मात्र छ: माह में ग्वार के भाव 2500 से 25 हजार प्रति क्विण्टल तक पहुंच गए। दिन दुगने रात चौगुने बढ़ रहे ग्वार के भाव में अभूतपूर्व बढ़ोतरी को लेकर किसानों व आढ़तियों के साथ-साथ आम लोग भी हैरान हैं। भावों को लेकर अब यह चर्चा भी हो रही है कि ग्वार को अब सुखे मेवों में शामिल कर लिया जाए, क्योंकि किशमिश (150 से 250 रूपए प्रति किलो)और बादाम (200 से 300 रूपए प्र.कि.) की तरह ग्वार 250 प्रति किलो तक पहुंच चुका है और जल्द ही 350 रूपए प्र. कि. को पार करने वाला है। मजाक में तो यहां तक कहा जा रहा है कि भविष्य में ग्वार के गहने भी बनेगें। फरवरी की शुरुआत में जब ग्वार के भाव 10 हजार रूपए क्विण्टल के करीब चल रहे थे वही मार्च आते-आते दो गुणा बढ़कर 20 हजार से ऊपर निकल गए। मांग इसी तरह बनी रही तो यह भी संभावना है कि यह 30 हजार से भी पार कर जाएगा। आजकल दो प्रश्र हर तरफ हैं। पहला यह कि ग्वार के भाव एकदम से इतना बढ़ा कैसे? और दूसरा यह कि, क्या यह तेजी कब तक बनी रहेगी? जितने लोग, उतने ही तर्क। आइए पहले यह जानने का प्रयास करें कि ग्वार की मांग एकदम से इतनी क्यों बढ़ी? पर उससे पहले ग्वार के इस्तेमाल के बारे में प्रचलित लाल बुझक्कड़ी और तथ्य परक अनुमान।
पहला तथ्य तो यह है कि ग्वार के इस्तेमाल से पेट्रोल के कुओं में खुदाई में प्रयुक्त हाइड्रो-ड्रिल तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव आया है। दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी और सौंवी कौड़ी यह कि, यह अब डीज़ल इंडस्ट्रीज में काम आने लगा। यह कच्चे तेल को साफ करने में मददगार है। यह पेपर इंडस्ट्रीज में पेपर को साफ-सुथरा और चमकदार बनाने में मददगार है। कि यह यूरेनियम को साफ करने में भी काम आता है। कि इसका इस्तेमाल दवाओं, कैप्सूल के खोल बनाने, बारूद व पटाखे तैयार करने में और आइसक्रीम में होता है। कि यह पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी तेल और काले तेल को साफ करता है। कि ग्वार के लेप से तेल के कुओं की पुताई की जाती है। इन कहानियों के पीछे की हकीकत की बात करें उससे पहले कुछ और कारण जिनकी वजह से ये भाव आसमान छूने लगे हैं।
चर्चा है कि विदेशों में पाकिस्तानी ग्वार की आवक नहीं होने के कारण भारतीय ग्वार की मांग बढ़ी है। इसका कारण पाकिस्तान की ओर से अन्य देशों को ग्वारा का निर्यात रोका जाना बताया जा रहा है। आंकड़े इस बात की पुष्टि भी करते हैं- अप्रैल-नवंबर 2010 में 2.28 लाख टन ग्वार गम का निर्यात जो अप्रैल-नवंबर 2011 में 194 फीसदी बढ़कर 6.7 लाख टन पर पहुंच गया। पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 8 महीनों में ही 6,24,877 लाख रुपए के ग्वार गम का निर्यात हुआ, जो अप्रैल-नवंबर 2010 के मुकाबले 331 फीसदी अधिक था। अकेले नवंबर 2011 में 3.3 लाख टन ग्वार गम निर्यात के कारण इसकी कीमतें हवा से बातें करने लगी थी।
ग्वार की बढ़ती कीमतों की दूसरी वजह सटोरियों की दिलचस्पी को बताया जा रहा है। एनसीडीईएक्स के तीन बार विशेष मार्जिन बढ़ाए जाने के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। इस समय ग्वार और ग्वार गम के सौदों पर कुल 40 प्रतिशत लाभ है, जिसमें 10 प्रतिशत विनिमय लाभ और 30 प्रतिशत विशेष लाभ शामिल है। हालांकि ग्वार वायदा कारोबार में गड़बडी की आशंका और ग्वार वायदा पूरी तरह से सटोरियों के हाथ में जाने की आशंका के चलते सरकार ने एफएमसी (फारवर्ड मार्केट कमिशन)को जांच के आदेश दे दिए हैं। कंज्यूमर्ज अफेयर्ज सचिव राजीव अग्रवाल के मुताबिक एफएमसी ने पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन भी किया है। इस समिति ने एक्सचेंज से ग्वार वायदा कारोबारियों का पूरा ब्यौरा मांगा है। माना जा रहा है सरकार और एफएमसी दोनों मिलकर ग्वार वायदा कारोबार पर कुछ कड़े कदम उठा सकते हैं।
इस बात को सीएनबीसी आवाज के एक मतदान सर्वेक्षण में शामिल सभी लोगों ने भी इसे सच माना है कि ग्वार में आई तेजी पूरी तरह सट्टेबाजी का नतीजा है। सर्वेक्षण में शामिल 90 फीसदी लोगों का कहना है कि ग्वार की तेजी को रोकने के लिए वायदा बाजार आयोग ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए। 73 फीसदी लोगों का यह भी मानना है कि ग्वार वायदे के हालात ऐसे ही रहे तो भुगतान संकट गहराने की पूरी आशंका है तथा 82 प्रतिशत लोगों की राय थी कि ग्वार में कारोबार घटता जा रहा है, जो किसी भी कारोबार के लिहाज से चिंता का विषय है। एक तीसरे पक्ष का मानना है कि ग्वार में आई तेजी के लिए केवल वायदा बाजार ही जिम्मेदार नहीं है। इनके मुताबिक हाजिर बाजार में भी ग्वार पर सट्टेबाजी जारी है, जिसपर रोक लगाने की आवश्यकता है। ग्वार में लगातार तेजी और इसपर मचे वबाल को देखते हुए छोटे कारोबारी तो ग्वार निवेश से दूरी बना ही रहे हैं, बाजार के बड़े जानकार भी ग्वार की इस रफ्तार की वजह को पकडऩे में नाकाम होते दिखाई दे रहे हैं।
इस सबके बाद बात करते हैं उन तथ्यों की, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। देश की सबसे बड़ी ग्वार गम निर्यातक कम्पनी विकास डब्ल्यू एस पी के वाइस प्रेजिडेंट डॉ. संजय पारीक विस्तार से समझाते हैं कि तेल कुओं को सामान्य गहराई तक खोदने में कोई ज्यादा परेशानी नहीं होती पर गहराई में जाकर कुएं को तिरछा (होरिजेंटल)खोदना मुश्किल होता है। ये परेशानियां और बढ़ जाती हैं जब जमीन चट्टानी हो। पूर्व में अमेरिका के अधिकतर तेल कुओं में ऐसी चट्टानी भुमि को तेल, पानी या हवा के दबाव से काटा जाता था। बाद के सालों में ड्रिलिंग कंपनियों ने गैस से कटाई में ग्वार का प्रयोग कर एक नई तकनीक इजाद की है। एक जानकारी के अनुसार संघनित (कन्डेन्सड) तेल सबसे मंहगा माना गया है और उस क्षेत्र की खुदाई में गैस कटिंग तकनीक काम ली जाती है। गैस में ग्वार गम मिलाने के कटाई में दो मुख्य फायदे हैं। पहला तो कटाई के दौरान काम आने वाला ग्वार साइड की दीवारों पर एक फिल्म की तरह चिपक जाता है, जिससे दीवारें मजबूत हो जाती हैं। दूसरा लाभ यह है कि ग्वार बॉयोडीग्रेबल है अगर यह तेल में मिल भी जाए तो कोई नुकसान नहीं होता। ग्वार के पहले से भी कई इस्तेमाल थे पर इस उपयोग ने इस पशु चारे को बेहद कीमती बना दिया।
क्या भविष्य में भी यह मांग बनी रहेगी? के जवाब में डॉ. पारीक कहते हैं कि-अमेरिका के अलावा चीन में भी ऐसे कुएं हैं, और अब तक 42 देशों में 48 ऐसे कुएं चिन्हित किए जा चुके हैं। इन सबके लिए एक अनुमान के अनुसार इस समय 30 लाख टन ग्वार की जरूरत है और आपूर्ति हो रही है सिर्फ 15 लाख टन की। दूसरी मुख्य वजह है ग्वार बीज का मंहगा होना, जिससे बारानी क्षेत्र के काश्तकारों का आगामी भावों के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं होना। वे इस मंहगे भाव का बीज खरीदें और पर्याप्त बरसात न हो तो ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे, इससे पैदावार कम होगी। अगर सिंचित क्षेत्र के किसान इस कमी को दूर भी कर दें तो भी 25 लाख टन से ज्यादा उत्पादन नहीं हो सकता। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगले 5 साल तक ग्वार सोना बनकर उगता रहेगा।
इन सारी अटकलों के बीच कुछ जानकार यह राय भी जाहिर कर रहे हैं कि ग्वार का यह इस्मेताल कई सालों से हो रहा था, भाव बढऩे का फौरी कारण, मांग ज्यादा- आपूर्ति कम, सट्टा और जमाखोरी हैं। इतने मंहगे भाव में एक ऐसी फसल का इंतजार करना जिसका सारा दारो-मदार मौसम पर निर्भर करता हो, किसी जुए से कम नहीं हैं। जल्द ही इसका इस्तेमाल करने वाले उद्यमी कोई और विकल्प ढूंढ़ ही लेंगे। इसके जवाब में कुछ आशावादी लोगों का तर्क है कि-भविष्य में चाहे कुछ भी पर इन भावों को जमीन पर आने अभी वक्त लगेगा।
पहला तथ्य तो यह है कि ग्वार के इस्तेमाल से पेट्रोल के कुओं में खुदाई में प्रयुक्त हाइड्रो-ड्रिल तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव आया है। दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी और सौंवी कौड़ी यह कि, यह अब डीज़ल इंडस्ट्रीज में काम आने लगा। यह कच्चे तेल को साफ करने में मददगार है। यह पेपर इंडस्ट्रीज में पेपर को साफ-सुथरा और चमकदार बनाने में मददगार है। कि यह यूरेनियम को साफ करने में भी काम आता है। कि इसका इस्तेमाल दवाओं, कैप्सूल के खोल बनाने, बारूद व पटाखे तैयार करने में और आइसक्रीम में होता है। कि यह पेट्रोल, डीज़ल, मिट्टी तेल और काले तेल को साफ करता है। कि ग्वार के लेप से तेल के कुओं की पुताई की जाती है। इन कहानियों के पीछे की हकीकत की बात करें उससे पहले कुछ और कारण जिनकी वजह से ये भाव आसमान छूने लगे हैं।
चर्चा है कि विदेशों में पाकिस्तानी ग्वार की आवक नहीं होने के कारण भारतीय ग्वार की मांग बढ़ी है। इसका कारण पाकिस्तान की ओर से अन्य देशों को ग्वारा का निर्यात रोका जाना बताया जा रहा है। आंकड़े इस बात की पुष्टि भी करते हैं- अप्रैल-नवंबर 2010 में 2.28 लाख टन ग्वार गम का निर्यात जो अप्रैल-नवंबर 2011 में 194 फीसदी बढ़कर 6.7 लाख टन पर पहुंच गया। पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 8 महीनों में ही 6,24,877 लाख रुपए के ग्वार गम का निर्यात हुआ, जो अप्रैल-नवंबर 2010 के मुकाबले 331 फीसदी अधिक था। अकेले नवंबर 2011 में 3.3 लाख टन ग्वार गम निर्यात के कारण इसकी कीमतें हवा से बातें करने लगी थी।
ग्वार की बढ़ती कीमतों की दूसरी वजह सटोरियों की दिलचस्पी को बताया जा रहा है। एनसीडीईएक्स के तीन बार विशेष मार्जिन बढ़ाए जाने के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। इस समय ग्वार और ग्वार गम के सौदों पर कुल 40 प्रतिशत लाभ है, जिसमें 10 प्रतिशत विनिमय लाभ और 30 प्रतिशत विशेष लाभ शामिल है। हालांकि ग्वार वायदा कारोबार में गड़बडी की आशंका और ग्वार वायदा पूरी तरह से सटोरियों के हाथ में जाने की आशंका के चलते सरकार ने एफएमसी (फारवर्ड मार्केट कमिशन)को जांच के आदेश दे दिए हैं। कंज्यूमर्ज अफेयर्ज सचिव राजीव अग्रवाल के मुताबिक एफएमसी ने पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन भी किया है। इस समिति ने एक्सचेंज से ग्वार वायदा कारोबारियों का पूरा ब्यौरा मांगा है। माना जा रहा है सरकार और एफएमसी दोनों मिलकर ग्वार वायदा कारोबार पर कुछ कड़े कदम उठा सकते हैं।
इस बात को सीएनबीसी आवाज के एक मतदान सर्वेक्षण में शामिल सभी लोगों ने भी इसे सच माना है कि ग्वार में आई तेजी पूरी तरह सट्टेबाजी का नतीजा है। सर्वेक्षण में शामिल 90 फीसदी लोगों का कहना है कि ग्वार की तेजी को रोकने के लिए वायदा बाजार आयोग ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए। 73 फीसदी लोगों का यह भी मानना है कि ग्वार वायदे के हालात ऐसे ही रहे तो भुगतान संकट गहराने की पूरी आशंका है तथा 82 प्रतिशत लोगों की राय थी कि ग्वार में कारोबार घटता जा रहा है, जो किसी भी कारोबार के लिहाज से चिंता का विषय है। एक तीसरे पक्ष का मानना है कि ग्वार में आई तेजी के लिए केवल वायदा बाजार ही जिम्मेदार नहीं है। इनके मुताबिक हाजिर बाजार में भी ग्वार पर सट्टेबाजी जारी है, जिसपर रोक लगाने की आवश्यकता है। ग्वार में लगातार तेजी और इसपर मचे वबाल को देखते हुए छोटे कारोबारी तो ग्वार निवेश से दूरी बना ही रहे हैं, बाजार के बड़े जानकार भी ग्वार की इस रफ्तार की वजह को पकडऩे में नाकाम होते दिखाई दे रहे हैं।
इस सबके बाद बात करते हैं उन तथ्यों की, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। देश की सबसे बड़ी ग्वार गम निर्यातक कम्पनी विकास डब्ल्यू एस पी के वाइस प्रेजिडेंट डॉ. संजय पारीक विस्तार से समझाते हैं कि तेल कुओं को सामान्य गहराई तक खोदने में कोई ज्यादा परेशानी नहीं होती पर गहराई में जाकर कुएं को तिरछा (होरिजेंटल)खोदना मुश्किल होता है। ये परेशानियां और बढ़ जाती हैं जब जमीन चट्टानी हो। पूर्व में अमेरिका के अधिकतर तेल कुओं में ऐसी चट्टानी भुमि को तेल, पानी या हवा के दबाव से काटा जाता था। बाद के सालों में ड्रिलिंग कंपनियों ने गैस से कटाई में ग्वार का प्रयोग कर एक नई तकनीक इजाद की है। एक जानकारी के अनुसार संघनित (कन्डेन्सड) तेल सबसे मंहगा माना गया है और उस क्षेत्र की खुदाई में गैस कटिंग तकनीक काम ली जाती है। गैस में ग्वार गम मिलाने के कटाई में दो मुख्य फायदे हैं। पहला तो कटाई के दौरान काम आने वाला ग्वार साइड की दीवारों पर एक फिल्म की तरह चिपक जाता है, जिससे दीवारें मजबूत हो जाती हैं। दूसरा लाभ यह है कि ग्वार बॉयोडीग्रेबल है अगर यह तेल में मिल भी जाए तो कोई नुकसान नहीं होता। ग्वार के पहले से भी कई इस्तेमाल थे पर इस उपयोग ने इस पशु चारे को बेहद कीमती बना दिया।
क्या भविष्य में भी यह मांग बनी रहेगी? के जवाब में डॉ. पारीक कहते हैं कि-अमेरिका के अलावा चीन में भी ऐसे कुएं हैं, और अब तक 42 देशों में 48 ऐसे कुएं चिन्हित किए जा चुके हैं। इन सबके लिए एक अनुमान के अनुसार इस समय 30 लाख टन ग्वार की जरूरत है और आपूर्ति हो रही है सिर्फ 15 लाख टन की। दूसरी मुख्य वजह है ग्वार बीज का मंहगा होना, जिससे बारानी क्षेत्र के काश्तकारों का आगामी भावों के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं होना। वे इस मंहगे भाव का बीज खरीदें और पर्याप्त बरसात न हो तो ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे, इससे पैदावार कम होगी। अगर सिंचित क्षेत्र के किसान इस कमी को दूर भी कर दें तो भी 25 लाख टन से ज्यादा उत्पादन नहीं हो सकता। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगले 5 साल तक ग्वार सोना बनकर उगता रहेगा।
इन सारी अटकलों के बीच कुछ जानकार यह राय भी जाहिर कर रहे हैं कि ग्वार का यह इस्मेताल कई सालों से हो रहा था, भाव बढऩे का फौरी कारण, मांग ज्यादा- आपूर्ति कम, सट्टा और जमाखोरी हैं। इतने मंहगे भाव में एक ऐसी फसल का इंतजार करना जिसका सारा दारो-मदार मौसम पर निर्भर करता हो, किसी जुए से कम नहीं हैं। जल्द ही इसका इस्तेमाल करने वाले उद्यमी कोई और विकल्प ढूंढ़ ही लेंगे। इसके जवाब में कुछ आशावादी लोगों का तर्क है कि-भविष्य में चाहे कुछ भी पर इन भावों को जमीन पर आने अभी वक्त लगेगा।
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