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Saturday, January 5, 2013

सरकारी बैंकों से किसानों का मोहभंग

भारतीय बैंकों पर अकसर इल्जाम लगता है कि ये कार लेने वालों से कम और कृषि यंत्र लेने वाले से ऊँची दरों पर ब्याज वसूते हैं। यह अरोप सही भी है क्योंकि जहां कार पर 10 प्रतिशत ब्याज लिया जाता है वहीं ट्रैक्टर 13 प्रतिशत ब्याज से कम पर नहीं मिल सकता। अगर कार लेने वाले की साख अच्छी है और आयकर रिटर्न बड़ी रकम का है तो नियम-कानून के पेच भी थोड़े ढीले हो जाते हैं और ब्याज दर भी कम हो जाती है। जबकि ट्रैक्टर लेने वाला कितना ही बड़ा किसान क्यों न हो उसे कोई रियायत नहीं मिल सकती। इससे भी ज्यादा पक्षपात यह कि ट्रैक्टर या कृषि यंत्रों के लिए किसान को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ती है जबकि कार लेने वाला महज अपनी दो से तीन साल की आमदनी का प्रमाण दे कर बिना कुछ गिरवी रखे ऋण ले सकता है।
कृषि यंत्रों पर महंगे ऋण की बात करने से पूर्व यह जानना जरूरी है कि बैंकों के ऋण मानदण्ड क्या हैं। कोई भी बैंक ऋण देने से के लिए आवेदक की ऋण लौटाने की क्षमता और अपने धन की सुरक्षा देखता है। सबसे पहले बात करते है धन सुरक्षा कि तो देश में कहीं भी खेती योग्य एक एकड़ भूमि की कीमत तीन लाख से कम नहीं है। अलग-अलग बैंक अपने नियमों के अनुसार एक ट्रैक्टर के 4 से 5 लाख ऋण लिए कम से कम 4 से 6 एकड़ तक जमीन गिरवी रखते हैं जिसकी बाजार कीमत 12 से 18 लाख तक होती है। अब अगर बात करें ऋण लौटाने की क्षमता की तो सबसे सस्ती और जल्द उगने वाली फसल अगर गेहूं को मानें तो मात्र 90 से 120 दिन पैदा होने वाली यह फसल एक एकड़ में कम से कम 15 क्विंटल होती है जिसका सरकारी मूल्य ही 18 से 20 हजार होता है।   
किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते हैं कि इस विषय में बैंक प्रबंधन मौन है पर प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि बैंकर और किसान प्रतिनिधियों के बीच संवाद की व्यवस्था जल्द करवाएंगे ताकि इस समस्या का समाधान हो सके। टिकैत कहते हैं कि अगर ट्रैक्टर नकद खरीदा जाए तो 40 से 50 हजार तक छूट मिलती है जबकि लोन पर लेने वाले को यह छूट नहीं मिलती। साथ ही वे समूचे ट्रैक्टर उद्योग को भी कटधरे में खड़ा करते हैं कि देश में हर वस्तु का अधिकतम खुदरा मूल्य है जबकि ट्रैक्टर का ऐसा कोई मूल्य तय नहीं है।
यही बडी वजह है कि विगत दो साल से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से किसानों ने ट्रैक्टरों पर ऋण लेना ही बंद कर रखा है। वर्तमान में हर ट्रैक्टर डीलर के यहां एचडीएफसी या कोटक महेन्द्रा का एक प्रतिनिधि बैठा है जो न सिर्फ ग्राहक को तुरंत ऋण उपलब्ध करवा रहा है बल्कि डीलर को भी ज्यादा ट्रैक्टर मंगावने के लिए अग्रिम भुगतान की सुविधा दे रहा है। एक बडे राष्ट्रीय बैंक के अधिकारी नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताते है कि- यह स्थिति रातों-रात नहीं आई, बैंकर खुद लाए हैं। हमारा तरीका बेहद सरकारी है जिस वजह से टैक्टर निर्माता और विक्रेता ही नहीं खरीददार का भी मोहभंग हुआ है। हम विक्रेता को बैंक के कई चक्कर लगावाने के बाद सेवा-चाकरी करने पर ही महीने दो महीने में भुगतान करते थे। हमें हर खरीददार चोर लगता था इसलिए उसके कागजों में कमी न होने पर भी मीन-मेख निकालते रहते। उन्होंने बताया कि कारें इसलिए कम ब्याज पर मिल जाती हैं कि शुरू में कोई भी राष्ट्रीय बैंक कारों पर ऋण नहीं देता था केवल निजी कम्पनियां और बैंक ही ऐसा करते थे। ये बैंक कार निर्माताओं से कुछ पैसा लेकर ग्राहकों को जीरो प्रतिशत पर भी कार लोन दे देते थे। जब राष्ट्रीय बैंक इस दौड़ में शामिल हुए तो उसी रास्ते पर चल पड़े। पंजाब नैशनल बैंक के कृषि महाप्रबंधक आई एस फोगाट बेहद ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि ऐसा इसलिए है कि खेती के लिए ऋण देना आज भी जोखिम का काम है क्योंकि यह सौ प्रतिशत मौसम पर निर्भर है। इसमें वित्त उपलब्ध करवाने के तरीकों में सुधार की गुंजाइश है। वे इस सुझाव पर तुरंत काम करने को तैयार हो गए कि कारों की तरह ट्रैक्टर उद्योग को भी ब्याज का कुछ हिस्सा देने को तैयार किया जाए ताकि किसानों को राहत मिल सके।

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