई दूसरा स्थान नहीं है। इस दावे में कितनी पोल है जानने के लिए यह जानना भी ज़रूरी है कि टेक्रानॉलॉजी मिशन इन कॉटन (टीएमसी) के साथ क्या सलूक किया गया?
मिनी मिशन-1 : इसके लिए नोडल एजेंसी थी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) और इसका उद्देश्य था- कम अवधि में अधिक उपजवाली, रोग एवं कीट प्रतिरोधी किस्मों का विकास करना, जिसका रेशा (फाइबर) वस्त्रोद्योग के मानदंड पर खरा उतरता हो। कपास खेती के लिए सघनित जल और पोषक तत्वों का प्रबंध तथा विभिन्न कपास उत्पादक राज्यों में कीट प्रबंधन प्रौद्योगिका का विकास करना और खेती की लागत घटाना जैसे महत्त्वपूर्ण करना।
मिनी मिशन-2 : नोडल एजेंसी कृषि और सहकारिता मंत्रालय और भारतीय कपास निगम, उद्देश्य था- प्रदर्शन और प्रशिक्षण द्वारा प्रौद्योगिकी का अंतरण। डीलिंटिंग इकाइयाँ स्थापित करना और उनके लिए प्रमाणित बीजों का आपूर्ति। किसानों को आवधिक रूप से पर्याप्त और समय पर जानकारी उपलब्ध करवाना।
मिनी मिशन-3 : इस मिनी मिशन के लिए वस्त्र मंत्रालय और भारतीय कपास निगम नोडल एजेंसी है और उद्देश्य है - नए मंडियों की स्थापना और मौजूदा मंडियों में सुधार।
मिनी मिशन-4 : इस मिनी मिशन के लिए वस्त्र मंत्रालय नोडल एजेंसी और उद्देश्य हैं- वर्तमान जिनिंग और प्रेसिंग फैक्टरियों का उच्च तकनीकी आधुनिकीकरण करना कपास संसाधन में सुधार हो सके।
यहां हम आज बात करेंगे मिशन-3 की जिसमें करोडों रूपए खर्च कर आजादी के बाद पहली बार मंडी में आधुनिकतम सुविधाएं जुटाई गई, जैसे किसान सूचना केंद्र की स्थापना करना जिसमें किसानों को मृदा, जलवायु स्थितियों, वर्षा, बीजों की उपयुक्तता, उपज प्रबंधन, तकनीकी सलाह, विशेष और निकटस्थ मंडियों पर बाजार जानकारी, देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ विश्व भावों की जानकारी, राज्य/केंद्र सरकार की नीतियाँ, ऋण का तरीका और स्त्रोत, स्थानीय भाषाओं में बीमा योजना और उपज संबंधित जानकारी देने के लिए निगम ने देश की 95 मंडियों में अति-आधुनिक सूचना केंद्र स्थापित किए, जिनमें टच स्क्रीन कियोस्क, डिजिटल डिसप्ले बोर्ड, टेलीविजन, कम्प्युटर और प्रिंटर, इंटरनेट तथा टेलीफोन के साथ-साथ इंटरएक्टिव वॉईस रिसपोंस सिस्टम (आइवीआरएस) सुविधाओं से युक्त हैं।
इसके साथ कपास के लिए एक प्रयोगशाला जिसमें अति-आधुनिक जांच के लिए एचवीआई, नमी जांच यंत्र, ट्रेस स्परेटर जैसी मशीने लगाई गई। इन मशीनों से थोड़ी मात्रा में बिनौले अलग करना, कपास में पत्ते, मिट्टी, गंदगी अलग करना और नमी की जांच, रेशे की लम्बाई और गुणवत्ता आदि की जांच किसानों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध है। मंडी में ही बड़े और छोटे इलैक्ट्रॉनिक तौल कांटे और आग लगने की स्थिति में आग बुझाने के यंत्र भी लगाए गए। इतना ही नहीं भंडारण के लिए गोदाम, पक्की सड़कें, पक्के फर्श, पार्किंग सुविधा, ठहरने के लिए विश्रामगृह और सस्ता सुलभ भोजन जैसी और भी बहुत सारी सुविधाओं का भी प्रंबंध किया गया।
इस योजना के तहत देश भर में 1 लाख 16 हजार 8 सौ करोड़ तथा गंगानगर हनुमानगढ़ की 11 मंडियों पर लगभग 1 हजार 7 सौ करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं। इतना खर्च करने के बाद भी उत्तर भारत की 95 प्रतिशत मंडियों में किसान सूचना केंद्र और प्रयोगशाला के लिए दिए गए तमाम उपकरण जस के तस पड़े हैं। उदाहरण के लिए गंगानगर की मंडी में ये सारे उपकरण एक कमरे में बंद करके रखने की वजह जब मंडी सचिव टीआर मीणा से जाननी चाही तो उनका जवाब था-''ये तमाम उपकरण सन 2002 से ही बंद पड़े हैं और मेरी नियुक्ति 2010 में हुई है। मैं देखूंगा कि ये अगर अब भी चलने की स्थिति में हैं तो जल्द से जल्द शुरू करवा दिए जाएंगे।'' मंडी से सीधे जुड़े और कपास के प्रमुख व्यापारी मंडी समिति के पूर्व अध्यक्ष परमजीत समरा, दी गंगानगर ट्रेडर्स एसोशिएशन के अध्यक्ष संजय महीपाल, जिला कच्चा आढ़तिया संघ के अध्यक्ष हनुमान गोयल, गंगानगर कच्चा आढ़तिया संघ के अध्यक्ष चन्द्रेश जैन और मंडी की वर्तमान अध्यक्षा श्रीमती रमनदीप कौर और उपाध्यक्ष राजेश पोकरण का समवेत सुरों में कहना है कि ''हमें इस बारे में कुछ भी पता नहीं। अगर ऐसे उपकरण मंडी कार्यालय में पडे हैं तो उन्हें तुरंत आरंभ करवाएंगे।''
फरवरी, 2000 में कपास प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना कपास में गुणवत्ता में सुधार के साथ उत्पादकता में वृद्धि लाने के साथ-साथ कपास उत्पादकों की आय में वृद्धि, वस्त्रोद्योग और जिनिंग प्रेसिंग मिलों का कायाकल्प तथा मंडियों में भी आधारभूत परिर्वतन करना था। भारत सरकार ने अरबों रूपए वाली इस योजना की जि़म्मेदारी के लिए कपास प्रौद्योगिकी मिशन का अलग विभाग बनाया और सहयोग के लिए कॉटन कारपोरेशन को साथ जोड़ा। इस कार्यक्रम की अधिकांश गतिविधियाँ मिनी मिशन-1 से 4 के अधीन संचालित की गयी।
यहां के व्यापारियों द्वारा टैक्सटाइल पार्क की मांग करते समय बार-बार यह दावा किया कि इस गया कि इस परियोजना के लिए गंगानगर से बेहतर दुनिया में और कोई दूसरा स्थान नहीं है। इस दावे में कितनी पोल है जानने के लिए यह जानना भी ज़रूरी है कि टेक्रानॉलॉजी मिशन इन कॉटन (टीएमसी) के साथ क्या सलूक किया गया?
मिनी मिशन-1 : इसके लिए नोडल एजेंसी थी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) और इसका उद्देश्य था- कम अवधि में अधिक उपजवाली, रोग एवं कीट प्रतिरोधी किस्मों का विकास करना, जिसका रेशा (फाइबर) वस्त्रोद्योग के मानदंड पर खरा उतरता हो। कपास खेती के लिए सघनित जल और पोषक तत्वों का प्रबंध तथा विभिन्न कपास उत्पादक राज्यों में कीट प्रबंधन प्रौद्योगिका का विकास करना और खेती की लागत घटाना जैसे महत्त्वपूर्ण करना।
मिनी मिशन-2 : नोडल एजेंसी कृषि और सहकारिता मंत्रालय और भारतीय कपास निगम, उद्देश्य था- प्रदर्शन और प्रशिक्षण द्वारा प्रौद्योगिकी का अंतरण। डीलिंटिंग इकाइयाँ स्थापित करना और उनके लिए प्रमाणित बीजों का आपूर्ति। किसानों को आवधिक रूप से पर्याप्त और समय पर जानकारी उपलब्ध करवाना।
मिनी मिशन-3 : इस मिनी मिशन के लिए वस्त्र मंत्रालय और भारतीय कपास निगम नोडल एजेंसी है और उद्देश्य है - नए मंडियों की स्थापना और मौजूदा मंडियों में सुधार।
मिनी मिशन-4 : इस मिनी मिशन के लिए वस्त्र मंत्रालय नोडल एजेंसी और उद्देश्य हैं- वर्तमान जिनिंग और प्रेसिंग फैक्टरियों का उच्च तकनीकी आधुनिकीकरण करना कपास संसाधन में सुधार हो सके।
यहां हम आज बात करेंगे मिशन-3 की जिसमें करोडों रूपए खर्च कर आजादी के बाद पहली बार मंडी में आधुनिकतम सुविधाएं जुटाई गई, जैसे किसान सूचना केंद्र की स्थापना करना जिसमें किसानों को मृदा, जलवायु स्थितियों, वर्षा, बीजों की उपयुक्तता, उपज प्रबंधन, तकनीकी सलाह, विशेष और निकटस्थ मंडियों पर बाजार जानकारी, देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ विश्व भावों की जानकारी, राज्य/केंद्र सरकार की नीतियाँ, ऋण का तरीका और स्त्रोत, स्थानीय भाषाओं में बीमा योजना और उपज संबंधित जानकारी देने के लिए निगम ने देश की 95 मंडियों में अति-आधुनिक सूचना केंद्र स्थापित किए, जिनमें टच स्क्रीन कियोस्क, डिजिटल डिसप्ले बोर्ड, टेलीविजन, कम्प्युटर और प्रिंटर, इंटरनेट तथा टेलीफोन के साथ-साथ इंटरएक्टिव वॉईस रिसपोंस सिस्टम (आइवीआरएस) सुविधाओं से युक्त हैं।
इसके साथ कपास के लिए एक प्रयोगशाला जिसमें अति-आधुनिक जांच के लिए एचवीआई, नमी जांच यंत्र, ट्रेस स्परेटर जैसी मशीने लगाई गई। इन मशीनों से थोड़ी मात्रा में बिनौले अलग करना, कपास में पत्ते, मिट्टी, गंदगी अलग करना और नमी की जांच, रेशे की लम्बाई और गुणवत्ता आदि की जांच किसानों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध है। मंडी में ही बड़े और छोटे इलैक्ट्रॉनिक तौल कांटे और आग लगने की स्थिति में आग बुझाने के यंत्र भी लगाए गए। इतना ही नहीं भंडारण के लिए गोदाम, पक्की सड़कें, पक्के फर्श, पार्किंग सुविधा, ठहरने के लिए विश्रामगृह और सस्ता सुलभ भोजन जैसी और भी बहुत सारी सुविधाओं का भी प्रंबंध किया गया।
इस योजना के तहत देश भर में 1 लाख 16 हजार 8 सौ करोड़ तथा गंगानगर हनुमानगढ़ की 11 मंडियों पर लगभग 1 हजार 7 सौ करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं। इतना खर्च करने के बाद भी उत्तर भारत की 95 प्रतिशत मंडियों में किसान सूचना केंद्र और प्रयोगशाला के लिए दिए गए तमाम उपकरण जस के तस पड़े हैं। उदाहरण के लिए गंगानगर की मंडी में ये सारे उपकरण एक कमरे में बंद करके रखने की वजह जब मंडी सचिव टीआर मीणा से जाननी चाही तो उनका जवाब था-''ये तमाम उपकरण सन 2002 से ही बंद पड़े हैं और मेरी नियुक्ति 2010 में हुई है। मैं देखूंगा कि ये अगर अब भी चलने की स्थिति में हैं तो जल्द से जल्द शुरू करवा दिए जाएंगे।'' मंडी से सीधे जुड़े और कपास के प्रमुख व्यापारी मंडी समिति के पूर्व अध्यक्ष परमजीत समरा, दी गंगानगर ट्रेडर्स एसोशिएशन के अध्यक्ष संजय महीपाल, जिला कच्चा आढ़तिया संघ के अध्यक्ष हनुमान गोयल, गंगानगर कच्चा आढ़तिया संघ के अध्यक्ष चन्द्रेश जैन और मंडी की वर्तमान अध्यक्षा श्रीमती रमनदीप कौर और उपाध्यक्ष राजेश पोकरण का समवेत सुरों में कहना है कि ''हमें इस बारे में कुछ भी पता नहीं। अगर ऐसे उपकरण मंडी कार्यालय में पडे हैं तो उन्हें तुरंत आरंभ करवाएंगे।''
अध्यक्ष श्रीमती रमनदीप कौर ने तो इससे एक कदम आगे की योजना को साथ जोड़ा और कहा कि ''पहले का मुझे पता नहीं पर अब हम कपास के साथ-साथ सरसों और मिट्टी जांच की प्रयोग भी शुरू करवा देंगे। '' इसी योजना में देश भर के कुल 372 जिनिंग और प्रेसिंग कारखानों नें यह प्रस्ताव स्वीकार किया। जिनमें हरियाण में किसी ने नहीं, राजस्थान के 1 तथा पंजाब के 5 कारखानों ने इस सुविधा को स्वीकारा जबकि महाराष्ट्र में 196 तथा गुजरात में 139 कारखानों ने इसका लाभ उठाया।
इस बारे में गंगानगर के बड़े कारखाना मालिकों के जवाब भी सुनलें। चितलांगिया कॉटन फैक्ट्री के आदित्य चितलांगिया के अनुसार- ''जरूरत ही नहीं थी, हमारे पास पहले से ही स्थानीय उत्पादन के हिसाब से मशीनें व सुविधाएं पर्याप्त हैं।" ए एंड ए स्पिनर्स के सतीश कांडा कहते हैं- ''एक तो क्षेत्र में जागरूकता ही कम है दूसरे यहां की सभी बड़ी मिलें ठेके पर चल रही हैं, इसलिए जरूरत ही महसूस नहीं हुई।"
ऐसा नहीं है कि टीएमसी मिशन 1, 2 और 4 को उत्तर भारत ने सिर-आंखों पर लिया है। वहां भी ऐसे ही और इससे भी बदतर हालात मिलेंगे। सरकार ने इस महती योजना पर 2 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च कर दिए और इतने ही और भी कर सकती थी पर कोई लेने वाला ही नहीं, या जिसने ले लिए उसने इस्तेमाल ही नहीं किए।
सवाल यह है कि जब सरकार किसी योजना में करोडों रूपए खर्च करने के लिए देती है तो हमसे खर्च नहीं होते, अगर उन रूपयों से मशीन और उपकरण खरीद कर देदे तो हम से संभाले नहीं जाते, तब हम किस मुहं से 7500 करोड़ की परियोजना के लिए जि़द्द कर सकते हैं? ऐसा नहीं है कि इसके लिए कोई एक राजनैतिक पार्टी, व्यापारियों का एक वर्ग विशेष या फिर सरकारी कर्मचारी दोषी हैं। दरअसल इस तरह की नाकामी के लिए ये सभी जि़म्मेदार हैं।
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि टीएमसी के लिए 12वीं योजना में गुजरात, महाराष्ट्र और आन्ध्रप्रदेश के लिए कुछ सहायता राशि का प्रावधान रखा है, जबकि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा शेष राज्यों के लिए इसे बंद किया जा रहा है। स्वभाविक ही है जो राज्य योजना के रहते कोई लाभ नहीं ले सके उनके लिए इसका जारी रखा जाना ज़रूरी भी नहीं।
इस विषय में जब राजस्थान सरकार के कृषि विपणन राज्य मंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर से पूछा गया तो उनका कहना था कि मैं इस विषय में पूरी जानकारी के बाद ही कुछ कह पाऊँगा।
इस बारे में गंगानगर के बड़े कारखाना मालिकों के जवाब भी सुनलें। चितलांगिया कॉटन फैक्ट्री के आदित्य चितलांगिया के अनुसार- ''जरूरत ही नहीं थी, हमारे पास पहले से ही स्थानीय उत्पादन के हिसाब से मशीनें व सुविधाएं पर्याप्त हैं।" ए एंड ए स्पिनर्स के सतीश कांडा कहते हैं- ''एक तो क्षेत्र में जागरूकता ही कम है दूसरे यहां की सभी बड़ी मिलें ठेके पर चल रही हैं, इसलिए जरूरत ही महसूस नहीं हुई।"
ऐसा नहीं है कि टीएमसी मिशन 1, 2 और 4 को उत्तर भारत ने सिर-आंखों पर लिया है। वहां भी ऐसे ही और इससे भी बदतर हालात मिलेंगे। सरकार ने इस महती योजना पर 2 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च कर दिए और इतने ही और भी कर सकती थी पर कोई लेने वाला ही नहीं, या जिसने ले लिए उसने इस्तेमाल ही नहीं किए।
सवाल यह है कि जब सरकार किसी योजना में करोडों रूपए खर्च करने के लिए देती है तो हमसे खर्च नहीं होते, अगर उन रूपयों से मशीन और उपकरण खरीद कर देदे तो हम से संभाले नहीं जाते, तब हम किस मुहं से 7500 करोड़ की परियोजना के लिए जि़द्द कर सकते हैं? ऐसा नहीं है कि इसके लिए कोई एक राजनैतिक पार्टी, व्यापारियों का एक वर्ग विशेष या फिर सरकारी कर्मचारी दोषी हैं। दरअसल इस तरह की नाकामी के लिए ये सभी जि़म्मेदार हैं।
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि टीएमसी के लिए 12वीं योजना में गुजरात, महाराष्ट्र और आन्ध्रप्रदेश के लिए कुछ सहायता राशि का प्रावधान रखा है, जबकि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा शेष राज्यों के लिए इसे बंद किया जा रहा है। स्वभाविक ही है जो राज्य योजना के रहते कोई लाभ नहीं ले सके उनके लिए इसका जारी रखा जाना ज़रूरी भी नहीं।
इस विषय में जब राजस्थान सरकार के कृषि विपणन राज्य मंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर से पूछा गया तो उनका कहना था कि मैं इस विषय में पूरी जानकारी के बाद ही कुछ कह पाऊँगा।
Hindi kahawat yaad ati hai- Andhi peese kutta khaye
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